Saturday, July 27, 2024
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खर्राटे लेता है बच्चा तो हल्के में न लें

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  • समस्या का समय पर कराएं इलाज, ईएनटी स्पेशलिस्ट डा. विजय वर्मा ने खर्राटे को लेकर दी जानकारी

जनवाणी संवाददाता |

मोदीपुरम: सोते वक्त खर्राटे एक बहुत ही आम बात समझी जाती है। हर घर में कोई न कोई ऐसा शख्स जरूर होता है। जिसे खर्राटे लेने की आदत होती है। आमतौर पर इस समस्या को कोई गंभीरता से नहीं लेता है, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। गुरुग्राम के सीके बिरला अस्पताल में कंसल्टेंट एलर्जी एंड ईएनटी स्पेशलिस्ट डा. विजय वर्मा ने खर्राटे को लेकर विस्तार से जानकारी दी और इसके बचाव के सभी तरीके भी बताए।

आब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) एक ऐसी समस्या है। जिसमें सोते वक्त हवा के ऊपरी मार्ग में या तो पूरी तरह बाधा आ जाती है या आंशिक तौर पर आती है। इससे खर्राटे आते हैं, हालांकि ये समस्या ज्यादातर अडल्ट लोगों में देखी जाती है, लेकिन बच्चों पर भी इसका प्रभाव हो सकता है। बच्चों में खर्राटे की समस्या होने के चांस 1 से 10 प्रतिशत रहते है। खर्राटे लेना 3 से 12 प्रतिशत बच्चों में एक सामान्य लक्षण है।

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बच्चों में यह समस्या तब होती है। जब नींद के दौरान हवा का रास्ता आंशिक रूप से या पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाता है। इसका असर ये होता है कि सांस लेने में मुश्किल होती है और नींद के पैटर्न में बाधा आती है। इससे बच्चे के स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। बच्चे में व्यवहारिक समस्याएं, सीखने में कठिनाई और हार्ट से संबंधित दिक्कतें भी हो सकती है।

ऐसे में ये जरूरी है कि बच्चों की खर्राटे की समस्या को दरकिनार न किया जाए क्योंकि इससे बच्चे की ग्रोथ और हेल्थ पर गलत असर पड़ने का खतरा रहता है। अगर इस समस्या का इलाज नहीं कराया जाता है तो बच्चे के व्यवहार में बदलाव आ सकता है। उसका ध्यान भंग हो सकता है। उसकी सीखने समझने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। पढ़ाई में खराब परफॉर्मेंस रह सकती है।

यहां तक कि बच्चे की शारीरिक ग्रोथ पर भी गलत असर पड़ सकता है। इसके अलावा ये समस्या हाइपरटेंशन, कार्डियोवैस्कुलर डिजीज, मोटापा और टाइप-2 डायबिटीज से भी जुड़ी हो सकती है। बच्चे में खर्राटे आने के अलावा कुछ और लक्षण भी दिखाई दे सकते है जैसे-मुंह से सांस लेना, ठीक से नहीं सोना, रात को बार-बार नींद से उठ जाना। बच्चे हाइपर एक्टिव हो जाते हैं।

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चिड़चिड़ापन आ जाता है और एग्रेशन जैसी व्यवहार संबंधी समस्याएं भी उनके अंदर नजर आने लगती है। कुछ मामलों में ऐसा भी होता है कि बच्चे बिस्तर गीला कर देते हैं या सुबह उठने में उन्हें परेशानी होती है। टॉन्सिल्स होना, मोटापा, क्रेनियाफैसियल असामान्यताएं और न्यूरो मस्कुलर डिसआॅर्डर जैसे लक्षण भी बच्चों में खर्राटे का रिस्क बढ़ाते हैं। अगर किसी बच्चे की फैमिली हिस्ट्री खर्राटे की रही है या किसी बच्चे का जन्म प्री-मैच्योर हुआ है तो ऐसे बच्चों में भी खर्राटे की आदत देखी जाती है।

क्या है इलाज?

खर्राटे का इसका इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि इसकी गंभीरता कितनी है। हल्के मामलों में, कुछ आदतें बदलकर ही काम चल जाता है. जैसे कि वजन घटाना, कुछ खाना और पीना छोड़कर और एक साइड सोकर इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है। इसके अलावा मेडिकल ट्रीटमेंट भी होता है। सोने से पहले नेजल स्प्रे करने से बच्चों को काफी राहत मिलती है।

अगर किसी को गंभीर समस्या है तो सर्जरी के जरिए भी इलाज किया जाता है. बच्चों में खर्राटे की परेशानी दूर करने के लिए एडीनोटोनसिलेक्टोमी सर्जरी की जाती है। इसमें टॉन्सिल्स और एडेनोइड्स को हटाकर हवा का फ्लो ठीक किया जाता है। इसके अलावा रुकावट को हटाने के लिए नेसल सर्जरी भी की जाती है।

ओएसए एक हल्की समस्या नहीं है, बच्चों पर इसके गंभीर असर हो सकते हैं। ऐसे में इसके इलाज के लिए डॉक्टर की सलाह लेना काफी अहम है। स्पेशलिस्ट डॉक्टर से अपने बच्चों को दिखाएं। समय पर इसके इलाज से बच्चे की लाइफ में सुधार आता है।

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