Friday, April 19, 2024
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कोरोना की दूसरी लहर में खूब डरा रहा आक्सीजन का स्तर

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  • मर्करी में 75 से 100 एमएम के बीच आॅक्सीजन सामान्य
  • 60 से नीचे आने पर स्थिति लगती है बिगड़ने

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: कोरोना की दूसरी लहर ने कहर बरपा रखा है। हर कोई आॅक्सीजन की कमी के कारण परेशान है और मौत के मुंह में भी समा रहा है। रही सही कसर प्रशासन की आॅक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था को मजबूती से लागू न कर पाना भी है। हर किसी के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर आॅक्सीजन का रोल क्या है सांसों को मजबूत करने में जिससे इंसान को जिंदगी से हाथ न धोना पड़े।

हमारे शरीर में आॅक्सीजन की मात्रा का मतलब हमारे खून में आॅक्सीजन की मात्रा है। अगर खून में मर्करी का 75 से 100 मिलिमीटर के बीच आॅक्सीजन है तो इसे सामान्य स्तर माना जाता है। लेकिन, आॅक्सीजन लेवल 60 से नीचे है तो इसे सामान्य से कम माना जाता है। तब आपको आॅक्सीजन सप्लीमेंट की जरूरत पड़ती है।

एक स्वस्थ युवा प्रति मिनट 12 से 20 बार सांस लेता और छोड़ता है, लेकिन इसकी सही दर प्रति मिनट 6 से 8 बार है। यानी, जल्दी-जल्दी सांस लेने के बजाय गहरी सांस लेना फायदेमंद है। अगर आप जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं तो हमें पर्याप्त मात्रा में आॅक्सीजन नहीं मिल पाता है। जब हम सांस लेते हैं तो आॅक्सीजन अंदर जाता है और सांस छोड़ते हैं तो कार्बन डाइआॅक्साइड बाहर निकलता है।

यह काम हमारे फेफड़े के सबसे निचले भाग जिसे वायुकोष्ठिका या एल्वियोली कहा जाता है। इसीलिए हमें गहरी सांस लेनी चाहिए ताकि वायु का प्रवाह फेफड़े के निचले हिस्से तक पहुंच सके। हवा एल्वियोली में पहुंचती है तो खून में आॅक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है। सबसे पहले यह जान लें कि शरीर में आॅक्सीजन लेवल घटने से जो स्थिति पैदा होती है, उसे हाइपोजेमिया कहा जाता है।

इसके कई कारण हैं। जैसे कि प्रदूषण का स्तर ज्यादा होने के कारण हवा में आॅक्सीजन की मात्रा कम होना, फेफड़े की कमजोरी के कारण गहरी सांस लेने में अक्षमता जिससे कारण सभी कोशिकाओं और उत्तकों को पर्याप्त आॅक्सीजन का नहीं मिल पाता है, खून के प्रवाह में इतना जोर नहीं रहना कि वो फेफड़ों से आॅक्सीजन जमा करके पूरे शरीर में भेज सके। इनकी भी वजहें हैं।

जैसे-अस्थमा, दिल की बीमारी, एनीमिया, फेफड़ों से संबंधित बीमारियां, न्यूमोनिया, खून जमने जैसी परेशानियों के कारण धमनियो का सिकुड़ना, सीने में हवा या गैस की मौजूदगी के कारण फेफड़े का सिकुड़ना, फेफड़ों में पानी की ज्यादा मात्रा, गहरी नींद का अभाव, नींद और दर्द की दवा का ज्यादा उपयोग आदि। कोरोना के कारण जिन लोगों के शरीर में आॅक्सीजन का स्तर 70 से नीचे जा रहा है वो गंभीर परेशानी से जूझ रहे हैं।

वरिष्ठ फिजिशियन डा. तनुराज सिरोही ने बताया कि हर व्यक्ति के शरीर में आॅक्सीजन की खपत अलग अलग होती है। आक्सीमीटर में अगर 90 से ऊपर मर्करी आ रहा है तो अच्छी अवस्था मानी जाती है। अगर आॅक्सीजन 60 से नीचे पहुंच रही है तो आॅक्सीजन की सख्त जरुरत पड़ती है।

