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वक्त के दरिया में समा गई ‘हिंडन’

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वक्त के दरिया में समा गई ‘हिंडन’
  • अस्तित्व को छटपटा रही ‘जीवनदायिनी’ हिंडन नदी

जनवाणी संवाददाता |

रोहटा: कभी जीवनदायिनी रही हिंडन नदी कई सभ्यताओं को बहते समय स्थिरता प्रदान करती रही हैं, मगर आज यह नदी खुद मरने के कगार पर है और लोगों के लिए भी घातक साबित हो रही है। सामाजिक व्यवहार के कारण मौत की कगार पर पहुंची इस नदी का पानी जहरीले स्तर से भी अत्यधिक स्तर पर पहुंच गया है। इसमें प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि वह ग्राउंड वाटर को भी प्रदूषित कर रहा है।

खतरनाक केमिकल्स के कारण हिंडन विषैली हो गई हैं। उससे होने वाली खेती आम लोगों के लिए मौत की दस्तक के समान है। स्मय ने जीवनदाता नदियों का ही जीवन छीन लिया है। हिंडन नदी के स्वच्छ नहींं होने के कारण लोग बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषित पानी हिंडन नदी में गिरने से विकट समस्या उत्पन्न हो गई है। नदी किनारे खेतों में उगने वाली सभी फसलें जहरीली हो गई हैं।

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इन फसलों के खाने से हिंडन नदी किनारे बसे गांव के ग्रामीणों और उनके पशुओं में बीमारी का खतरा बढ़ गया है। मेरठ जिले के नदी किनारे बसे गांव पिठलोकर, बपारसी, मुल्हेड़ा, पांचली बुजुर्ग, हर्रा, खिवाई, कलीना, किनौनी, रजापुर, कल्याणपुर, जिटोला आदि गांवों के ग्रामीणों का कहना है कि हिंडन नदी में प्रदूषण दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। हिंडन नदी का अस्तित्व खतरे में है।

इसका पानी पीने लायक तो कभी रहा नहींं, नदी बहते जहरीले पदार्थों से गांवों में हेपेटाइटिस व कैंसर जैसी घातक और खतरनाक बीमारियों की भरमार है। अब इस नदी में प्रदूषण इतना बढ़ चुका है कि जलीय प्राणियों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है। पहले इस नदी से निकलने वाले रेत का प्रयोग शुभ माना जाता था।

‘हिंडन’ को मनुष्य ने बनाया ‘हिडन’

बदलती जीवन शैली अत्याधुनिक सोच मोटी कमाई ने इंसान के लालच, लापरवाही ने हिंडन को ‘हिडन’ बना दिया है, लेकिन जब नदी अपना रौद्र रूप दिखाएगी तब मानव जाति के पास बचाव के कोई रास्ते नहींं मिलेंगे। एक बात और सरकार भले ही यमुना के प्रदूषण निवारण की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाए, जब तक उसमें मिलने वाली हिंडन जैसी नदियां पावन नहींं होंगी, सारा श्रम व धन बेमानी ही होगा।

सात जिलों की 313 फैक्ट्री का बोझ ढो रही हिंडन

एक रिपोर्ट के अनुसार, सात जिलों में से गाजियाबाद की सबसे अधिक फैक्ट्रियों का वेस्ट हिंडन नदी में जाता है। हैरानी की बात यह है कि इन फैक्ट्रियों के खिलाफ सिर्फ कागजों पर कार्रवाई होती है। अगर हकीकत में होती तो हिंडन की यह दुर्दशा नहींं होती। ऐसे में हिंडन नदी अब केवल शोध करने तक ही सीमित रह गई है।

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गाजियाबाद 170, गौतमबुद्धनगर 56, मुजफ्फरनगर 43, सहारनपुर 35, शामली 5, मेरठ 3, बागपत 1 से है। मेरठ जिले की बात करें तो इसमें सर्वाधिक रासायनिक पदार्थों का कचरा किनौनी शुगर मिल कर जा रहा है। जिसके लिए मिल को एनजीटी कई बार फटकार लगा चुकी है, लेकिन मिल अधिकारियों की तानाशाही और मनमानी ने हिंडन को नर्क बनाकर रख दिया है।

25 फीसदी गंदगी गाजियाबाद से

नीर फाउंडेशन के रमन त्यागी ने बताया कि हिंडन नदी को गंदा करने में गाजियाबाद का 25 फीसदी योगदान है, क्योंकि यहां सीवरेज का पानी सही तरीके से ट्रीट किए बिना सीधे हिंडन में डाला जा रहा है। जब तक इस पर रोक नहींं लगेगी तब तक हिंडन को साफ करना मुश्किल है। हिंडन नदी अब केवल शोध करने तक ही सीमित रह गई है।

पूर्व कमिश्नर डा. प्रभात कुमार ने की थी मुहिम की शुरुआत

वर्ष 2018 में मेरठ के कमिश्नर रहते हुए डा. प्रभात कुमार ने नीर फाउंडेशन के रमन त्यागी ने हिंडन नदी को जीवंत करने के बड़े स्तर पर मुहिम चलाई थी, लेकिन के परिवर्तन और हुए तबादले के बाद मुहिम दम तोड़ गई और आज हिंडन अपनी बेबसी किसी पर वापस लौट आई। हिंडन नदी की सफाई के लिए पूर्व कमिश्नर डा. प्रभात कुमार के साथ हजारों लोग उतर गए, हिंडन को निर्मल बनाने के लिए पूर्व कमिश्नर डा. प्रभात कुमार ने जिस मुहिम की शुरुआत की थी वो दम तोड़ चुकी है।