देवी शरण वैश्य
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति हर स्थिति को सहन करने में सक्षम होता है। जिसका मन बीमार है, वह प्रतिकूल स्थिति में अशांत व बैचैन हो जाता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में सहिष्णुता होती है। ऐसा व्यक्ति हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहता है। जो व्यक्ति असहिष्णु होते हैं, उन्हें मानसिक संवेगों का सामना करना पड़ता है। वे बाहरी घटनाओं से शीघ्र प्रभावित होते हैं और वे तत्काल भावुक या क्रोधित हो उठते हैं।
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का आपस में गहरा संबंध है। मन के विकारग्रस्त होने से शरीर रोगग्रस्त हो जाता है और शरीर के रोगी होने से मन भी प्रभावित होता है। महर्षि चरक ने भी कहा है कि केवल शरीर में विकार उत्पन्न होने से ही मनुष्य रोगी नहीं होता बल्कि मन आत्मा और प्राण में विकार उत्पन्न होने से भी वह रोगग्रस्त होता है।
मन के विकारग्रस्त होने से शरीर अनेक बीमारियों का शिकार हो जाता है। मन के विकार मुक्त रहने से शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ तन और मन हमारे लिए कल्याणकारक होते हैं तथा रोगी मन हमारे लिए सदा परेशानी का कारण होता है। आज सुख-सुविधाओं के सभी आधुनिक साधन जुटा लेने के बाद भी मानव मन हैरान-परेशान है। आज स?पूर्ण विश्व के सामने मानसिक स्वास्थ्य की समस्या एक चुनौती बनकर खड़ी है।
शरीर के समान मन का कोई स्थूल आकार नहीं है। मन के सूक्ष्म होने के कारण वह हमें दिखलाई नहीं देता। उसे उसके कार्यों से जाना जाता है। वह शरीर की सभी इंद्रियों का संचालक और नियंत्रक है। स्मृति, कल्पना, चिंतन और तर्क-वितर्क आदि मन के सामान्य कार्य हैं। यदि मन नहीं होता तो सब इंद्रियों का अपना अपना कार्य होता। मन इंद्रियों द्वारा ग्रहण किये गये विषयों को संकलित करता है। मन नहीं होता तो इंद्रियों द्वारा ग्रहण किये गये विषयों का संकलन नहीं हो पाता और मानव विकास की प्रक्रि या अवरूद्ध हो जाती।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए धैर्य अति आवश्यक होता है। धैर्य के अभाव में मानसिक कठिनाइयों से छुटकारा पाना मुश्किल होगा। धैर्यवान मानसिक कठिनाइयों से आसानी से छुटकारा पा लेता है। धैर्यवान व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी नहीं घबराता। विषम परिस्थितियों में भी वह अडिग बना रहता है। अप्रिय बातों को सुनकर भी वह अशांत नहीं होता। ऐसा धैर्यवान व्यक्ति विकट परिस्थितियों से घिरकर भी मन को विकृत नहीं होने देता।
मन को नियंत्रित करके मानसिक रूप से स्वस्थ रहा जा सकता है। मन का कार्य ज्ञानात्मक और चिंतात्मक दोनों तरह का है। जिसका मन नियंत्रित है वह विकट परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होता। मन को आत्मानुशासन के अभ्यास से नियंत्रित किया जा सकता है। अनियंत्रित मन वाले लोग मानसिक रूप से चंचल होते हैं। बाहरी घटनाओं से मन बेचैन हो उठता है, मानसिक तनाव पैदा होते हैं और शरीर अनेक बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है।
अनियंत्रित मन वाला व्यक्ति परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार कोई निर्णय लेता है। आज के समाज मनोविज्ञान और समाज शास्त्र में परिस्थितिवाद अधिक प्रभावी हैं। वातावरण, परिवेश और परिस्थिति हमारे लिए निर्णायक बन गए हैं।
आज मनुष्य की प्रकृति को भुला दिया गया है और मनुष्य की प्रकृति को जाने बगैर परिस्थिति के अनुसार सारे निर्णय लिए जा रहे हैं जिससे बहुत-सी भ्रान्तियां उत्पन्न होती हैं। परिस्थिति का अल्पकालिक मूल्य होता है जबकि प्रकृति स्थायी तत्व है।
मन की बीमारी से व्यक्ति को जितनी परेशानी होती है, उतनी शरीर की व्याधि से नहीं होती। मन से निरंतर काम लेते रहने, निरंतर चिंतन, स्मृति और कल्पना करते रहने से मन रोगग्रस्त हो सकता है। मानसिक स्वास्थ्य को कायम रखने हेतु उसे विश्राम देना आवश्यक होता है। स्मृति, कल्पना और चिंतन का नियमन करने से मन को विश्राम मिलेगा मानसिक शक्ति बढ़ेगी और मानसिक स्वास्थ्य कायम रहेगा।
मनोबल को मजबूत बनाये रखकर मानसिक रूप से स्वस्थ रहा जा सकता है। कहा भी गया है कि ज्ञानी के लिए दुनिया आनंदमय है जबकि अज्ञानी के लिए यह दुनिया दुख का भंडार है। जिस व्यक्ति का मनोबल मजबूत है, उसके लिए इस दुनिया में दुख है ही नहीं। वह किसी भी विकट परिस्थिति में विचलित नहीं होता। अपने दृढ़ मनोबल के सहारे वह विकट परिस्थितियों पर भी नियंत्रण पाने में सफल होता है। उसका मानसिक स्वास्थ्य भी नहीं बिगड़ता।
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति हर स्थिति को सहन करने में सक्षम होता है। जिसका मन बीमार है, वह प्रतिकूल स्थिति में अशांत व बैचैन हो जाता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में सहिष्णुता होती है। ऐसा व्यक्ति हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहता है। जो व्यक्ति असहिष्णु होते हैं, उन्हें मानसिक संवेगों का सामना करना पड़ता है। वे बाहरी घटनाओं से शीघ्र प्रभावित होते हैं और वे तत्काल भावुक या क्र ोधित हो उठते हैं।