जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: शिक्षा अधिकारियों की कार्यप्रणाली से हाईकोर्ट व शिक्षा निदेशक सख्त नाराज हैं। हाईकोर्ट ने फटकार लगाने के अंदाज में कहा है कि मेरठ समेत (मेरठ जनपद के तीन मामले) प्रदेश भर के शिक्षा अधिकारियों व लखनऊ में बैठे अफसरों की कार्यप्रणाली पर सख्त नाराजगी जाहिर की। साथ ही उनके काम करने व निर्णय लेने के तरीकों को लेकर काबलियत पर सवाल उठा दिए हैं। हाईकोर्ट की नाराजगी के बाद शिक्षा निदेशक (बेसिक) प्रकाश सिंह बघेल ने कहा कि प्रदेश भर के शिक्षा अधिकारियों और कर्मचारियों के मामले में आदेश जारी करने से पहले सोचे।
शिक्षा निदेशक ने आदेश में कहा है कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा सुविचारित एवं तर्कसंगत आदेश नहीं जारी किए जा रहे हैं। उन्होंने इसको लेकर प्रदेश भर के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को भेजे गए आदेश में कहा है कि हाईकोर्ट द्वारा पारित किए गए आदेशों के अनुपालन में कर्मचारियों के हित जहां प्रभावित हो रहे हो, ऐसे तमाम मामलों में संबंधित कर्मचारी को बगैर सुनवाई का मौका दिए ही आदेश पारित किए जा रहे हैं। शिक्षा निदेशक ने नाराजगी का इजहार करते हुए कहा है कि आदेशों में विधिक व्यवस्था व शासनादेश एवं विभागीय कायदे कानूनों का पालन नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा है कि बेसिक शिक्षा अधिकारी कर्मचारियों के उत्तर व स्पष्टीकरणों का संज्ञान लिए बगैर ही आदेश पारित कर रहे हैं। पत्र में फटकार लगाते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के पारित आदेशों के अनुपालन में जिन प्रकरणों में शिक्षकों एवं कर्मचारियों का कार्य प्रभावित हो रहा है, ऐसे प्रकरणों में संबंधित को सुनवाई का अवसर प्रदान करते हुए विधिक व्यवस्था व शासनादेश एवं विभागीय नियमों का उल्लेख करते हुए स्वत: स्पष्ट व सुसंगत आदेश निगत किए जाएं। पत्र में कहा गया है कि आदेशों का गंभीरता से अनुपाल किया जाए। शिक्षा निदेशक बेसिक ने इस संबंध में अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा उत्तर प्रदेश शासन, महानिदेशक स्कूल शिक्षा यूपी शासन व सचिव उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिष प्रयागराज को भी उक्त विषयों पर लिए गए निर्णय की जानकारी पत्र के जरिये भेजी है।
लंबी है फेहरिस्त मेरठी अफसरों की कारगुजारियों की
हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा अधिकारियों द्वारा विभाग शिक्षक व कर्मचारियों से संबंधित मामलों में लिए जाने वाले जिन मामलों को लेकर नाराजगी जतायी है उसकी मेरठ में एक लंबी फेहरिस्त है। अधिकारियों की गैर जिम्मेदार कार्रवाइयों की बात करें तो निमिषा तिवारी, शाबिस्ता सुलतान, कृष्णकुमार त्यागी सरीखे तमाम मामले हैं। जिनमें पीड़ित शिक्षकों को हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा उसके बाद ही उन्हें इंसाफ मिल सका। अन्यथा अधिकारियों ने उनके कॅरियर का नुकसान करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी थी।
मूल तैनाती की जगह बरसों से डीआईओएस दफ्तर में जमे हैं तीन-तीन बाबू
कॉलेजों में मूल तैनाती के बजाय सेटिंग-गेटिंग के खेल के चलते सालों से तीन लिपिक डीआईओएस में (जिला विद्यालय निरीक्षक) कार्यालय में मलाईदार सीटों पर जमें हैं। इन्हें परीक्षा सरीखे बेहद महत्वपूर्ण पटल दिए गए हैं। जिन स्कूलों में इनकी मूल तैनाती है, वहां काम न करके जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में इनकी तैनाती किस वजह से की गयी है, यह अपने आप में बड़ा सवाल बना हुआ है। इस मामले को लेकर अब शासन से शिकायत की गयी है।
जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के संबंधित तीनों लिपिकों की मूल तैनाती सरकार ने संबंधित कॉलेज की जरूरत को ध्यान में रखते हुए की है पर ये तीनों अपनी मूल तैनाती के बजाय जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में मलाईदार सीटों पर जमे हुए हैं। तीनों ही अपनी सीटें छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। अब इनकी जगह जिनको यहां ट्रांसफर किया गया है, उन्हें ज्वाइन ही नहीं कराया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या उन्हें जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय में नहीं लगाया जा सकता? जहां तक लिपिकों की बात है तो इनमें लिपिक जय प्रकाश यादव की मूल तैनाती जीआईजी इंटर कॉलेज कायस्थ बड्ढा, लिपिक प्रीतम सिंह जीआईसी हस्तिनापुर व लिपिक पवन शर्मा जीआईसी गर्ल्स हस्तिनापुर शामिल हैं। पवन शर्मा का प्रमोशन हो चुका है, लेकिन उन्हें रिलीव नहीं किया गया। सफाई दी जा रही है कि पवन शर्मा को प्रमोशन नहीं चाहिए। वह यहीं, मौजूदा सीट पर ही बने रहना चाहते हैं।
चर्चा है कि वह जिला विद्यालय निरीक्षक के चतेते हैं। दफ्तर की अधिकांश जिम्मेदारियां भी उन्हें मिली हुई हैं। माना जा रहा है कि उनको रिलीव नहीं किया जा रहा है। इस मामले को लेकर जब जिला विद्यालय निरीक्षक राजेश कुमार से पूछा गया तो उनका कहना था कि प्रमोशन लेना और न लेना कर्मचारी की मर्जी पर है। उसको बाध्य नहीं किया जा सकता, लेकिन जिन कॉलेजों में मूल तैनाती है, वहां कार्य न लेकर लंबे समय से जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी के सवाल पर उन्होंने कुछ भी स्पष्ट नहीं बताया। ऐसा क्यों किया जा रहा है। पदोन्नति प्रकरणों में को रही देरी माध्यममिक शिक्षा परिषद के शिक्षकों की पदोन्नति के मामले भी काफी लंबे समय से लटके पड़े हैं। इनका निराकरण जिला विद्यालय निरीक्षक के स्तर से होना है, लेकिन जिला विद्यालय निरीक्ष्क स्तर से ऐसे प्रकरणों को भी लटकाया जा रहा है। इस मामले में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के उप्र शिक्षा सेवा चयन आयोग में विलय का हवाला देकर विद्यालयों को वापस करने की बात कही जा रही है। इन मामलों को निस्तारण न होने से भी आक्रोश पनप रहा है। परेशान शिक्षकों को जिला विद्यालय निरीक्षक स्तर से भी राहत नहीं मिल पा रही है। वह चक्कर काटकर परेशान हैं।