Friday, October 18, 2024
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उपेक्षा का दर्द

Amritvani


किसी परिवार में एक व्यक्ति के चार बेटे और चार बहुएं थीं। पिता वृद्ध और लाचार हो गया तो उसकी उपेक्षा होने लगी। चारों भाइयों ने मिलकर विचार किया और वृद्ध पिता को पशुओं के बाड़े में डाल दिया। पशुओं के बाड़े में पड़ा, वृद्ध पिता अपनी असमर्थता पर आंसू बहाता। भूख से विकल होकर वह कांपते हाथों से टोकरा बजाता तो घर का कोई सदस्य अनिच्छापूर्वक बाड़े में जाता और एक पात्र में रूखी रोटियां डाल देता। कुछ दिन तक क्रम चलता रहा। बेटों के बच्चे यह क्रम देखते और सोचते कि यह कोई परंपरा होगी, जो हमें भी निभानी होगी। एक दिन बच्चे बाड़े में गए। उन्होंने देखा, दादाजी दयनीय अवस्था में एक टूटी चारपाई पर पड़े कराह रहे हैं। उन्होंने दादा से बात की। वे सब कुछ समझ गए। बच्चे वहां पड़े कुछ जूठे और गंदे मिट्टी के बर्तन उठा लाए। सब बच्चों ने थोड़े-थोड़ बर्तन अपने कमरे में लाकर रख दिए। बच्चों के पिता ने उन्हें देखा तो पूछा, ‘इन्हें यहां लाकर क्यों रखा है?’ बच्चों ने जवाब दिया, ‘आप लोगों के लिए। जो कुछ आप लोग कर रहे हैं, वह हमें भी एक दिन करना पड़ेगा। एक दिन जब आपको हम जानवरों के बाड़े में डाल देंगे, तो खाना देने के लिए इन बर्तनों की जरूरत पड़ेगी। हम उसका पहले से प्रबंध कर रहे हैं।’ चारों बेटे यह उत्तर सुनकर सन्न रह गए। वह बाड़े में गए और पिता को घर में ले आए। हर व्यक्ति को यह सोचना है कि उसके द्वारा डाली गई परंपरा का पालन अगली पीढ़ी करेगी, इसलिए ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जो स्वयं को अप्रिय लगे।


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