जनवाणी संवाददाता |
देवबंद: दारुल उलूम देवबंद के सदर मुदर्रिस और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद तालिबान पर तब तक अंतिम राय नहीं देगा जब तक अफगानिस्तान में एक आदर्श इस्लामी सरकार की स्थापना नहीं हो जाती।
मौलाना अरशद मदनी ने विदेशी मीडिया से बातचीत में तालिबान और अफगानिस्तान को लेकर दारुल उलूम देवबंद की ओर से यह अहम बयान दिया। तालिबान पर उन्होंने कहा कि इस्लामिक सरकार के बारे में बात करना आसान है लेकिन इस्लामी सरकार स्थापित करना और इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों पर चलना एक कठिन और चुनौतीपूर्ण काम है।
मौलाना ने कहा कि दारुल उलूम का अफगानिस्तान और तालिबान से कोई लेना-देना नहीं है। दारुल उलूम का काम कुरान, हदीस सिखाना और पढ़ाना है और ऐसे छात्रों को तैयार करना है जो मस्जिदों और मदरसों में अपनी सेवाएं दे सकें। उन्होंने कहा कि दारुल उलूम देवबंद शांति और भाईचारे का पाठ पढ़ाता है। दारुल उलूम के छात्र कभी भी दंगों, झगड़ों और सामाजिक ताने-बाने के खिलाफ किसी गतिविधि में हिस्सा नहीं लेते हैं। कहा कि देश में स्थिरता, शांति और सामाजिक सद्भाव तभी स्थापित होगा जब सरकारें सांप्रदायिकता पर अंकुश लगाएंगी।
मीडिया के रवैये पर नाराजगी जताई
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमें गहरा दुख है कि मीडिया गहराई तक नहीं जाता और दारुल उलूम के असल चेहरे को नहीं दिखाता बल्कि मनगढ़ंत समाचार प्रकाशित करता है। कहा कि मीडिया की सोच सांप्रदायिक नहीं होनी चाहिए। उसे पूरे मामले को निष्पक्ष रूप से देखना चाहिए और सरकार को सांप्रदायिक तत्वों और इसकी सोच और विचारधारा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।