- शहर में साढ़े तीन महीने में 50 से अधिक लोग कर हैं चुके सुसाइड
- प्रेम, परिवार और पढ़ाई का तनाव ले रहा लोगों की जान
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, कांटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के। अब लोग इस कदर मानसिक रूप से कमजोर हो रहे हैं कि थोड़ा-सा तनाव ही उनकी जिंदगी में हलचल पैदा कर देता है। राहों में आने वाली मुश्किलों से लड़ने के बजाय लोग जिंदगी से दूर भाग रहे हैं। जिस तरह से रविवार को 14 वर्षीय किशोर ने फांसी लगा कर जान दी, उससे हर कोई हैरान है। साढ़े तीन महीने में पचास से अधिक लोग जिंदगी से हाथ धो बैठें है और यह सिलसिला लगातार चलता आ रहा है।
जागृति विहार में आशु नामक युवक ने जिंदगी से परेशान होकर फांसी लगाकर जान दे दी। सिविल लाइन थाना क्षेत्र के सर्वोदय नगर कालोनी में एक महिला ने घरेलू कारणों से जान दे दी। ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा है, जब लोग सुसाइड न कर रहे हों। पुलिस लाइन स्थित सरकारी आवास में रहने वाले दारोगा इंद्रजीत सिंह ने पारिवारिक तनाव के कारण खुदकुशी कर ली। परिजन करीब सात घंटे तक छिपाते रहे।
जब मेडिकल कॉलेज से मीमो पहुंचा तो पुलिस अधिकारियों को घटना का पता चला। खरखौदा निवासी रोहित अग्रवाल की बेटी अवनि अग्रवाल कक्षा 12वीं की छात्रा थी। छात्रा ने शास्त्रीनगर स्थित गोल्डन टावर की पांचवीं मंजिल से कूदकर जान दे दी। थाना जानी में युवती के घर पर एक कमरे में प्रेमी और प्रेमिका का खून से लथपथ शव बरामद हुआ था। युवक-युवती का किसी बात पर ब्रेकअप हो गया था,
जिसके बाद युवक ने पहले अपने दोस्त के साथ शराब पी और उसके बाद तैश में आकर लड़की के घर जा पहुंचा। उसने लड़की के सीने में गोली मार दी और उसके बाद खुद की कनपटी पर गोली मारकर सुसाइड कर लिया। डिप्रेशन में मेडिकल कॉलेज की छात्राएं सुसाइड कर रही हैं। 23 साल से लेकर 28 साल की छात्राएं फांसी लगाकर जान दे चुकी हैं। सीनियर डॉक्टर भी तनाव के कारण यह मान रहे हैं। 23 साल की आरजू मेरठ में बीएससी नर्सिंग थर्ड ईयर की छात्रा थी।
छात्रा बीमार थी, जो अपनी बीमारी को लेकर तनाव में आ गई। अपने परिवार से दूर रहकर छात्रा मेरठ में हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहीं थी। छात्रा ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि मुझे ब्लड कैंसर है और मेरा जीना भी बेकार है। मैं जो चाहती हूं, वह जिंदगी नहीं जी सकती। अपनी मौत की खुद जिम्मेदार हूं।
भावनात्मक रूप से खो जाता है छात्र वर्ग
डा. तनुराज सिरोही ने बताया कि मेडिकल लाइन में पढ़ाई भी तनाव का एक कारण है। भावानात्मक रूप से छात्र खो जाता है। वर्तमान समय कंपटीशन का दौर है, हर चीज को इज्जत से जोड़ दिया जाता है। परिवार को समय नहीं दे पाना भी तनाव का कारण है। परिवार में मां और पिता पर अधिक जिम्मेदारी रहती है, भाई-बहन सब अलग होने लगते हैं। अपनी बात को परिवार के साथ शेयर नहीं किया जाता।
मनोविज्ञानी बेला घोष बताती हैं कि सुसाइड के कई कारण सामने आ रहे हैं। इनमें डिप्रेशन सबसे बड़ा कारण है। मानसिक दबाव भी इसका एक कारण है। सहनशीलता की कमी, अपनी बात को शेयर नहीं करना, यानी अपनी परेशानी को अपने मन में लंबे समय तक रखना। लंबे समय से बीमारी या कोई असाध्य रोग भी इसके कारण बन रहे हैं। गुस्सा और दूसरे से कुंठित होने पर भी ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं।
अब सामने आ रहा है कि छात्राएं, जो अच्छी शिक्षित हैं वह भी गलत कदम उठाकर जान दे रही हैं। मनोचिकित्सक का मानना है कि परिवार से दूर रहना भी कारण बना रहा है। इस युवा उम्र में मेडिकल लाइन और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी कई बार छात्र को तनाव में लाकर खड़ी कर देती है।