Sunday, September 24, 2023
Homeसंवाददृष्टि की व्याधियां

दृष्टि की व्याधियां

- Advertisement -

Amritvani


बोकुजु नामक एक साधु किसी गांव की गली से होकर गुजर रहा था। अचानक कोई उसके पास आया और उस पर छड़ी से प्रहार किया। बोकुजु जमीन पर गिर गया, उस आदमी की छड़ी उसके हाथ से छूट गई और वह भाग लिया। बोकुजु संभला, और गिरी हुई छड़ी उठाकर उस आदमी के पीछे यह कहते हुए भागा, ‘रुको, अपनी छड़ी तो लेते जाओ!’ बोकुजु ने उस तक पहुंचकर उसे छड़ी सौंप दी।

वहां भीड़ लग गई और किसी ने बोकुजु से पूछा, ‘इसने तुम्हें मारा, तुमने कुछ नहीं कहा?’ बोकुजु ने कहा, ‘हां, उसने मुझे मारा, वह बात समाप्त हो गई। वह मारने वाला था और मुझे मारा गया, बस। यह ऐसा ही है, जैसे मैं पेड़ के नीचे बैठूं और एक शाखा मुझ पर गिर जाए! तब मैं क्या सकता हूं?’ भीड़ ने कहा, ‘पेड़ की शाखा तो निर्जीव है, लेकिन यह आदमी है! हम शाखा को दंड नहीं दे सकते।

क्योंकि पेड़ सोच नहीं सकता।’ बोकुजु ने कहा, ‘मेरे लिए यह आदमी पेड़ की शाखा की भांति ही है। यदि मैं पेड़ से कुछ नहीं कह सकता, तो इससे क्यों कहूं? जो हुआ, वह तो हो ही चुका है। बोकुजु का मन एक संत व्यक्ति का है। वह चुनाव नहीं करता, सवाल नहीं उठाता। वह यह नहीं कहता कि ‘ऐसा नहीं, वैसा होना चाहिए’।

जो कुछ भी होता है, उसे वह उसकी संपूर्णता में स्वीकार कर लेता है। यह स्वीकरण उसे मुक्त करता है और मनुष्य की सामान्य दृष्टि की व्याधियों का उपचार करता है। ये व्याधियां हैं: ‘ऐसा होना चाहिए’, ‘ऐसा नहीं होना चाहिए’, ‘भेद करना’, ‘निर्णय करना’, ‘निंदा करना’, और ‘प्रसंशा करना’।


janwani address 4

- Advertisement -
- Advertisment -spot_img

Recent Comments