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अनिरुद्ध जोशीे
पांच तत्वों में से एक है जल। पुराणों में वर्णित है जल की महिमा का महत्व। शुद्ध जल और पवित्र जल में फर्क होता है। जीवन में दोनों का ही महत्व है। आओ जानते हैं कि पुराणों में जल का क्या महत्व है।
जल को हिंदू धर्म में पवित्र करने वाला माना गया है। शुद्ध जल से जहां हम कई तरह के रोग से बच जाते हैं वहीं पवित्र जल से हमारा तन और मन निर्मल हो जाता है। पुराणों के अनुसार धरती पर जल का भार धरती से 10 गुना ज्यादा है। जल की उत्पत्ति वायु से हुई मानी जाती है। जल भी वायु का ही एक रूप है। जल से ही जड़ जगत की उत्पत्ति हुई है। हमारे शरीर में लगभग 70 प्रतिशत जल विद्यमान है उसी तरह जिस तरह की धरती पर जल विद्यमान है। जितने भी तरल तत्व जो शरीर और इस धरती में बह रहे हैं वो सब जल तत्व ही है। चाहे वो पानी हो, खून हो, वसा हो, शरीर में बनने वाले सभी तरह के रस और एंजाइम। आयुर्वेद के अनुसार सबसे अच्छा पानी बारिश का होता है। उसके बाद ग्लेशियर से निकलने वाली नदियों का, फिर तालाब का पानी, फिर बोरिंग का और पांचवां पानी कुएं या कुंडी का। यदि पानी खराब लगे तो उबालकर पीएं। जल को पवित्र करने की प्रक्रिया कई तरह की होती है। प्रमुख रूप से जल को पवित्र करने के तीन तरीके हैं- पहला भाव से, दूसरा मंत्रों से और तीसरा तांबे और तुलसी से। भाव से अर्थात भावना से उसे पवित्र करना। जैसे हम जल के प्रति अच्छी भावना रखने हैं और उसे देव समझकर सबसे पहले उसे देवताओं को अर्पित करके के बाद फिर उसे ग्रहण करते हैं तो उसके गुण और धर्म में पवित्रता शामिल हो जाती है। इसी तरह मंत्र से अर्थात किसी विशेष मंत्र से हम जल को पवित्र करते हैं। तीसरा तरीका है कि हम शुद्ध जल को तांबे के किसी पात्र में भरकर रखें और उसमें तुलसी के कुछ पत्ते डाल दें तो यह जल पूर्ण रूप से पवित्र हो जाएगा।
पवित्र जल छिड़ककर कर लोगों को पवित्र किए जाने की परंपरा आपको सभी धर्मों में मिल जाएगी। हिंदू धर्म में आरती या पूजा के बाद सभी पर पवित्र जल छिड़का जाता है जो शांति प्रदान करने वाला होता है। आचमन करते वक्त भी पवित्र जल का महत्व माना गया है। यह जल तांबे के लोटे वाला होता है। आचमन करते वक्त इसे ग्रहण किया जाता है जिससे मन, मस्तिष्क और हृदय निर्मल होता है। इस जल को बहुत ही कम मात्रा में ग्रहण किया जाता है जो बस हृदय तक ही पहुंचता है। उचित तरीके और विधि से पवित्र जल को ग्रहण किया जाए तो इससे कुंठित मन को निर्मल बनाने में सहायता मिलती है। मन के निर्मल होने को ही पापों का धुलना माना गया है। जल से ही रोग होते हैं और जल से ही व्यक्ति निरोगी बनता है। जल से ही कई तरह के स्नान के अलावा योग में कुंजल क्रिया, शंखप्रक्षालन और वमन किया होती है। अत: जल का बहुत महत्व होता है।
