Saturday, July 27, 2024
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कैसे सुधरेगी स्वास्थ्य सेवाओं की सेहत

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Nazariya 22


RAJENDRA KUMAR SHARMAअर्थशास्त्र का एक प्रमुख सिद्धांत है मांग और आपूर्ति जिसके अनुसार आपूर्ति की आवश्यकता वहां अनिवार्य हो जाती है जहां मांग हो। कई क्षेत्र और समान ऐसे हैं जिनमें मांग अधिक है पर आपूर्ति कम है। जबकि लगभग समतुल्य क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां मांग कम और आपूर्ति अधिक है। ऐसे में देश के राजस्व को न्यायोचित उपयोग हेतु, थोड़े निवेश से आंशिक समतुल्य को पूर्ण समतुल्य बनाया जाए और मांग को पूरा कर दिया जाए। इसके दो मुख्य फायदे होंगे, एक तो कम निवेश में कुशल लोग मिल सकते हैं साथ ही जरूरतमंदों की मदद हो सकेगी, देश के अंतिम नागरिक तक सुविधाएं पहुंचाने में मदद मिलेगी। यह देश की स्वास्थ्य सेवाओं और एमबीबीएस चिकित्सकों के संदर्भ बिलकुल सटीक बैठता है। हाल ही में एक प्रदेश की विधानसभा में एक प्रश्न के उतर में बताया गया कि 2020-21 के बाद से सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेजों से उत्तीर्ण होने वाले 2,653 एमबीबीएस छात्रों में से 70 प्रतिशत या 1,856 ने सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को ज्वाइन ही नहीं किया। सरकार की प्रश्न के उतर में प्रतिक्रिया थी कि इन छात्रों को सब्सिडी वाली चिकित्सा शिक्षा मिलती है और बदले में उन्होंने सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य सुविधाओं-मुख्य रूप से ग्रामीण या दूरदराज के क्षेत्रों में एक वर्ष तक सेवा करने के लिए एक बांड पर हस्ताक्षर किए होते हैं। स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि बांड प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य सुविधाओं को स्वास्थ्य पेशेवरों की सुनिश्चित आपूर्ति मिले। करीब पांच साल पहले एमबीबीएस छात्रों को तीन साल की सेवा के लिए डेढ़ लाख रुपये के बांड पर हस्ताक्षर करना पड़ता था। कोविड अवधि के दौरान, सिस्टम में व्यापक बदलाव आया और वर्तमान में छात्रों को स्वास्थ्य विभाग द्वारा चुनी गई सरकार द्वारा संचालित सुविधा में एक वर्ष के लिए सेवा करनी होती है या बांड राशि के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता है। आंकड़ों से यह भी संकेत मिलता है कि 1,856 डॉक्टरों में से जो सरकार द्वारा संचालित सुविधाओं में सेवा में शामिल नहीं हुए हैं, उनमें से 70 प्रतिशत या 1,310 को अभी भी बांड राशि का भुगतान करना बाकी है जो 65.4 करोड़ रुपये है। उपरोक्त स्थिति का सामना सिर्फ किसी एक प्रदेश ही नहीं, बल्कि अन्य प्रदेशों को भी इस स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। यह पूरे देश की समस्या है कि चिकित्सा शिक्षा पर भारी भरकम व्यय करने के बाद भी सरकार को कुछ विशेष उपलब्ध होता प्रतीत नहीं हो रहा है। विशेषज्ञों ने कहा कि ऐसे समय में जब सरकार जिला स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने की योजना बना रही है, चिकित्सा अधिकारियों (एमओ), जो आम तौर पर एमबीबीएस पास-आउट होते हैं, की कमी मानव संसाधन की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है। विशेषज्ञों ने कहा कि यह प्रवृत्ति ऐसे कई इलाकों में आबादी को बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए दूर तक यात्रा करने के लिए मजबूर करती है, जिससे बड़े शहरों में अस्पतालों का बोझ बढ़ जाता है। एमबीबीएस करने के उपरांत बॉन्ड के तहत सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल नहीं होने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे-ऐसे दूरदराज के क्षेत्रों में नियुक्ति होना, जहां आने जाने के साधनों की अनुपलब्धता है या सीएचसी/पीएचसी पर दवाओं और अन्य सुविधाओं का न होना, मरीजों का कम संख्या में होने के कारण नवनियुक्त चिकित्सकों को यह समय और हुनर की बरबादी लगने लगती है, क्योंकि वे अधिक से अधिक अनुभव प्राप्त करना चाहते हैं।

कारण उपरोक्त में से जो भी हो, परंतु यह सरकार द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने के प्रयासों में एक बड़ा अवरोधक है। साथ ही राजस्व की बरबादी भी है। विकसित देशों के संगठन आॅर्गनाइजेशन आॅफ इकनॉमिक कोआॅपरेशन एंड डिवेलपमेंट (ओईसीडी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में सबसे बेहतर डॉक्टर अनुपात आॅस्ट्रिया में हैं, जहां हर हजार लोगों पर 5.5 डॉक्टर हैं। ब्रिटेन में 3.2 और अमेरिका में यह अनुपात 2.6 का है। चीन में भी प्रति हजार व्यक्तियों पर 2.4 डॉक्टर हैं, जबकि भारत में मात्र 0.9। अपर्याप्त चिकित्सकों का एक मुख्य कारण ब्रेन ड्रेन की समस्या भी है। विकसित देशों में जाकर स्वास्थ्य सेवाएं देने में भी भारतीय डॉक्टर्स प्रथम स्थान पर हैं। सबसे अधिक भारत से चिकित्सक, विदेशों की ओर रुख कर रहे हैं। इस मामले में पाकिस्तान दूसरे स्थान पर है। सबको स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए सरकारों को दूरगामी और वैकल्पिक परियोजनाओं पर कार्य करना होगा। बीडीएस (बैचलर आॅफ डेंटल सर्जरी) जिसका आरंभिक पाठ्यक्रम एमबीबीएस के समतुल्य होता है, प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में बी डी एस तैयार किए जा रहे हैं। पर उस अनुपात में उनके लिए देश में रोजगार उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में कई बीडीएस अपना व्यवसाय ही बदल लेते हैं और शिक्षण जैसे व्यवसाय में आ जाते हैं। क्या बीडीएस चिकित्सकों को ब्रिज कोर्स जैसे कम निवेश वाले माध्यम से, चिकित्सकों की कमी से जूझते देश को राहत नहीं पहुंचाई जा सकती? जिन दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्रों में नव आंगतुक एमबीबीएस डॉक्टर्स नहीं जाना चाहते, वहां ब्रिज कोर्स द्वारा तैयार किए बीडीएस चिकित्सक सहर्ष ही सेवाएं देने के लिए तैयार रहेंगे और इसका सबसे बड़ा फायदा लोगों की ओरल हेल्थ सुधारने में मिलेगी, जिसे लगभग 60 फीसदी बीमारियों का कारण माना जाता है। ब्रिज कोर्स जैसी वैकल्पिक कार्ययोजना देश की स्वास्थ्य सेवाओं को सेहत प्रदान करने में योगदान दे सकती है।


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