- स्वतंत्रता आंदोलन की रणीनीति बनाने और चंदा एकत्र करने चार बार मेरठ आए भगत सिंह
- वैश्य अनाथालय, रुड़की रोड स्थित गुरुकुल में आकर रुकते थे
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: फिरंगी बेड़ियों से देश को आजादी दिलाने के लिए मेरठ के योगदान को दुनिया जानती है। यह सर जमीने मेरठ जंग ए आजादी की गवाह और मिसाल है। आंदोलन की चिंगारी यहीं से शोला बनी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत के सिंहासनों को राख कर दिया। आजादी के मतवालों ने भी मेरठ और यहां के लोगों को अपना समझा और उन पर भरोसा किया
तभी तो स्वतंत्रता आंदोलन पर आने वाले खर्च के लिए आंदोलनकारियों की निगाहें अक्सर मेरठ पर आकर टिक जाया करती थीं। ऐसा नहीं है कि कहीं और से आर्थिक योगदान नहीं मिला, लेकिन यह भी सच है कि आर्थिक आधार पर भी मेरठ ने अपना पूरा फर्ज निभाया और जब-जब इस आंदोलन को धार देने के लिए धन की जरुरत पड़ी तब तब मेरठ वालों ने अपनी झोली खोल दी।
सरदार भगत सिंह के परिवार वालों का बाद तक रहा मेरठ से जुड़ाव
स्वतंत्रता आन्दोलन के संबध में सरदार भगत सिंह तो अक्सर मेरठ आया जाया करते थे लेकिन इस आन्दोलन की समाप्ति पर और आजादी मिलने के बाद भी सरदार भगत सिंह के परिवार वालों में अक्सर मेरठ आना जाना होता रहता था। शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह के भाई कुलतार सिंह के पुत्र (भगत सिंह के भतीजे) अमरजीत सिंह से लेकर उनके परिवार के कई अन्य सदस्य काफी बाद तक भी मेरठ के चिन्यौटी परिवार में आते रहे।
विशाल द्वार बनाकर मेरठ के लोगों ने दी थी भगत सिंह के श्रद्धांजलि
सरदार भगत सिंह तो मात्र 21 साल की उम्र में ही फांसी पर चढ़ा दिए गए लेकिन मेरठ के लोगों के दिलों में वो हमेशा जिन्दा रहेंगे। चिन्योटी परिवार के अनुसार सरदार भगत सिंह व अन्य शहीदों की याद में मेरठ में विशाल द्वार बनाया गया जिसकी अपनी अलग ही एहमियत है। इस द्वार के नाम से ही इसकी विशालता झलकती है। इस द्वार का नाम शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव द्वार है। देश के स्वतंत्रता सेनानियों की महानता को दर्शाते इस द्वार पर अब से 24 साल पहले 1998 में प्योर एल्यूमीनियम से जो नाम लिखा गया था सिर्फ उसी नाम पर ही 60 हजार रुपये खर्च हुए थे।
जनाक्रोश देख एक दिन पहले ही लगा दी थी फांसी
1929 में भारतीयों के हितों के खिलाफ वायसराय ने एक अध्यादेश लाने की पूरी तैयारी कर ली थी। इसके विरोध में 8 अप्रैल 1929 को हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना के प्रमुख कार्यकर्ता में शुमार सरदार भगत सिंह ने अपने एक साथी के साथ मिलकर विरोध स्वरूप संसद भवन पर बम फेंका था। जिससे अंग्रेज हुकूमत हिल गई थी।
हालांकि बम फेंकने के बाद भगत सिंह ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया था। इसी प्रकार व्यवस्था विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण सुखदेव और राजगुरु पर भी मुकदमा चलाने के बाद कोर्ट ने उन्हें 24 मार्च 1931 तक फांसी देने का फैसला सुना दिया था, लेकिन इस फैसले के खिलाफ पनपने वाले जनाक्रोश को भांपते हुए तत्कालीन अग्रेंज सरकार ने एक दिन पूर्व ही 23 मार्च को इन वीर जवानों को फांसी दे दी थी।
इस सर जमीं पर चार बार पड़े हैं शहीद-ए-आजम के कदम
स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जब जब भी धन की जरुरत पड़ी तो सरदार भगत सिंह ने विभिन्न स्थोनों से धन एकत्र किया। अब चूंकि मेरठ स्वतंत्रता आन्दोलन का मुख्य केन्द्र था लिहाजा यहां के लोगों का भी यह फर्ज बनता था कि वो इस आन्दोलन से आर्थिक रुप से भी जुड़ें। शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह भी इसी सिलसिले में चार बार मेरठ आए और धन एकत्र किया।
भगत सिंह उस समय यहां वेस्ट एंड रोड पर रहने वाले वॉरियर परिवार के यहां आते थे। सरदार भगत सिंह के परिवार से करीबी रिश्ता रखने वाले टीपी नगर निवासी चिन्योटी परिवार के सदस्य बताते हैं कि सरदार भगत सिंह चार बार धन एकत्र करने के सिलसिले में जब मेरठ आए तो वारियर परिवार के सहयोग से मेरठ और बागपत के लोगों ने शहीद ए आजम को अपना पूरा योगदान दिया।
कुछ जानकार यह भी बताते हैं कि इतिहास में दर्ज काकोरी कांड से पूर्व भी सरदार भगत सिंह दो बार मेरठ आए। इन जानकारों के अनुसार भगत सिंह एक बार तो रुढ़की रोड स्थित गुरुकुल और एक बार वैश्य अनाथालय के हॉल में एकत्र हुए स्वतंत्रता सेनानियों की बैठक के सिलसिले में मेरठ आए थे। इसके बाद वो दो बार और मेरठ आए।
कई और आंदोलनकारी मेरठ आते थे भगत सिंह के साथ
जंग ए आजादी की चिंगारी जिस सर जमीं से फूटी वहां भला कौन आना पसन्द नहीं करेगा। यही कारण था कि जब जब शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह मेरठ आते तो उनके साथ कई और आन्दोलनकारी भी मेरठ आया करते थे। जानकारों के अनुसार सरदार भगत सिंह के साथ अक्सर दुर्गा भाभी, चन्द्रशेखर आजाद व व माता शकुन्तला भी मेरठ आते थे।