यह माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं। गंगा नदी के जल को सबसे पवित्र जल माना जाता है। इसके जल को प्रत्येक हिंदू अपने घर में रखता है। गंगा नदी दुनिया की एकमात्र नदी है जिसका जल कभी सड़ता नहीं है। वेद, पुराण, रामायण महाभारत सब धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन है। हिन्दू धर्म में बिंदु सरोवर, नारायण सरोवर, पम्पा सरोवर, पुष्कर झील और मानसरोवर के जल को पवित्र माना जाता है। कहते हैं कि इस जल से स्नान करने और इसको ग्रहण करने से सभी तरह के पाप मिट जाते हैं और व्यक्ति का मन निर्मिल हो जाता है।
भोजन के पूर्व जल का सेवन करना उत्तम, मध्य में मध्यम और भोजन पश्चात करना निम्नतम माना गया है। भोजन के एक घंटा पश्चात जल सेवन किया जा सकता है। पानी छना हुआ होना चाहिए और हमेशा बैठकर ही पानी पीया जाता है। खड़े रहकर या चलते फिरते पानी पीने से ब्लॉडर और किडनी पर जोर पड़ता है। पानी ग्लास में घूंट-घूंट ही पीना चाहिए। अंजुली में भरकर पीए गए पानी में मिठास उत्पन्न हो जाती है।
जहां पानी रखा गया है वह स्थान ईशान कोण का हो तथा साफ-सुधरा होना चाहिए। पानी की शुद्धता जरूरी है। जल का संरक्षण और हमारी जिम्मेदारियां
इस्लाम में जल का महत्व
आज हर व्यक्ति जल का दुरुपयोग कर रहा है। स्नानागार, शौचालय, रसोई घर और बागीचे की सिंचाई में जल की खपत अत्यधिक मात्रा में हो रही है। हम सब का कर्तव्य बनता है कि हम सब जल की सुरक्षा करें उसे नष्ट न होने दें, क्यों कि किसी भी चीज का दुरुपयोग दरिद्रता तथा निर्धनता का कारण होता है। फिजूलफर्ची करने वाले का प्रथम तथा अन्तिम उद्देश्य इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं होता कि अपनी कामनाओं को पूरा कर ले और बस। न वह अपने परिणाम को सोचता है और न ही दूसरों के लाभ की परवाह करता है।
इस्लाम फिजूल खर्जी से रोकता है और संरक्षण की ताकीद करता है। कुरआन में कहा गया: ‘खाओ पिओ और फिजूलखर्ची न करो, अल्लाह फिजूलखर्ची करने वालों को पसन्द नहीं करता।’
मुहम्मद सल्ल. जिनका जीवन प्रत्येक मानव के लिए आदर्श था,जल के संरक्षण में आपका आदर्श हमें मिलता है कि आप ज्यादातर एक मुद्द (650 ग्राम) जल से वुजू कर लेते तथा एक साअ से पांच मुद्द (3 किलो ग्राम या उससे अधिक) में स्नान कर लेते थे।( मुस्लिम)
एक व्यक्ति हजरत इब्ने अब्बास रजि. के पास आया और कहा: वुजू के लिए कितना पानी हमें काफी होना चाहिए? कहा: मुद्द , पूछा: स्नान के लिए कितना पानी काफी होना चाहिए? कहा: साअ। उसने कहा: इतना तो मुझे काफी नहीं। आपने फरमाया: उस इनसान को काफी हुआ जो तुझ से उत्तम थे, अर्थात अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्ल.।(अहमद)
एक बार मुहम्मद सल्ल. हजरत साद बिन अबी वक्कास रजि. के पास से गुजरे जबकि वह वुजू कर रहे थे और पानी का प्रयोग जरूरत से ज्यादा कर रहे थे। आपने फरमाया: हे साद! यह क्या फिजूल खर्ची है? उन्होंने पूछा: क्या वुजू में भी फिजूलखर्ची है? आपने फरमाया: हां, क्यों नहीं! यद्यपि तुम बहती नदी के निकट ही क्यों न हो (वहां भी आवश्यकता से अधिक पानी का प्रयोग करना फिजूलखर्ची है।
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