Thursday, April 25, 2024
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शोध के बाद ही बनाए जाएं कानून

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  • कृषि कानून को लेकर हो रहे विरोध के बीच जनवाणी की आर्थिक विशेषज्ञों से परिचर्चा

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: जनहित से जुड़े मुद्दों को कानून बनाने से पहले सभी सरकारों को विभिन्न शोध करने चाहिए। जिससे कानून बनने के पश्चात उसका विरोध न हो तथा जिस कार्य के लिए उस कानून को बनाया गया हो। उससे जनहित का भला हो पाए। ये बात जनवाणी की टीम से शुक्रवार को कृषि कानून पर हो रहे विरोध व सरकार द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने की नीति को लेकर आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों ने बातचीत में कही।

उन्होंने कहा कि हम कोई भी योजना अगले पांच वर्षों पर आधारित ना बनाएं। क्योंकि अगर अगले पांच वर्षों में किसानों की आय वृद्धि होगी तो महंगाई की वृद्धि भी तीव्र गति से बढ़ेगी। जिससे आय दोगुनी होने के पश्चात भी किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाएगा।

एजुकेशन पॉलिसी की तरह होना चाहिए था कृषि कानून पर मंथन

आर्थिक विशेषज्ञों ने कहा कि जिस प्रकार सरकार ने एजुकेशन पॉलिसी में बदलाव किया है। उसी प्रकार सरकार को कृषि कानून बनाने में भी मंथन करना चाहिए था। क्योंकि एजुकेशन पॉलिसी के लिए सरकार ने विभिन्न विशेषज्ञों से राय ली तथा हर पटल पर उसको परखा।

उसके पश्चात एजुकेशन पॉलिसी लागू की गई। इसी प्रकार किसानों की आय को वृद्धि करने के लिए लाए गए कानून एवं किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए बदलाव के लिए सभी आर्थिक जानकारों एवं कृषि विश्वविद्यालय के छात्रों एवं विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए थी।

जिससे किसानों को वास्तविक लाभ मिल सके। बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा कृषि कानून लागू किया गया था। जिसके पश्चात विभिन्न प्रदेशों के किसान विरोध में पिछले 15 दिन से आंदोलन कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि सरकार द्वारा लाए गए। कानून में तीन कानून ऐसे हैं जिससे कि किसानों को आर्थिक रूप से बड़ा संकट उत्पन्न होगा। ऐसे में सरकार जल्द से जल्द उन तीनों कानूनों को रद करें।

क्या कहना है विशेषज्ञों का

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चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डा. दिनेश कुमार ने कहा कि सरकार को नीतियां बनाने से पहले शोध करना चाहिए। जिससे जिनके लिए वह नीतियां बनाई गई हैं। उनको लाभ मिल सके। वर्तमान में सरकार की मंशा है किसानों की आय में वृद्धि हो अर्थात दोगुनी हो, लेकिन उसके लिए पांच साल की नीति की जगह त्वरित नीति अपनाई जाए और किसानों का आउटपुट, इनपुट का आंकलन करने के पश्चात किसानों की स्थिति को सुधारा जा सकता है। इसके लिए अति आवश्यक है कि शोध के पश्चात ही कानून बनाए जाएं। जिससे वास्तविक रूप से बदलाव मिल सकें।

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सीसीएसयू अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. अतवीर सिंह ने कहा कि किसान और गरीब कभी भी किसी भी सरकार के एजेंडे में नहीं होता। सिर्फ यह वोट पाने के लिए राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपनाया गया एक जुमला होता है। जिस प्रकार वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा भी चुनाव के दौरान कहा गया था कि स्वामीनाथन की रिपोर्ट को लागू किया जाएगा, लेकिन अब सरकार इस पर कुछ और ही तर्क देती है। ऐसे में किसान या किसी के भी हित से जुड़े मुद्दे हो उसके लिए सरकार को पहले उस क्षेत्र के बुद्धिजीवियों से बात करनी चाहिए। जिससे आम लोगों को राहत मिल सके। इसलिए कृषि कानून से पहले सभी किसान संगठनों से बात करनी चाहिए थी। तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार सभी आपत्तियों के निवारण के पश्चात ही इसे लागू किया जाना चाहिए। ताकि वास्तविक रूप से किसानों का हित होता न कि उन्हें सड़कों पर आना पड़ता।

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