Friday, April 19, 2024
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अपराध निजी या दीवानी प्रकृति का तो एससी-एसटी एक्ट में भी कानूनी प्रक्रिया रद्द कर सकती है अदालतें

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जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी अदालत को ये लगता है कि एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज हुआ अपराध, प्राथमिक रूप से निजी या दीवानी प्रकृति का है या अपराध पीड़ित की जाति को लक्षित करके नहीं हुआ है, तो अदालत मुकदमे की प्रक्रिया को रद्द करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है।

चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, अदालतों को ध्यान में रखना चाहिए कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 15, 17 और 21 में वर्णित सांविधानिक सुरक्षा को लागू करने के मद्देनजर बनाया गया है। इसका दोहरा उद्देश्य इन कमजोर समुदायों के सदस्यों की रक्षा करना और साथ ही जाति के कारण उत्पीड़न झेलने वाले पीड़ितों को राहत और पुनर्वास प्रदान करना है।

कोर्ट ने कहा, दूसरी ओर जब कोर्ट के सामने यह तथ्य आए कि जिस अपराध पर विचार हो रहा है, हालांकि वह एससी-एसटी कानून के तहत दर्ज हुआ है, लेकिन प्रथमदृष्टया वह निजी या दीवानी प्रकृति का है, अथवा कथित अपराध पीड़ित की जाति को लक्षित करके नहीं हुआ है, या जिसमें कानूनी प्रक्रिया का जारी रहना वास्तव में कानून का दुरुपयोग है, तो संबंधित अदालत कानूनी प्रक्रिया को खारिज करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है।

शीर्ष अदालत ने ये टिप्पणी एससी-एसटी (प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज) एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया को रद्द करने का आदेश देते हुए की। इस व्यक्ति को निचली अदालत ने एससी/एसटी एक्ट में दोषी ठहराया था और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा था।

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