हर वर्ष परीक्षा के मौसम में एक ही कहानी दोहराई जाती है। छात्रों पर असीमित दबाव, माता-पिता की बढ़ती चिंताएं, और समाज की अपेक्षाएं। लेकिन क्या हम कभी सोचते हैं कि इस दबाव का हमारी युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव पड़ता है? क्या परीक्षा वाकई इतनी महत्वपूर्ण है कि हम अपने बच्चों का बचपन और उनकी खुशियां दांव पर लगा दें?
आज के समय में परीक्षा का तनाव छात्रों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। कई छात्र अच्छे अंक प्राप्त करने के दबाव में अत्यधिक तनाव महसूस करते हैं। आज इस बात पे ध्यान देने की जरूरत है कि बच्चों में तनाव प्रतिदिन बढ़ ही रहा है उसका मुख्य कारण परीक्षा का बढ़ता दबाव है। आज के भारत में परीक्षा को जीवन-मरण का प्रश्न बना दिया गया है। 99 फीसदी अंक लाने वाला छात्र सफल माना जाता है, जबकि 85 फीसदी लाने वाला ‘औसत’। यह सोच न केवल गलत है, बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी कमजोरी भी है। परीक्षा का वास्तविक उद्देश्य ज्ञान का मूल्यांकन है, न कि बच्चों के भविष्य का फैसला करना। रोचक तथ्य यह है कि जीवन में सफल कई लोगों ने स्कूल या कॉलेज में औसत प्रदर्शन किया था। बिल गेट्स से लेकर स्टीव जॉब्स तक, ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जिन्होंने साबित किया कि परीक्षा में मिले अंक जीवन की सफलता के एकमात्र मापदंड नहीं हैं। आज हर घर में माता पिता चाहता है कि मेरा बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर बने लेकिन अब ये समझने की आवश्यकता है कि हर बच्चे में अपनी एक शक्ति होती है जिसके अनुसार वह विकास करता है, अगर कोई बच्चा अच्छी पेंटिंग बनाता है तो उससे चित्रकार बनना चाहिए ना कि डॉक्टर। इस तरह के परिवर्तन तभी हो पायेंगे जब हमारे समाज में, परिवार में और हमारी शिक्षा प्रणाली इस बात पर ध्यान देगी की अब समय सिर्फ़ रटने और अच्छे अंक प्राप्त करने का नहीं है। हमारी शिक्षा व्यवस्था को एक आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। परीक्षा को सीखने का माध्यम बनाना होगा, न कि भय का कारण। छात्रों को सिर्फ पाठ्यक्रम रटने की बजाय समझने, सोचने और विश्लेषण करने की क्षमता विकसित करने का अवसर मिलना चाहिए।
वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य में, जहां प्रतिस्पर्धा चरम पर है, माता-पिता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्हें अपने बच्चों के साथ एक मित्र की तरह व्यवहार करना चाहिए, जो उनका मार्गदर्शन करे, उनका हौसला बढ़ाए, और उन्हें बिना किसी दबाव के अपनी क्षमता का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में मदद करे। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह समय केवल परीक्षा की तैयारी का नहीं, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों को सीखने का भी है। माता-पिता को भी अपनी सोच बदलनी होगी। बच्चों की तुलना दूसरों से करने की बजाय, उनकी व्यक्तिगत प्रतिभा और रुचियों को पहचानना और प्रोत्साहित करना जरूरी है। हर बच्चा अद्वितीय है, और उसकी सफलता की परिभाषा भी अलग हो सकती है। आज के वैश्विक परिदृश्य में, रचनात्मकता, नवाचार और समस्या समाधान की क्षमता अकादमिक योग्यता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई हैं। कंपनियां अब सिर्फ मार्कशीट नहीं देखतीं, बल्कि व्यक्तिगत कौशल और क्षमताओं को प्राथमिकता देती हैं। शिक्षाविदों और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि परीक्षा का वर्तमान स्वरूप छात्रों में रचनात्मकता और नवाचार को प्रोत्साहित करने की बजाय उसे कुंठित करता है। यह समय है कि हम परीक्षा को सीखने और विकास के एक साधन के रूप में देखें, न कि अंतिम लक्ष्य के रूप में।
सरकार और शैक्षिक संस्थानों को मिलकर ऐसी व्यवस्था विकसित करनी होगी, जहां मूल्यांकन सतत और व्यापक हो, न कि एक परीक्षा पर आधारित। साथ ही, व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास को भी समान महत्व दिया जाना चाहिए। आज के डिजिटल युग में, जहां तकनीक ने शिक्षा के तरीकों को बदल दिया है, परीक्षा की तैयारी के नए आयाम सामने आए हैं। प्रधानमंत्री ने छात्रों को सलाह दी कि वे तकनीक का समझदारी से उपयोग करें और इससे होने वाले तनाव से बचें। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर बिताए जाने वाले समय को नियंत्रित करना और पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। विभिन्न स्कूलों ने भी इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए हैं। कई स्कूलों में नियमित काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जाते हैं, जहां मनोवैज्ञानिक छात्रों और माता-पिता को तनाव से निपटने के तरीके बताते हैं। सफल छात्रों के अनुभव भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि संतुलित दृष्टिकोण और माता-पिता का सहयोग परीक्षा में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
परीक्षा जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यह जीवन का अंतिम पड़ाव नहीं है। माता-पिता और शिक्षकों को मिलकर ऐसा वातावरण बनाना चाहिए, जहां छात्र बिना किसी दबाव के अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें। यह समय है जब हम सभी मिलकर छात्रों के भविष्य को सुरक्षित और सफल बनाने में योगदान दें, और उन्हें एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा दें। सकारात्मक सोच की ओर ले जाएं।