Monday, May 13, 2024
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ईश्वर की लीला

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चंद्र प्रभा सूद |

ईश्वर की लीला बड़ी विचित्र है। उसे हम लोगों की यह साधारण बुद्धि नहीं समझ सकती। पता नहीं उसके कितने हाथ हैं जो पूरे संसार के असंख्य जीवों को भर-भरकर देता है यानी छप्पर फाडकर देता है। जब लेने पर आता है तो घर के दाने भी बिक जाते हैं। वह परम न्यायकारी है। किसी के साथ भी पक्षपात नहीं करता। उसकी अदालत में जो फैसले किए जाते हैं, उनकी अन्यत्र कहीं सुनवाई नहीं होती। सत्कर्म करने वालों को वह हर तरह से मालामाल कर देता है। दुष्कर्म करने वालों को माफ नहीं करता। उन्हें दुखों और तकलीफों में तपाकर कुन्दन बनाता है। इसीलिए उसकी लाठी की आवाज नहीं होती।

एक बच्चा हर उस वस्तु के लिए अपने माता-पिता से जिद करता है जिसे वह अपने मित्र, पड़ोसी अथवा किसी दुकान पर देखता है। यह तो आवश्यक नहीं कि माता-पिता उसकी माँगी हुई सारी वस्तुएँ खरीद दें। कुछ ही वस्तुएँ वे उसे लेकर देते हैं शेष के लिए मना कर देते हैं या बहला देते हैं। वे वही वस्तुएँ उसे खरीदकर देते हैं जिनकी उसके जीवन के लिए वाकई उपयोगिता होती है। बच्चों की तरह हम लोगों को भी हर वह वस्तु चाहिए होती है जो दुनिया में किसी के भी पास होती है, चाहे उसकी हम आवश्यकता हो अथवा न हो। वह परम पिता परमेश्वर भी हमारी सारी जायज-नाजायज माँगों में से वही हमें देता है जो हमारे पूर्वजन्मकृत हमारे कर्मों के अनुसार हमें मिलनी चाहिए। उससे न कम और न ज्यादा। हम है कि अनावश्यक हठ करते हुए परेशान रहते हैं।

ईश्वर वह कभी नहीं देता जो हम सबको अच्छा लगता है। हमारा क्या है? हमें हर चीज अच्छी लगती है। मनुष्य का वश चले तो वह चाँद को लाकर अपनी दीवार पर सजा ले। सूर्य के प्रकाश को अपने घर में कैद करके उसे आगे न जाने दे। बाकी सारी दुनिया चाहे अंधेरे में ठोकरें खाती रहे। इसी तरह नदियों का सारा पानी भी किसी को न लेने दे। यानी सारी प्रकृति पर अपनी सत्ता कायम कर ले। वह स्वार्थी बनकर दूसरे के मुँह में जाता हुआ निवाला भी छीनकर खा ले और उसे भूखा मरने के लिए छोड़ दे।

ईश्वर वही देता है जो हमारे लिए अच्छा होता है। हमारी योग्यता और भाग्य के अनुसार ही वह हमें देता है। यदि हमारे भाग्य में नहीं हो तो वह किसी-न-किसी रूप से हमारे हाथ से निकल जाएगा। जैसे बन्दर के गले में मोतियों का मूल्यवान् हार डाल दिया जाए तो वह उसे तोडकर फैंक देगा। उसी प्रकार हम सभी अज्ञ मनुष्य अपनी मूर्खताओं के कारण उस मालिक द्वारा प्रदत्त नेमतों का लाभ नहीं उठा पाते। अपने दुर्भाग्य के कारण उन्हें व्यर्थ गंवा देते हैं। यह उस मालिक की दयानतदारी है जो हमें जीवन में मायूस नहीं करता। वह बिना माँगे नित्य ही हमारी झोलियाँ भरता रहता है। यह हमारी सूझबूझ पर निर्भर करता है कि हम अपनी झोली में मालिक के द्वारा दिया गया कितना खजाना समेट सकते हैं।


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