- गोशालाओं में तड़प तड़प कर दम तोड़ रहे गोवंश
- खुले आसमान के नीचे गंदगी में रहने को मजबूर गोवंश
- प्रति गोवंश 30 रुपये का चारा ऊंट के मुंह में जीरा
जनवाणी संवाददाता |
सरधना: वैसे तो सरकार गोवंशों की हर तरह से देखभाल करने का दावा कर रही है। मगर सच्चाई इससे कौसों मिल दूर है। जितनी दुर्दशा इस समय गोवंशों की हो रही है, शायद ही पहले कभी हुई होगी। जंगल से लेकर सड़कों पर घूम रहे गोवंश भूखे-प्यासे तड़प-तड़पकर दम तोड़ रहे हैं। गोशालाओं में बंधे गोवंशों की हालत भी ठीक नहीं है। सुविधा और संसाधनों के अभाव में यहां भी गोवंशों की बेकद्री हो रही है।
गंदगी के बीच खुले आसमान के नीचे गोवंश चारे के नाम पर सूखा भूसा मिला पानी गटकने को मजबूर हैं। कहने को गोवंशों की देखभाल के लिए प्रति यूनिट 30 रुपये सरकार के खजाने से जारी हो रहे हैं। मगर इतनी छोटी रकम गोवंश के पेट भरने लायक नहीं है। आज सरकारी सहायता प्राप्त गोशालाओं की हालत दयनीय हो चुकी है। सरधना के मंडी समिति में स्थित अस्थाई गोशालों का भी यही हाल है। सैकड़ों गोवंश खुले आसमान के नीचे शायद अपनी मौत का इंतजार क रहे हैं।
सूबे में गोवंशों की देखभाल आज एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। क्योंकि असंख्या गोवंश चारों ओर भटक रहे हैं। आबादी में सड़कों और हाइवे पर गोवंश खुद हादसे का शिकार हो रहे हैं और लोगों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसी तरह जंगल में किसानों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। इन गोवंशों की देखभाल करने का सरकार और सिस्टम बड़ा दावा करती है। मगर उसकी हकीकत किसी से छुपी नहीं है। खुले में घूम रहे भूखे प्यासे गोवंश कचरे के ढेर से पॉलीथिन खाकर अपनी जान दे रहे हैं। कहीं भी गोवंश तड़पते हुए देखे जा सकते हैं।
सरकारी सहायता प्राप्त गोशालाओं में भी गोवंश बेहद दयनीय हालत में हैं। संसाधन नहीं होने के कारण गोवंश खुले में आंधी, बारिश, ठंड, गर्मी क्े बीच आसमान के नीचे अपनी सांसे पूरी कर रहे हैं। इसमें भी यदि बीमारी की चपेट में आ जाएं तो तड़प-तड़प कर दम तोड़ रही हैं। निरीक्षण और व्यवस्था के नाम पर अधिकारी भी कागजों का पेट भरकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि जितनी खराब हालत में आज गोवंश है, शायद ही पहले इतनी दुर्दशा उनकी हुई होगी। सिस्टम को चाहिए कि गोवंश की देखभाल को गंभीरता से ले।
मंडी में बनी गोशाला की हालत खराब
मंडी परिसर में अस्थाई गोशाला बनी हुई है। जिसमें करीब 400 से अधिक गोवंश बंधे हुए हैं। अधिकांश गोवंश खुले आसमान के नीचे गंदगी के बीच रहने को मजबूर हैं। छांव के नाम पर गोवंशों के ऊपर फटी हुई तिरपाल डाली गई है। चारे के नाम पर सूखे भूसे में पानी मिलाकर दिया जा रहा है। इस गोशालों को सरकारी मदद मिलने के साथ ही विभिन्न ट्रस्ट द्वारा सहयोग किया जाता है। मगर इतनी बड़ी संख्या में गोवंशों की देखभाल के लिए बड़ी रकम की जरूरत होती है। जोकि नहीं मिल पा रही है। हालत यह है कि एक स्थाई गोशाला तक नहीं बन पा रही है।
गोशाला में तड़प रहे गोवंश
भूसे की तरह भरे गोवंशों में बीमार होने वालों के ठीक होने की कोई गारंटी नहीं है। वर्तमान में गोशाला में तड़पते हुए कई गोवंश अपनी सांसे पूरी कर रहे हैं। मगर उन्हें उपचार नहीं मिल पा रहा है। यदि समय पर उपचार मिले तो शायद गोवंशों को बचाया जा सकता है।
लगातार मांग के बाद भी नहीं हो रही सुनवाई
गोवंश एवं पशु-पक्षी सेवा संस्थान ट्रस्ट के संचालक पुरुषोत्तम दास बंसल बताते हैं कि समाज के सहयोग से करीब 400 से अधिक गोवंश गोशाला में रह रहे हैं। सरकार से जो 30 रुपये प्रति गोवंश की सहायता मिल रही है, वह बहुत की कम है। उससे ज्यादा तो श्रमिक ही काम करने का लेते हैं। ऐस में चारा लाना तो बहुत दूर की बात है। उनका कहना है कि स्थाई गोशाला बनवाने के लिए वह अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक से मिल चुके हैं। मगर कोई सुनने को तैयार नहीं है।