जर्नलिज्म के डोमेन में कामयाबी व्यक्तिगत कौशल, प्रतिभा और कठिन मेहनत पर निर्भर करती है। विश्व में जिस तेजी से विकास का ग्राफ ऊपर जा रहा है और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है, तो इस स्थिति में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटनाएं भी तेज रफ्तार से करवटें ले रही हैं। इन सभी तब्दीलियों के आईने में आने वाले समय में तेजी से उभरते हुए कॅरियर डोमेन के रूप में जर्नलिज्म का भविष्य अपार संभावनाओं से भरा हुआ है।
भूतपूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री माग्रेट थैचर ने एक बार जाम्बिया प्रेस एसोसिएशन अवार्ड्स के मौके पर अपने भाषण में कहा था, ‘जर्नलिजम एक ऐसा कॅरियर है जिसके लिए सर्वाधिक ऊंचे किस्म की व्यावसायिकता की जरूरत होती है। इस प्रॉफेशन में उतनी ही उत्कृष्ट क्वालिटी की जिम्मेदारी की भी जरूरत होती है।
इसका मुख्य कारण यह है कि सत्य के रहस्योद्घाटन और कपटी और सनसनीखेज रहस्योद्घाटन के मध्य की रेखा खतरनाक रूप से काफी पतली होती है।’ जब जर्नलिजम की बात करते हैं तो जेहन में सबसे पहले जो छवि उभरती है वह है समाचार की दुनिया और उसमें काम करनेवाले पत्रकारों और अन्य प्रोफेशनल्स की। सामान्य रूप से जर्नलिजम मैगजीन, प्रिन्ट मीडिया, ब्लॉग, न्यूजपेपर, न्यूज वेबसाईट के लिए लिखने की कला को कहते हैं।
जर्नलिजम के अंतर्गत प्रिंट, रेडियो, इंटरनेट, टेलीविजन, ब्लॉग और अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए न्यूज लिखने, रिपोर्टिंग करने, एडिटिंग करने, फीचर लिखने, फोटोजर्नलिजम करने इत्यादि कार्यों को शामिल किया जाता है। इस प्रॉफेशन में न्यूज, उससे संबंधित कमेन्टेरी और फीचर मटेरियल्स का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उदाहरण के लिए न्यूजपेपर, पत्रिकाएं, ब्लॉग्स, वेबकास्ट्स, पोडकास्ट्स, सोशल नेटवर्किंग और सोशल मीडिया साइट्स और ईमेल माध्यमों के लिए कलेक्शन, आॅर्गनाइजेशन और प्रजेंटेशन किया जाता है।
सच पूछिए तो एक जर्नलिस्ट का कार्य आसान नहीं होता है। इस डोमेन में सफलता के लिए निरंतर कठिन मेहनत और खुद को अपडेट करते रहना पड़ता है। इक्कीसवीं सदी के मॉडर्न युग में इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के तेजी से ग्रोथ के कारण न्यूज पढ़ने और उसे दर्शकों और पाठकों तक प्रस्तुत करने के तरीकों में काफी तब्दीलियां आई हैं। जर्नलिजम के क्षेत्र में सफलता के फंडा के बारे में कहा जाता है कि जो दिखता है वही बिकता है और इस पैरामीटर पर खरा उतरने के लिए एक पत्रकार को कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
कहा जाता है कि न्यूज की कहानी और आर्टिकल की क्वालिटी किसी खूबसूरत महिला के द्वारा पहनी गई मिनी स्कर्टजैसी होनी चाहिए। यह इतनी लंबी हो कि पूरा शरीर ढक जाए लेकिन यह इतनी छोटी भी हो कि देखनेवालों को अनायास अपनी तरफ खींच ले। अर्थात न्यूज और अन्य रचनाएं इस तरह से लिखी जाएं और प्रस्तुत की जाएं, जो पाठकों की बौद्धिक क्षमता के अनुकूल हों और उन्हें अपने जीवन में सफलता के मुकाम तक पहुंचने के लिए प्रेरित करती हो। जर्नलिजम के स्टैन्डर्ड का यही पैमाना दर्शकों और पाठकों को अपनी तरफ खींचे रहने के लिए किसी उत्प्रेरक का कार्य करता है।
आवश्यक अनिवार्य कौशल
जर्नलिज्म में प्रवेश के लिए शुरूआत कहां से करें?
