- ग्रामीणों ने एक दशक में आज तक नहीं ली शरण
जनवाणी संवाददाता |
हस्तिनापुर: प्रदेश सरकार हर साल बाढ़ के दौरान खादर क्षेत्र के लोगों को बचाने के लिए नई नई योजना बनाता है। वहीं, सिंचाई विभाग इन योजना में अपनी जेबें भरकर ग्रामीणों को बाढ़ मरने के लिए छोड़ देता है। ऐसा ही एक खेल सिंचाई विभाग के आलाधिकारियों ने लगभग एक दशक पूर्व आई भयंकर बाढ़ के बाद खेला और खादर क्षेत्र के गांवों में बाढ़ पीड़ितों को बचाने के लिए साढेÞ छह करोड़ रुपये की लागत से एक दर्जन गांवों मे बाढ़ चबूतरों का निर्माण किया, बाढ़ चबूतरे निर्माण के बाद आज तक बाढ़ पीड़ितों के काम नहीं आ सके।
केंद्र सरकार ने खादर क्षेत्र के लोगों को गंगा आने वाली कर बाढ़ के दौरान जानमाल की क्षति से बचाने के लिए नाबार्ड योजना के तहत खादर क्षेत्र में एक दर्जन गांव भीकुंड, खेड़ीकलां, दुधली, जलालपुर जोरा आदि में बाढ़ चबूतरे मचान बनाने कि योजना तैयार की और इने बनाने का जिम्मा सिंचाई विभाग ड्रेनेज खंड पंचम को दिया। साढे छह करोड़ रुपये की लागत से 2011 में बने इन बाढ चबूतरों में सिंचाई विभाग ने जमकर घटिया सामग्री का प्रयोग किया।
सांसद राजेन्द्र अग्रवाल ने लोकसभा के शून्यकाल तक में मामले को उठाया, लेकिन नतीजा भी शून्य काल की तरह ही रह गया। ग्रामीण भी घटिया सामग्री से बने इन बाढ़ चबूतरों पर शरण नहीं लेना चाहते हैं। जिसका उदाहरण खादर क्षेत्र में प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ के दौरान लगाया जा सकता है। तबाही का मंजर होने के बाद भी लोग जान जोखिम में डालकर नावों से लम्बी दूरी तयकर सुरक्षित स्थानों पर शरण लेना उचित समझा, लेकिन आज तक बाढ़ चबूतरों पर शायद की किसी ग्रामीण ने शरण ली हो।
शिकायत के बाद हुई थी जांच
बसपा शासन में बाढ़ प्रभावित गांव गांवड़ी के रहने वाले एक व्यक्ति ने तहसील दिवस में बाढ़ चबूतरों में प्रयोग की गई घटिया सामग्री की शिकायत की। जिसके बाढ़ तत्कालीन जिलाधिकारी के निर्देश पर चार टीमें गठित कर बाढ़ चबूतरों की जांच की और निर्माण कार्य में घटिया निमार्ण सामग्री के प्रयोग होने की बात कही, लेकिन आज तक कार्रवाई नहीं की गई।
बाढ़ चबूतरे पर 50 सालों तक सुरक्षित रह सकते हैं ग्रामीण
निर्माण के दौरान सिंचाई विभाग के आलाधिकारियों ने ग्रामीणों को बाढ़ चबूतरों पर लगभग 50 साल तक बाढ़ के दौरान सुरक्षा मुहैया कराने की बात कही थी, लेकिन ये बाढ़ चबूतरे चंद सालों बाद ही धराशाई नजर आने लगे। एक दश्क बाद ही बाढ चबूतरे अपने अस्तित्व से जूझते नजर आ रहे है। अधिकांश बाढ चबूतरों पर बनने के बाद आज तक साफ सफाई भी शायद ही की गई हो।