- लोकसीट की उच्चस्तरीय जांच हो तो खुलेंगी बड़े भ्रष्टाचार की परतें
- वर्ष 2017 में 3 करोड़ से अधिक के मुनाफे में थी पराग डेयरी
- वर्ष 2023 में करीब 50 करोड़ रुपये का घाटा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: परतापुर के गगोल स्थित पराग दुग्ध डेयरी जिसकी स्थिति पूरे प्रदेश में अच्छी मानी जाती थी। पराग डेयरी का नाम सुनते ही दुग्ध उत्पाद से जुडेÞ किसान अक्सर बिना हिचक डेयरी पर दूध देते थे। वह डेयरी पेमेंट में जहां वर्ष 2017 तक तीन करोड़ से अधिक के मुनाफे में चल रही थी।
वर्तमान समय में वह एक बडेÞ घाटे में पहुंच चुकी है। मानो वह कर्ज के बोझ तले दबकर वेंटिलेटर पर अंतिम सांस गिन रही हो। आज सबसे बड़ा सवाल ये है कि इतने बडेÞ कर्ज के घाटे को पराग डेयरी कैसे पूरा करेगी? वहीं, सूत्रों की माने तो यह कर्ज कोई अचानक से नहीं हुआ।
बल्कि योजनाबद्ध तरीके से लोकसीट में हेराफेरी करके किया गया है। लोगों का कहना है कि यदि पराग डेयरी की पांच से 10 वर्ष के बीच की लोकसीट की अच्छे से जांच हो जाए कि दूग्ध खरीद पर कितना पैसा खर्च किया गया और वाहनों की संख्या एवं कर्मचारियों की वास्तविक संख्या कितनी थी।
क्रांतिधरा पर परतापुर के गंगोल में वर्ष 1980 में सहकारी दुग्ध उत्पादन संघ लिमिटेड पराग दुग्ध उत्पादन संस्थान संचालित किया गया। जिसमें उस समय जनपद के साथ आसपास के जनपदों के किसानों का डेयरी के माध्यम से इस प्लांट पर दूध आने लगा। वर्ष 2016 जिसमें सपा सरकार के समय तक यह पराग डेयरी लाभ में चल रही थी। बताया गया कि यह लाख लाखों रुपये में नहीं बल्कि साढेÞ तीन करोड़ रुपये से अधिक का था।
इतना ही नहीं लाभ को देखते हुए इसी प्लांट के बराबर की जमीन में चार लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाले प्लांट के निर्माण के लिए विस्तारीकरण का कार्य भी शुरू कर दिया गया था, लेकिन जैसे ही प्रदेश में भाजपा सरकार बनी तो पास में ही एयरपोर्ट के विस्तारीकरण का कार्य शुरू हो गया। जिसके बाद जो नए प्लांट के निर्माण का कार्य शुरू हुआ था, वह अधर में लटक गया। वहीं, दूसरी ओर दुग्ध प्लांट में अचानक ऐसा क्या हुआ कि डेयरी में घाटा होना शुरू हो गया।
जैसे-जैसे घाटा बढ़ता गया ठीक वैसे-वैसे कभी कर्मचारियों में कटौती तो कभी वाहनों की संख्या कम की जाने लगी। इसी बीच कोरोना काल शुरू हो गया और जिसका असर सभी संस्थानों पर देखा भी गया, लेकिन इस पराग डेयरी प्लांट में तो घाटा लगातार कई गुना तक बढ़ता चला गया। आखिर डेयरी के अधिकारी एवं कर्मचारी पैसा कहां खर्च करते चले गए कि इतने बडेÞ कर्ज के बोझ तले पराग डेयरी दबती चली गई कि मानों वह वर्तमान समय में वेंटिलेटर पर अंतिम सांसें गिन रही हो।
वर्तमान में कर्मचारियों की संख्या भी काफी कम हो चुकी है। उसके बाद भी घाटे का अंतर कम नहीं हो पा रहा है। वर्तमान समय में मेरठ के साथ नोएडा, बुलंदशहर, गाजियाबाद, हापुड़ समेत पांच जनपदों की पराग डेयरी का दूध भी इसी प्लांट में आ रहा है। जिसमें प्रतिदिन करीब 50 हजार लीटर दूध आ रहा है।
जिसमें 90 प्रतिशत दूध जनपद मेरठ से आ रहा है और शेष 10 प्रतिशत दूध चार अन्य जनपदों से आना बताया जा रहा है। जिसमें 10 प्रतिशत दूध के लिए ट्रांसपोर्ट पर कितना रुपया खर्च किया जा रहा है। सवाल तो अनेकों हैं, लेकिन यह पराग डेयरी कब कर्ज के बोझ से उबरेगी, यह एक बड़ा सवाल है?
परतापुर के गंगोल में वर्ष 1980 में पराग डेयरी की स्थापना कराई गई थी। उस समय अकेले जनपद मेरठ का दूध ही इस प्लांट में आता था। कर्मचारी की संख्या भी पर्याप्त मात्रा में थी, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे स्टाफ वीआरएस लेता चला गया। जिसमें करीब 70 प्रतिशत स्टाफ की कमी वर्तमान में चल रही है। जबकि जनपद मेरठ के साथ बुलंदशहर, नोएडा, हापुड़ समेत पांच जनपदों की पराग डेयरी का दूध भी यहीं आ रहा है। जिसमें वहां की डेयरी घाटे के चलते बंद कर दी गई थी। मुझे यह जानकारी तो नहीं है कि किस समय कितने लाभ में पराग डेयरी चल रही थी, लेकिन वर्तमान में कर्ज के बोझ तले जरू र दबी है। कितने कर्ज के बोझ तले दबी है, वह दिखवाया जायेगा। कोरोना काल में भी डेयरी घाटे में चली गई थी। जहां 20 मैनेजर कार्य करते थे। आज चार डिप्टी मैनेजर कार्य कर रहे हैं। -दलजीत सिंह, जीएम पराग डेयरी गंगोल