तुलसी महान रामभक्त कवि थे, तो अब्दुर्रहीम खानखान, योद्धा, राजनयिक और काव्य प्रेमी थे। ऐसा कहा जाता है कि अब्दुर्रहीम खानखाना अपनी जिज्ञासा दोहों के रूप में लिखकर गोस्वामी जी के पास भेजा करते थे और गोस्वामी जी भी उसका उत्तर दोहों के रूप में ही लिखकर उनको भिजवा देते थे। अब्दुर्रहीम खानखाना के मन में जिज्ञासा हुई कि कोई व्यक्ति गृहस्थी के जंजाल में फंसा रहकर भी भगवन भक्ति कैसे कर सकता है? उन्होंने सुन रखा था कि गोस्वामी तुलसीदास विवाहित थे और बाद में घर-गृहस्थी त्यागकर रामभक्ति को समर्पित हो गए। उनका सीधा प्रश्न था कि सांसारिक होकर भी उस करतार से मिलने का प्रयास करना, क्या दो घोड़ों की सवारी नहीं है, जिसे निभाना स्वयं सवार के लिए असंभव है? अब्दुर्रहीम खानखाना ने गोस्वामी तुलसीदास को, जो उस समय चित्रकूट में निवास कर रहे थे, अपने दूत के माध्यम से यह दोहा लिख भेजा-चलन चहत संसार की मिलन चहत करतार/दो घोड़े की अस्सवारी कैसे निभे सवार? संदेश वाहक घुड़सवार अब्दुर्रहीम खानखाना का यह संदेश लेकर चित्रकूट पहुंचा और गोस्वामीजी के चरणों में संदेश प्रस्तुत कर दिया। गोस्वामीजी ने पहले तो रहीम की पाती को अपने हृदय से स्पर्श किया और उन्होंने अब्दुर्रहीम खानखाना के प्रश्न का उत्तर कुछ तरह लिख भेजा : चलन चलत संसार की हरि पर राखो टेक/ तुलसी यूं निभ जाएंगे, दो घोड़े रथ एक…गोस्वामीजी का संदेश यह था कि गृहस्थ रहकर भी हरिभक्ति सहज की जा सकती है। यदि आपको अपने हरि पर विश्वास हो औरआपने ऐसा करने का दृढ़ निश्चय कर लिया हो तो।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा

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