17-18 जुलाई को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के पांच सितारा होटल में देशभर की विपक्षी पार्टियों की दूसरी मीटिंग कई मायनों में विपक्षी एकता की ताकत को नए सिरे से बदलने की जरूरत है। देश में लोकसभा चुनाव होने में करीब 10 महीने का समय बचा है। इसी को ध्यान में रखते हुए आगामी आम चुनाव की राजनीतिक बिसात अभी से बिछनी शुरू हो चुकी हैं। साथ ही सत्तापक्ष और विपक्षी पार्टियों के बीच सरगर्मियां लगातार बढ़ने लगी हैं। एक ओर जहां विपक्षी पार्टियों का जुटान सत्तारूढ़ पार्टी को घेरने के लिए अभी से अपनी सीट बेल्ट बांधने को तैयार है, तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी अपने एनडीए गठबंधन को विस्तार देने में लगी है। देश में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव इस साल के आखिर में होने है। कांग्रेस पूर्ण विश्वास के साथ कर्नाटक चुनाव की तरह बीजेपी को चुनौती देने के लिए भले ही तैयार हो, लेकिन बीजेपी हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक चुनाव हराने के बावजूद भी उसका गुरूर अभी तक कम नहीं हुआ है।
उनको यह भी लगता है दोनों राज्यों में भले ही हम हार गए हों, लेकिन देश में मोदी मैजिक का असर अभी तक बरकरार है। यानी बीजेपी का घमंड अभी भी सातवें आसमान पर है और उनको लगता है कि 2024 में एनडीए दल मिलकर नए गठबंधन को हराकर बीजेपी को एक बड़ी ताकत के रूप में खड़ा करने में हमारी मदद करेंगे।
पटना में 23 जून को विपक्षी पार्टियों की पहली बैठक हुई, जिसमें 16 दलों ने हिस्सा लिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है अगर नया गठबंधन 450 सीटों पर चुनाव लड़ता है इस गठबंधन की जीत आसान हो सकती है। बेंगलुरु में विपक्षी दलों की दूसरी बैठक में 2004 में बने यूपीए गठबंधन का नाम बदलकर ‘इंडिया’ कर दिया गया।
नए गठबंधन ‘इंडिया’-‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव एलाइंस’ जोकि 26 दलों से मिलकर बना है। जिसको लेकर एनडीए खेमे में बेचैनी बढ़ने लगी है। इस नए गठबंधन की पूरे देश की राजनीति में चारों ओर चर्चाएं शुरू होने लगी हैं।
नए गठबंधन ‘इंडिया’ का उद्देश्य लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए है, साथ ही 2024 के चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने के लिए सभी विपक्षी पार्टियां, लोकतंत्र की हत्या करने वाली सत्तारूढ़ पार्टी को रोकने के लिए एक मंच पर आ चुकी हैं। मीटिंग के आखिरी दिन अपने भाषण में राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी के खिलाफ यह लड़ाई भारत की सेकुलर विचारधारा और लोगों की आवाज को बुलंद करने के लिए है।
इस गठबंधन का गठन ऐसे समय में बहुत जरूरी हो जाता है जब आम आदमी अपनी पहचान छिपाने के लिए दूसरों का सहारा ले रहा हैं। छब्बीस राजनीतिक दलों का यह महागठबंधन अब एक नए कलेवर में देश की जमीनी हकीकत से रूबरू कराने के लिए तैयार है। देश के बदलते हालात साथ ही संविधान पर मंडराता खतरा एक चिंता का विषय बना हुआ है।
देश में राष्ट्रवाद का बढ़ता दायरा और नफरती माहौल के साथ-साथ सांप्रदायिक रंगों में रंगा एक ऐसा तबका जो सड़कों पर निकलकर कानून और संविधान को किनारे करके किसी की भी हत्या करके अगर बच निकले तो समझ जाइए कि यह देश किस दिशा में जा रहा है। क्योंकि लोगों में बढ़ती धार्मिक वैमनस्यता पूरे समाज को गर्त में ले जाने का काम कर रही है।
इसलिए देश के 26 दलों का एक मंच पर आना यह कोई संयोग नहीं है। बल्कि देश में बढ़ती असमानता की खाई और लोगों में नफरती सोच पैदा करने वालों के खिलाफ मजबूती से आपसी बंधुत्व एवं भाईचारे को बढ़ाने का काम करेगा। वर्ष 2024 को ध्यान में रखकर बनाया गया यह नया गठबंधन ‘इंडिया’ भारतीय राजनीति को एक नई पहचान देने के लिए बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर कमर कसने को तैयार है।
वर्ष 1977 और 1989 में कांग्रेस को घेरने के लिए भी 13 दलों ने ऐसे ही एक गठबंधन बनाया था। कुछ सालों बाद अखिरकार यह गठबंधन टूट गया था। ऐसे ही 1989 में जनता दल नाम से बना गठबंधन ढाई साल में ही टूट गया था। इस गठबंधन का हश्र भी 1970 और 80 के दशक की तरह हो सकता है। इसलिए सबको मिलकर कम करने की जरूरत है।
‘इंडिया’ गठबंधन के सभी 26 दल मोदी के विजय रथ को अपने-अपने राज्यों में पहले ही रोक चुके हैं। जिसमें तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, झारखंड, कर्नाटक, बिहार, दिल्ली, पंजाब और केरल राज्य शामिल हैं। अब सवाल है प्रधानमंत्री मोदी ने 18 जुलाई को विपक्षी एकता को जवाब देने के लिए जिन 38 दलों के साथ बैठक की, उनमें से 25 पार्टियों के पास लोकसभा सदन में उनका प्रतिनिधित्व ही नहीं है, लेकिन ये पार्टियां अपनी महत्वाकांक्षा से कहीं ज्यादा लोकसभा चुनाव में बीजेपी से अपनी हिस्सेदारी जरूर मांगेगी।
भाजपा ने अपने कुनबे का आकार तो बढ़ा लिया, लेकिन 25 पार्टियों के पास क्षेत्रीय राजनीति के बाहर कोई जनाधार नहीं है, न हीं उनके पास कोई बड़े चेहरे हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के 26 दलों में आधे से ज्यादा नेता राष्ट्रीय छवि के नेता माने जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस को कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव में फायदा हो सकता हैं।
नए गठबंधन का मनोवैज्ञानिक असर भले ही लोगों के जेहन में पड़े लेकिन पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सीटों का बंटवारा और नेतृत्व को लेकर चुनौतियां बन सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नए गठबंधन को ‘मोदी हटाओ’ की जगह ‘इंडिया बचाओ’ जैसे नारों की रणनीति का फोकस करना बेहतर होगा, तभी नए ‘इंडिया’ गठबंधन का सपना साकार हो सकता है। गठबंधन में शामिल सभी विपक्षी पार्टियां अपने मकसद में कामयाब हो सकेंगी।
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