Sunday, June 16, 2024
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मच्छर जनित बीमारियों से कैसे बचें?

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प्रहलाद अग्रवाल |

मच्छरों के पैदा होने के बहुत से स्थान हैं जैसे खुले में पड़ा कबाड़ जिसमें टूटे हुए ऐसे हिस्से जिनमें पानी जमा हो सकता है, टायर के खोल जहां पानी जमा हो सकता है, चिड़ियों को पानी पिलाने के बर्तन, बरामदे में लगी बरसाती, तिरपाल जिसमें झोल के कारण पानी जमा है या ऐसा मकान जिसकी छत या ढाल या लेबल सही नहीं है और उसमें कहीं-कहीं पानी जमा हो जाता है, मच्छरों की उत्पत्ति के अच्छे स्थल साबित होते हैं। इन सभी का पानी पूरी तरह सुखाकर मच्छरों से बहुत हद तक निजात पाई जा सकती है।

मच्छरों एवं रोगों के बढ़ने के कारण सभी जानते हैं लेकिन इनको रोकने के उपाय करना लोग क्यों भूलते हैं? मच्छर मारने में सभी अहम रोल निभाते हैं परन्तु उनके पैदा होने के कारणों को क्यों नहीं दूर करते। जब तक मच्छरों के पैदा होने वाले कारणों को नहीं दूर किया जायेगा, तब तक यह देश मच्छर जन्य बीमारियों से ऐसे ही प्रतिवर्ष अपनी अर्थव्यवस्था को कमजोर करता रहेगा।

मच्छर उन्मूलन सलाहकार समिति जबलपुर ने रिसर्च के बाद पाया है कि वर्तमान में देश भर में पूरे वर्ष मच्छरों की बढ़ती आबादी का प्रमुख कारण छोटी-बड़ी खुली नालियां ही हैं जो मच्छरों को लगातार प्रतिवर्ष बढ़ा रही हैं। देश में उपरोक्त सभी बीमारी फैलाने वाले 90 प्रतिशत मच्छरों का उत्पादन इन्हीं नालियों में हो रहा है। यदि इन नालियों की सही व्यवस्था कर दी जाये तो मच्छरों पर बहुत हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है। क्या है नालियों की सही व्यवस्था, क्र मश: जानें।
कैसे निपटा जाए मच्छरों एवं मच्छरजन्य बीमारियों से मच्छरों का उत्पादन रोकना एवं मच्छरों को काटने से रोकना, ये ही दो उपाय हैं जिनसे मच्छरजन्य बीमारियों को फैलने से रोका जा सकता है, इसके लिए शासन प्रशासन अकेला कुछ नहीं कर सकता जब तक इस कार्य में जनता भी अपनी सहभागिता न दे। जनता की सहभागिता क्या हो सकती है, जानें।

अपने घर के अंदर बाहर की छोटी-बड़ी नालियों में यदि पानी रूका हो या कीचड़ बना रहता हो तो इन नालियों में गौर से देखें क्या इनमें बिलबिलाते कीड़े नजर आ रहे हैं या इस पानी, कीचड़ में हल्की हल्की हलचल भी नजर आ रही है, विशेषकर तब, जब पानी एक दम स्थिर हो। यदि हां तो ये मच्छर के लार्वा, प्यूपा के रेंगने की हलचल है जो मच्छर के बच्चे कहलाते हैं। इनमें से कुछ दिन में पंख सहित मच्छर निकलता है। यह सायकिल जब लगातार चलती है तब प्रतिदिन भारी मात्र में इन नालियों से मच्छर निकलने लगते हैं। इन लार्वा, प्यूपा को सप्ताह में नालियों का ड्राई स्कैम कर एक बार नाली को पूरी तरह सुखा कर मारा जा सकता है क्योंकि पानी के अभाव में ये मर जाते हैं। जैसे मछली बिन पानी के नहीं जी सकती वैसे ही लार्वा प्यूपा बिना पानी के जीवित नहीं रह पाते।

पानी की टंकियां घर की हों या सार्वजनिक वितरण की, बड़ी टंकियां यदि पूरी तरह बंद नहीं हैं यानी ऊपर से ढकी नहीं हैं तो इनमें मच्छर तेजी से पनपते हैं। इनमें मच्छरों के बच्चों का भंडार मौजूद हो सकता है।

