- अधिकांश दलों ने फेसबुक लाइव का सहारा लिया
जनवाणी संवाददाता |
सहारनपुर: विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। अब बारी है पार्टियों व प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार की। हालांकि कोरोना काल के चलते बड़ी-बड़ी रैलियों व जनसभाओं पर चुनाव आयोग ने आगामी 22 जनवरी तक रोक लगा दी है। लेकिन यदि पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालें तो प्रचार के तरीकों में अच्छा-खासा बदलाव आ चुका है। अब चुनाव प्रचार हाईटैक हो चला है।
आम तौर पर चुनाव की घोषणा होते ही रैली,जनसभाओं, बाइक रैलियों की गूंज से माहौल चुनावी हो जाता था। बात अगर सत्तर के दशक की करें तो जहां चुनाव प्रचार बैलगाड़ियों से होता था तो वहीं बाद में यह काम जीप पर भोपू लगाकर होने लगा। लेकिन बात अगर पिछले कुछ चुनावों की करें तो अब चुनाव प्रचार के तरीके भी आधुनिक हो चले हैं। अब जनसभा की जगह फेसबुक लाइव ने ले ली है।
तो झंडे,बैनर,बोर्ड व बिल्ले तो कहीं गायब से हो चले हैं। अब फ्लैक्स व बैनर चलन में है। प्रचार का तरीका भी हाईटैक हो चला है। पहले जहां प्रत्याशी अपने वायदों का पिटारा लेकर या तो घर-घर जाकर प्रचार करते थे या फिर गली के नुक्कड़ पर होने वाली छोटी-छोटी सभाओं से मतदाताओं को साधने का प्रयास करते थे। वर्तमान समय में सूचना प्रद्यौगिकी में क्रांतिकारी बदलाव आ जाने के बाद इन सभाओं की जगह व्हाट्सअप,एसएमएस फेसबुक लाइव आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने ले ली है।
व्हाट्सअप गु्रप के माध्यम से प्रत्याशी अपनी बात चंद मिनटों में हजारों लोगों तक पहुंचा देते है। इसके लिए उन्हें ना तो किसी सभा का आयोजन करना होता है और ना ही चुनाव अधिकारी से इजाजत लेनी होती है। साथ ही एसएमएस के जरिए भी सैकड़ों लोगों तक प्रत्याशी अपनी बात आसानी से पहुंचा देते है। ऐसे में इन पर खर्च भी ना के बराबर आता है।
साथ ही जनसभा की जगह अब पार्टियां वर्चुअल रैली को बढ़ावा दे रही है। कारण है इन वर्चुअल रैली में कोई खास खर्च नहीं होता है। जैसा कि वर्तमान में कोरोना काल भी चल रहा है तो इन वर्चुअल रैली के माध्यम से प्रचार होने पर कोरोना के प्रसार पर भी रोक लगती है। इन वर्चुअल रैली के माध्यम से पार्टी के बड़े-बड़े नेता अपने मुख्यालय में बैठकर किसी भी विधानसभा के मतदाताओं के सामने अपनी बात रख सकते हंै।
अब नहीं दिखते बिल्ले व बैनर
लोटस प्रिंटर्स के मालिक अवनीश चौधरी बताते हैं कि पहले चुनाव की घोषणा के बाद प्रत्याशी अपनी फोटो व चुनाव चिन्ह युक्त बिल्लों का आर्डर देते थे। साथी ही बैनर के आर्डर भी मिलने शुरु हो जाते थे। लेकिन वर्तमान में बिल्लों की जगह स्टीकर ने ले ली है।
तो वहीं अब फ्लैक्स बोर्ड का चलन पहले से ज्यादा है। कंप्यूटर के जरिए कुछ ही घंटों में फ्लैक्स बोर्ड बनकर तैयार हो जाते हैं। साथ ही वर्तमान में प्रिटिंड टोपी,गले में पहने जाने वाले पटका व गाडियों के स्टीकर की डिमांड अब पहले से ज्यादा है।