ओशो से एक बार किसी ने पूछा कि मैं अपनी स्मोकिंग करने की आदत नहीं छोड़ सकता। बहुत कोशिश की छोड़ने की, लेकिन नहीं कर पाया। क्या स्मोकिंग करना पाप है? देखिए क्या जवाब दिया ओशो ने : राई का पहाड़ बनाने की जरूरत नहीं है। असल में स्मोकिंग करते समय आप क्या करते हैं?
कुछ धुंआ अपने फेफड़ों के अंदर लेते हैं और फिर उसे बाहर निकाल देते हैं। यह एक तरह का प्राणायाम है। गंदा, बेकार, लेकिन फिर भी प्राणायाम। यह योग करने के जैसा ही है, लेकिन बिना किसी लाभ का। यहां सिर्फ एक ही पाप है, वह है लापरवाही और एक ही पुण्य है सावधानी।
मुझे आपकी स्मोकिंग में कोई दिलचस्पी नहीं। मुझे तो आपकी आदत में रुचि है। कोई भी आदत जो आप पर हावी हो जाती है, वह पाप है। आदमी को स्वतंत्र जीना चाहिए। किसी भी काम को आदत नहीं हालात के अनुसार करना चाहिए। जीवन लगातार बदलता रहता है लेकिन आदत स्थिर होती है।
आप जितना आदतों से घिरे रहेंगे, उतना ही अपनी जिंदगी से दूर होते चले जाएंगे। किसी चीज की आदत डालना बुरा है, क्योंकि यह आपके फैसलों पर भारी पड़ने लगता है। अगर वाकई में आप अपनी जिंदगी के प्रति गंभीर हैं, तो फिर स्मोकिंग छोड़ने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि मैंने कुछ लोगों को स्मोकिंग छोड़ने के बाद च्यूइंगम और पान खाते देखा है। आप भी ऐसा ही कुछ करना शुरू कर देंगे।
आपका अचेतन मन आपको उलझाए रहेगा। आपके मन में कोई ठोस कारण नहीं है स्मोकिंग छोड़ने का, न ही आप में दृढ़ता है। इसलिए आप इसे दोबारा शुरू कर देते हैं, क्योंकि आप ने इसे अपनी चिंताओं और परेशानियों से जोड़ दिया है। आप जितना चाहते हैं, उतनी स्मोकिंग करें, लेकिन चिंतनशील होकर, पूरी ध्यान की अवस्था में। आप देखेंगे कि धीरे-धीरे आपकी सिगरेट कम होती जा रही है और एक दिन अचानक वह आपकी जिंदगी से दूर हो जाएगी।
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