अजीत शर्मा ‘आकाश’ |
अवधी भाषा में रचित ‘वाह रे पवन पूत’ कवि असविन्द द्विवेदी की 120 छंदों की काव्य कृति है। पुस्तक के प्रारम्भ में सतगुरु, शारदा, गणेश, हनुमान आदि की वंदना के 12 और मूल के कथानक के 108 छंद हैं। रामकाव्य परम्परा की इस पुस्तक की कथावस्तु रामायण के लंकाकांड में मेघनाद के प्राणघातिनी शक्ति-प्रहार से लक्ष्मण के मूर्च्छित होने से प्रारंभ होती है। इसके पश्चात हनुमान जी का सुषेण वैद्य को लाना एवं संजीवनी बूटी के लिए प्रस्थान, कालनेमि प्रकरण, मकरी उद्धार, भरत के बाण से उनका मूर्च्छित होना, भरत-हनुमान संवाद, बन्धु-शोक में राम-विलाप, हनुमान का संजीवनी लेकर वापस लौटना, लक्ष्मण के स्वस्थ होने तथा हनुमान के प्रति राम के कृतज्ञता-ज्ञापन तक के वृत्तान्त का शब्द चित्रांकन किया गया है। अदम्य साहस एवं अतुलित शक्ति के भंडार रामभक्त हनुमान के पौरूष, बल, विक्रम, पराक्रम तथा उनके अपराजेय एवं वीरोचित स्वरूप का पुस्तक में वर्णन करने की चेष्टा की गई है।
अपने कर्तव्य के प्रति तत्परता, बौद्धिकता, तर्कशीलता तथा उनकी प्रत्युत्पन्न मति का भी परिचय प्रदान किया गया है। उनके आत्मविश्वास को प्रदर्शित करता हुई ये पंक्तियां-कहैं हनुमान प्रभु एतना हिरासा जिनि, लखन कै प्रान हम जीते निकरै न देब/नोचि-नाचि मीज माँजि गारिके चनरमॉ कअ, अमृत निकारि कअ लखन के पियाइ देब। रस-अलंकार योजना के अंतर्गत कृति में वीर रस, हास्य रस, करुण रस, भक्ति रस एवं शान्त रस तथा अनुप्रास, यमक, श्लेष, गर्वाेक्ति, विरोधाभास आदि अलंकारों का यथास्थान सहज प्रयोग है।
1999 में पुस्तक के रचनाकार असविन्द द्विवेदी का 42 वर्ष की अल्पायु में ही देहावसान हो गया था। उनके गांव के निकट के निवासी, कण्व कुमार मिश्र ‘इश्क सुल्तानपुरी’ ने अपने व्यक्तिगत संसाधनों से इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण प्रकाशित कराया है। इस हेतु वह अत्यन्त साधुवाद एवं बधाई के पात्र हैं। यह पुस्तक आध्यात्मिक एवं भक्ति साहित्य के पाठकों को यह अत्यन्त रूचिकर प्रतीत होगी।
पुस्तक: वाह रे पवन पूत, रचनाकार: असविन्द द्विवेदी, प्रकाशक: गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज, मूल्य: 100 रुपये।