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महाभारत के एक प्रसंग में आता है कि एक बार श्रीकृष्ण, बलराम और सात्यकि यात्रा के दौरान शाम हो जाने के कारण एक भयानक वन में रात्रि विश्राम के लिए ये निश्चय करके रुके कि दो-दो घंटे के लिए बारी-बारी से पहरा देंगे। उस जंगल में एक बहुत भयानक राक्षस रहता था।
जब सात्यकि पहरा दे रहा था जो उस राक्षस ने उसे छेड़ा, भला-बुरा कहा, उनका युद्ध हुआ, वो पराजित होकर जान बचाकर बलराम जी के पास आ कर छुप गया। बलराम जी को भी राक्षस ने बहुत उकसाया, उनके साथ भी युद्ध हुआ, बलराम जी ने देखा कि राक्षस की शक्ति तो बढ़ती ही जा रही है।
तब उन्होंने श्रीकृष्ण को जगाया। राक्षस ने उन्हें भी छेड़ा, अपशब्द कहे, उकसाया। तब श्रीकृष्ण ने राक्षस को कहा की तुम बहुत भले आदमी हो, तुम्हारे जैसे दोस्त के साथ रात अच्छे से कट जाएगी। तब राक्षस ने हंसकर पूछा, मै तुम्हारा दोस्त कैसे? श्रीकृष्ण बोले-भाई तुम अपना काम छोड़कर मेरा सहयोग करने आए हो, तुम सोच रहे हो मुझे कही आलस्य न आ जाए, इसलिए हंसी-मजाक करने आ गए।
राक्षस ने उन्हें बहुत छेड़ने, उकसाने की कोशिश की, लेकिन वो हंसते ही रहे। परिणाम यह हुआ कि राक्षस की ताकत घटने लगी और देखते ही देखते एक छोटी मक्खी जैसे हो गया। उन्होंने उसे पकड़कर अपने पीताम्बर में बांध लिया। श्रीकृष्ण ने दोनों से कहा कि जानते हो ये राक्षस कौन है? तब उन्होंने बताया कि इसका नाम है आवेश। मनुष्य के अंदर भी यह आवेश (क्रोध) का राक्षस घुस जाता है।
मनुष्य उसे जितनी हवा देता है, उतना ही वह दोगुना, तिगुना, चौगुना होता चले जाता है। इस राक्षस की ताकत तभी घटती है, जब इंसान अपने आपको संतुलित रखता है, हर समय मुस्कुराता रहता है। क्रोध रूपी राक्षस की जितनी उपेक्षा करोगे, वह उतना ही घटता जाएगा और जितना बदले की भावना रखोगे, यह बढ़ता चला जाएगा!
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