- भाव सहित निर्मल निश्च्छल हृदय से ही सच्ची भक्ति
जनवाणी संवाददाता |
लखनऊ/उनवल: गायत्री मंत्र का जप रात में नहीं करना चाहिए किन्तु राम मंत्र का जप अह:र्निश आठों याम हर समय किसी भी अवस्था में किया जा सकता है। शिव जी कहते हैं कि मैं काशी में दिन रात “राम” का ही भजन करता हूं और काशी में मरने वाले जीव की मुक्ति के लिए दाहिने कान में वही मंत्र बोलता हूं।
3उनवल के टेकवार वमें चल रही रामकथा के चौथे दिन व्यास पीठ से तुलसी पीठाधीश्वर रामानंदाचार्य जगद्गुरु श्रीरामभद्राचार्य ने उपस्थित श्रोताओं को बताया कि जीव रामकथा सुनने का पात्र ही नहीं है यह कथा मैं झारखण्डेश्वर महादेव को सुना रहा हूं। श्रृंगार और भाव के महत्व का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि भाव सहित निर्मल निश्च्छल हृदय से ही ईश्वर की सच्ची भक्ति की जा सकती है। सरयू पारीण ब्राह्मणों की श्रेष्ठता का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि सरयू पारीण ब्राह्मण राम के भक्त होने के कारण ही सर्वश्रेष्ठ हैं।
साप्ताहिक कथा के सूत्र वाक्य के रूप में रामचरितमानस के उत्तरकांड में उल्लिखित दोहे-औरउ एक गुपुत मत सबहीं कहउं कर जोरि। का उल्लेख करते हुए बताया कि भगवान शिव के पांच मुख हैं जो कि अघो, ईशान, तत्पुरुष, वामदेव, सदयोजात हैं। माता सती के माया के वश में आते ही भगवान शिव ने उन्हें पांचों मुखों से समझाने का प्रयत्न किया किन्तु भगवान की बलवती माया के वश में सती को बात समझ में नहीं आई। कुछ इसी प्रकार रामकथा माया के वशीभूत जीव को समझ में नहीं आती है।
लीला श्रृंगार रस से समाहित संगीतमय रामकथा में चौथे दिन कथा पांडाल श्रद्धालु श्रोताओं से खचाखच भर गया।
कार्यक्रम का संचालन आचार घनश्याम मिश्र ने किया। उक्त कथा के अवसर पर बी के मिश्रा इत्यादि लोग मौजूद रहे।