Wednesday, December 11, 2024
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भाजपा को चुकानी पड़ सकती है गन्ना मूल्य न बढ़ाने की कीमत

  • किसान आहत भी हैं और आक्रोशित भी, गुस्सा योगी सरकार पर

मुख्य संवाददाता |

सहारनपुर: कृषि कानूनों की मुखालफत में आंदोलित किसानों को प्रदेश की योगी सरकार से एक और झटका लगा है। दरअसल, गन्ना मूल्यों में बढ़ोतरी न किए जाने से किसान अब आगबबूला हो उठे हैं। सरकार को भले ही इसका भान न हो परंतु सचाई ये है कि पश्चिम में भाजपा की सियासी फसल पर संकट के बादल मंडराने शुरू हो गए हैं। चूंकि, गन्ना उत्पादन में वेस्ट यूपी अव्वल है और यहां के किसान अगर नाखुश रहे तो भावी विधान सभा चुनाव में भाजपा को गन्ना मू्ल्य न बढ़ाने की कीमत चुकानी ही पड़ेगी।

यह बताने की आवश्यकता है कि देश में उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जो सर्वाधिक गन्ना उत्पादन करता है। मुल्क में गन्ने के कुल रकबे का 51 प्रतिशत और चीनी उत्पादन का 38 फीसद यूपी में होता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश की कुल 520 चीनी मिलों में 119 मिलें सिर्फ यूपी में हैं।

एक अनुमान के मुताबिक लगभग 48 लाख गन्ना किसान हैं। इनमें से अधिकांश अपने गन्ने की आपूर्ति इन्हीं चीनी मिलों में करते हैं। सहारनपुर के बड़े गन्ना किसान और भाकियू से जुड़े मुकेश तोमर का कहना है कि लगातार डीजल का दाम बढ़ रहा है।

अब वर्तमान में डीजल 79 प्रति लीटर से भी अधिक है। डीजल का दाम पिछले तीन सालों में 22 फीसद से अधिक बढ़ गया है। लेकिन, गन्ना मूल्य में सरकार ने कोई बढ़ोतरी नहीं की है। एक और गन्ना किसान अरुण राणा कहते हैं कि डीजल क्या, खाद-बीज और बिजली दर सब कुछ में बढ़ोतरी की गई है। फिर क्या वजह है कि गन्ना मूल्य सरकार नहीं बढ़ा रही है। वह कहते हैं कि सरकार की मिल मालिकों से साठगांठ है।

फिलहाल, गन्ना मूल्य को लेकर पश्चिम के किसान आहत हैं और आक्रोशित भी। यह लाजिमी भी है। क्योंकि प्रदेश में अब तक किसानों का मिलों पर 10,174 करोड़ रुपये बकाया है। इसमें ब्याज अलग से है जो कि नहीं दिया जा रहा। ऐसे में सत्तानशीं भीजपा के लिए आने वाला समय बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। चूंकि पश्चिम में सियासत का आधार गन्ना है।

ऐसे में गन्ना मूल्य में तीसरे साल भी कोई बढ़ोतरी न करने से किसान भाजपा से कन्नी काट लें तो स्वाभाविक है। इन दिनों कृषि कानूनों की मुखालफत में आंदोलन की तपिश को गन्ना मूल्य न बढ़ाए जाने से और ज्यादा गर्माहट मिल गई है। रालोद इस बात को अच्छी तरह समझ रहा है।

इसीलिए जगह-जगह रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी पंचायतें कर रहे हैं। खापों की एका और भाजपा का बहिष्कार करने का भाकियू का फैसला भी कम अचरज भरा नहीं है। फिलहाल, पश्चिम का किसान मुट्ठियां ताने हुए मैदान में है। कृषि कानूनों की मुखालफत जारी है और गन्ना मूल्य को लेकर भी आक्रोश भड़कता जा रहा है।

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