आपने देखा होगा सार्वजनिक पानी वितरण में कुछ क्षेत्रों से पानी में कीड़े निकलने की शिकायतें, अखबारों में छपती हैं। ये कीड़े कुछ और नहीं, मच्छरों के लार्वा, प्यूपा ही रहते हैं। ऐसे शिकायत वाले क्षेत्रों की पानी की टंकियों के ढक्कनों की अवश्य जांच की जानी चाहिये कि वे खुले तो नहीं रहते या सड़ गल तो नहीं गये अन्यथा उस क्षेत्र के आस पास मच्छरों की भरमार वर्ष भर बनी रहेगी।

निर्माणाधीन मकान की छतों में जमा पानी, सेप्टिक टैंक या पानी के लिए बनाया गया टैंक में जमा पानी भी मच्छरों को भारी मात्र में पैदा करता है। निमार्णाधीन मकान के आसपास के लोग इनके कारण मच्छरों की भरमार से परेशान रहते हैं। ऐसे निमार्णाधीन मकान मालिक, ठेकेदार को मच्छरों की पैदावार रोकने के लिए दबाव आसपास के लोग अवश्य बनायें। उन्हें टैंक को ढकने एवं जहां भी मच्छर पैदा हो रहे हैं, वहां कीटनाशक दवा डालने को कहें।

घर-घर में सजावट के लिए रखे पानी के पाट, गुलदस्ता, पानी का बर्तन जिसमें शो के लिए कमल या अन्य पौधे लगाये जाते हैं जो केवल पानी में ही तैरते हैं, ऐसे पाट भी मच्छरों के जन्म स्थल होते हैं। इनका पानी प्रति सप्ताह गमलों में या बगीचों में पलट दिया जाना चाहिए। नालियों में इस पानी को न फेंकें अन्यथा इसमें मौजूद लार्वा-प्यूपा या अंडों से नाली में ही मच्छर की फौज तैयार हो जायेगी और जहां भी नाली खुली दिखेगी, वहां से वह फौज बाहर निकलकर निकटतम घर में पनाह ले लेगी।

इसके अलावा भी मच्छरों के पैदा होने के बहुत से स्थान हैं जैसे खुले में पड़ा कबाड़ जिसमें टूटे हुए ऐसे हिस्से जिनमें पानी जमा हो सकता है, टायर के खोल जहां पानी जमा हो सकता है, चिड़ियों को पानी पिलाने के बर्तन, बरामदे में लगी बरसाती, तिरपाल जिसमें झोल के कारण पानी जमा है या ऐसा मकान जिसकी छत या ढाल या लेबल सही नहीं है और उसमें कहीं-कहीं पानी जमा हो जाता है, मच्छरों की उत्पत्ति के अच्छे स्थल साबित होते हैं। इन सभी का पानी पूरी तरह सुखाकर मच्छरों से बहुत हद तक निजात पाई जा सकती है।

मच्छरजन्य प्राणघातक बीमारियों से यदि बचना है तो मच्छरों को किसी भी हाल में काटने न दें भले ही आपको फुल शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनना पड़े, शरीर के खुले अंगों पर मच्छर रोधी क्र ीम या नारियल/सरसों तेल में नीम तेल मिक्स कर शरीर पर लगाना पड़े और रात्रि में मच्छरदानी में सोना पड़े।

याद रखें, मच्छर का काटना पागल कुत्ते के काटने के समान प्राणघातक हो सकता है। पागल कुत्ते के काटने पर तुरंत इंजेक्शन लगवा कर बचा जा सकता है परन्तु मच्छर के काटने से होने वाली बीमारी डेंगू से बचाव का इंजेक्शन एवं दवा अब तक उपलब्ध नहीं हैं। एक बार बीमारी होने पर परेशानियों के साथ जान का भी खतरा इस बीमारी में रहता है, इसलिए जिस तरीके से आप कुत्ते के काटने से डरते हैं या बचाव करते हैं, उसी तरह मच्छरों से काटने का बचाव स्वयं एवं बच्चों का अवश्य करें।

गर्भवती महिलाओं के गर्भपात एवं पांच वर्ष से छोटे बच्चों की मृत्यु का बहुत बड़ा कारण यही मच्छरजन्य बीमारियां हैं जो मच्छरों के काटने से ही फैलती हैं। अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर माह में आने वाला बुखार प्राय: मच्छरों के काटने का ही परिणाम है, इसलिए मच्छरों से डरना प्रारंभ करें, तभी आप इन प्राणघातक बीमारियों से अपने को बचा पायेंगे क्योंकि दवाओं के बेअसर होने एवं मच्छरों के शक्तिशाली हो जाने से अब मच्छरों का काटना भी प्राणघातक बन सकता है।


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