आॅक्सीजन कम होने का असर चेहरे का रंग गहरा होना

शरीर में अगर आॅक्सीजन की कमी होती है तो चेहरे का रंग नीला पड़ने लगता है और होठों पर भी नीलापन आ जाता है। इसे स्यानोसिस होने का लक्षण माना जाता है। दरअसल हेल्दी आॅक्सीजेनेटेड ब्लड की वजह से हमारी स्किन लाल या गुलाबी ग्लो करती है, लेकिन जब शरीर में आॅक्सीजन कम होने लगता है तो ऐसे लक्षण दिखने लगते हैं।

सांस लेने में तकलीफ

आॅक्सीजन लेवल कम होने से कोरोना मरीजों को सांस लेने में तकलीफ, छाती में दर्द, सीने में दबाव, लगातार खांसी, बेचैनी और तेज सिरदर्द देखने को मिलता है। ऐसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और जल्द से जल्द अस्पताल में भर्ती हो जाएं।


कैसे होगी पूर्ति? एक मरीज पर एक ही दिन चल पाता है सिलेंडर

  • किसी मरीज को प्रतिघंटा पांच से छह लीटर तो किसी को दो लीटर प्रतिघंटा लगती है आॅक्सीजन

आॅक्सीजन की पूर्ती करने के प्रदेश सरकार लाख दावे कर ले, लेकिन यह काम आसान नहीं लगता। जिस प्रकार से रोजना मरीजों की संख्या बढ़ रही है। मरीजों का आॅक्सीजन लेवल घट रहा है ऐसे में जिले के लिये काफी मात्रा में आॅक्सीजन चाहिए। उधर अन्य अस्पतालों में जहां कोरोना पेशेंट नहीं है उन्हें भी आॅक्सीजन की आवश्यकता है। एक मरीज को एक दिन में लगभग एक सिलेंडर आॅक्सीजन चाहिए इस प्रकार से मरीजों के लिये आॅक्सीजन की पूर्ती होना आसान नहीं होगा।

एक आक्सीजन सिलेंडर 10 लीटर और 48 लीटर की क्षमता में है। विशेषज्ञों की मानें तो एक मरीज जिसकी आॅक्सीजन लेवल 65 से 80 के बीच है उस मरीज को प्रतिघंटा 4 से 5 लीटर आॅक्सीजन चाहिए होती है। कोई-कोई मरीज कम मात्रा में भी आॅक्सीजन लेता है। इसी तरह जिसकी आॅक्सीजन लेवल 80 से 90 के बीच है उसे 2 से 3 लीटर आॅक्सीजन प्रतिघंटा चाहिए होती है।

डाक्टरों की मानें तो कुछ मरीज आॅक्सीजन लेवल कम होने पर भी सामन्य मात्रा में ही आॅक्सीजन ग्रहण करते हैं, लेकिन कोरोना के पेशेंट अधिक आॅक्सीजन ग्रहण कर रहे हैं। फेफड़ों के संक्रमण की आत करें तो यहां आॅक्सीजन अधिक चाहिए होती है। इस तरह से अगर एक मरीज 4 से 5 लीटर प्रतिघंटा आॅक्सीजन लेगा तो वह 12 घंटे में 50 से 60 लीटर आॅक्सीजन ग्रहण करेगा।

एक दिन में उस मरीज को एक गैस सिलेंडर चाहिए होगा। जब एक आॅक्सीजन सिलेंडर एक मरीज लेगा तो प्रतिदिन सैकड़ों सिलेंडर चाहिए। ऊपर से मरीज एडमिट भी नहीं है वह भी आॅक्सीजन को जमा करके रख रहे हैं। जिससे सभी अस्पताल में आॅक्सीजन की कमी बन रही है।

2913 हैं कोविड-19 के बेड

मेरठ में कोविड पेशेंट के लिये 2913 बेड हैं। सभी अस्पतालों में इतने कोविड पेशेंट हैं इसके अलावा होम आइसोलेशन में भी 5450 कोविड पेशेंट हैं। इनमें से अगर 50 प्रतिशत पेशेंट भी आॅक्सीजन ले रहें हैं तो शहर में सैकड़ों की संख्या में प्रतिदिन आॅक्सीजन सिलेंडर चाहिए होंगे। इसके अलावा अन्य बीमारियों से ग्रस्त पेशेंट भी हैं जिन्हें आॅक्सीजन की आवश्यकता है। ऐसे में प्रशासन को इस ओर गंभीरता से ध्यान करना होगा। प्रशासन को चाहिए कि वह आॅक्सीजन की बड़ी मात्रा में मेरठ में उपलब्धता कराये।

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