Home संवाद रविवाणी गुड़ पपड़ी और लकड़ी

गुड़ पपड़ी और लकड़ी

गुड़ पपड़ी और लकड़ी

 

Ravivani 4

 


Khamu Parasharआज फिर से एक वर्ष बाद गांव में मेला लगा है। दूर-दूर से लोग मेले का आनंद लेने के लिए आ रहे हैं। मैं भी बचपन से मेले का आनंद लेते आया हूं। मेले में जरूरत का सामान, मनोरंजन के साधन आदि सब कुछ उपलब्ध है। कुछ नहीं बदला है। कल शाम को मेरे एक खास मित्र का फोन आया। कहने लगा कल तुम्हारे यहां आ रहा हूं। फिर साथ में चलेंगे मेले का आनंद लेने के लिए
मैंने कहा ठीक है जरूर। अगले दिन हम साथ में मेला देखने के लिए निकले।

लेकिन कुछ दूरी पर मेरे पैरों में दर्द होने लगा, क्योंकि पिछले महीने फैक्चर हो गया था। मैं अब और नहीं चल सकता। इसलिए एक सुरक्षित जगह पर बैठ गया और बेचारे मित्र को अकेले मेले में जाना पड़ा। बैठा था कि अचानक नजर पड़ी रमन काका पर, साथ में शायद उनकी पोती और सड़क के दूसरी ओर मोती काका अपने दुकान लगाए बैठे थे। रमन काका गुड़ और आटे से बनी पपड़ी बेच रहे थे एवं मोती काका लकड़ी से बने खिलौने बेच रहे थे।

मुझे अच्छी तरह याद है बचपन में पिता जी इन्हीं से मुझे गुड पपड़ी और लकड़ी के खिलौने दिलाते थे। दोनों काकाओं को निहारते हुए लगभग एक घंटा बीत चुका था। दोनों के मुंह पर जरा भी मुस्कान नहीं थी और न ही एक ग्राहक उनके पास पहुंचा। जबकि मेले में तो सैकड़ों लोग आए थे। दोनों को निहारते और आधा घंटा बीता, लेकिन स्थिति टस से मस नहीं हुई। खैर में ही उनके पास पहुंचा।

जैसे ही पहुंचा तुरंत पहचान लिया। कहा, बेटा कैसे हो? इधर-उधर की बातें होने लगीं। फिर मैंने आखिर मैंने पूछ ही लिया इस स्थिति के बारे में। वह बोले, बेटा कौन है इस जमाने में गुड़ की पपड़ी को पसंद करता है। एक जमाना था जब मेरी गुड की पपड़ी के लिए लंबी कतार लगी होती थी। अब तो इक्का-दुक्का ग्राहक आते हैं। वह भी सामान तुलवाकर एक कार्ड पकड़ा देते हैं। कहते हैं, यह लो हमारा डेबिट कार्ड पेमेंट कर लो और हम अनपढ़ लोगों को कहां यह आॅनलाइन पेमेंट की विधि समझ आती है, इसलिए ग्राहक को मना कर देते हैं।

इतने में रमन काका की पोती रोने लगी तो रमन काका कुछ रुपये निकालकर सड़क के उस ओर मोती काका के पास जाने लगे और अपनी पोती के लिए लकड़ी का खिलौना खरीदा। पोती ने रोना बंद कर दिया और मोती काका के चेहरे पर थोड़ी मुस्कान आ गई। उनको रमन काका के रूप में पहला ग्राहक मिला इसलिए। शायद सुबह से कुछ खाया नहीं। इसलिए मोती काका रमन काका के पास गुड़ पपड़ी खरीदने के लिए आ गए। उनके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।

अब मुझे मोती काका से कुछ नहीं सुनना था, क्योंकि मैं समझ गया कि लकड़ी के खिलौनों को लोग कितना पसंद करते हैं। खैर मेरा मित्र मेले का आनंद लेकर आ गया। हम घर लौटे। घर लौट कर मैं यहीं सोच रहा था इस बदलती आनलाइन मुद्रा प्रणाली ने कितने लोग का काम धीमा कर दिया और वस्तु विनिमय प्रणाली तो लुप्त हो गई है।

खेमू पाराशर


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