- बैचलर ऑफ मास मीडिया एण्ड जर्नलिजम
- बैचलर ऑफ कम्यूनिकेशन एण्ड जर्नलिजम
- बीएससी इन जर्नलिजम एण्ड मास कम्यूनिकेशन
- बीए इन मीडिया कम्यूनिकेशन
- बीए इन जर्नलिजम
- बीबीए इन मास कम्यूनिकेशन एण्ड जर्नलिजम
- एमए इन जर्नलिजम एण्ड मास कम्यूनिकेशन
- एमएससी इन मास कम्यूनिकेशन
कुछ संस्थाएं पत्रकारिता में एक वर्ष की सर्टिफिकेट कोर्स भी कन्डक्ट कराती है जिसके लिए एलिजबिलिटी 12वीं पास की होती है।
प्रमुख संस्थान
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन, नई दिल्ली
- जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ कम्यूनिकेशंस, मुंबई
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिजम एंड न्यू मीडिया, बैंगलोर
- एजेके मास कम्यूनिकेशन एड रिसर्च सेंटर, नई दिल्ली
- सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी, पुणे
- अमिटी स्कूल ऑफ कम्यूनिकेशन, नोएडा
- एपीजे इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन, नई दिल्ली
- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़
- अमिटी यूनिवर्सिटी, लखनऊ
- सिम्बयोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया एंड कम्यूनिकेशन, पुणे
- लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वीमेन, नई दिल्ली
- क्राइस्ट कॉलेज, बैंगलोर
- स्कूल ऑफ कम्यूनिकेशन, मणिपाल
- इंद्रप्रस्थ कॉलेज फॉर वीमेन, नई दिल्ली
- मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज
पत्रकारिता पर ज्ञान देना अलग बात है। सत्य को स्पष्ट रूप से प्रकाशित करने की सामर्थ्य भारतवर्ष के अधिकतर बड़े संस्थानों में नहीं है। दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान… यह तीन ऐसे समाचार पत्र हैं, जो केवल उतना ही सच दिखाते हैं, जितने में इनके संस्थानों और मालिकों के घरों पर सरकारी छापेमारी न हो जाये। दैनिक जागरण के सीईओ संजय गुप्त सरकारी प्रतिष्ठान प्रसार भारती के बोर्ड ऑफ मेंबर हैं। ऐसे में, इनसे सत्य की उम्मीद है आपको? बेईमानो से ईमानदारी की उम्मीद रखना भी बेईमानी है साहब..। हज़ारों बच्चे विभिन्न मीडिया संस्थानों से पढ़ाई करके निकलते हैं। सुहाने सपनों को आंखों में संजोए क्रांतिकारी पत्रकारिता को लेकर धरातल पर जब आते हैं, तब इस व्यवसाय (जैसा कि आपने अपने लेख में लिखा) की गंदगी से रूबरू होते हैं। महोदय, मुझे यह लिखने में तनिक भी गुरेज नहीं कि, आप जैसे लेखकों ने ही राष्ट्र और समाज की इस पवित्र सेवा को व्यवसाय बना डाला। अपने अंदर झांकिए। अंतर्मन को टटोलिये। आत्मा की आवाज़ सुनें। पत्रकारिता को व्यवसाय न बनाएं। सेवा भाव में आत्मसंतोष भी मिलेगा और सम्मान भी। जय हिन्द…🇮🇳✍️🙏