अभिभावकों का छोटे बच्चों को पढ़ाना काफी कठिन कार्य होता है। माता-पिता कभी डांट-डपटकर, कभी प्यार से तो कभी पिटाई लगाकर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। इसमें वे बच्चे का ही हित चाहते हैं। यह तो हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा परीक्षा में अच्छे अंक लाए और होनहार बने, अत: वे बच्चे के मन में पढ़ाई के प्रति रूचि जगाने हेतु कई प्रकार के प्रयास करते हैं।
कुछ बच्चे तो शुरू से ही पढ़ाई के प्रति सचेत होते हैं। उन्हें भी अच्छे अंक लाने व अध्यापकों व अभिभावकों की शाबाशी प्राप्त करने का शौक होता है। ऐसे बच्चों को पढ़ाना कोई मुश्किल काम नहीं होता मगर कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिन्हें पढ़ाना काफी कठिन होता है। वैसे तो ट्यूशन के बढ़ते प्रचलन ने अभिभावकों की इस समस्या को काफी हद तक आसान कर दिया है मगर गृहकार्य तो फिर भी अभिभावकों को स्वयं ही करवाना पड़ता है क्योंकि ट्यूटर तो बच्चों को अतिरिक्त पढ़ाई ही करवाते हैं, जिससे बच्चा पढ़ाई में होशियार हो जाए।
बच्चों को पढ़ाने हेतु भी कुछ नियमों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।
बच्चे को पढ़ाते समय सर्वप्रथम यह ध्यान रखें कि उसके पढ़ने का कमरा एकदम शांत माहौल में होना चाहिए। उसे उस कमरे में न पढ़ाएं जहां टीवी या आकर्षक खिलौने रखे हों अन्यथा बार-बार बच्चे का ध्यान खिलौनों व टीवी की ओर जाएगा और वह एकाग्रचित होकर पढ़ाई नहीं कर पाएगा।
पढ़ाई के लिए उससे जोर-जबरदस्ती न करें। इससे बच्चे के मन में पढ़ाई के प्रति वितृष्णा पैदा होगी, जो उसके कैरियर के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
समय देखकर ही उस पर पढ़ने हेतु दबाव डालें। यदि उसके मन में खेलने या टीवी देखने की तीव्र इच्छा है तो उसे ऐसा करने से न रोकें। यदि आप उसे जबरदस्ती पढ़ने बिठाएंगे तो उसका मन खेलने की तरफ ही रहेगा।
उसे पढ़ाते समय उस पर क्रोध न करें। यदि वह गलती करे तो उसे प्यार से समझाना आपका कर्तव्य है। बच्चा अभी सीख रहा है। जाहिर है उससे कुछ गलतियां भी अवश्य होंगी। उसकी किसी भी गलती व कमी को नजरअंदाज न करें मगर प्रेमपूर्वक समझाना ही बेहतर है ताकि वह आपकी मानसिकता को जान सके कि आप उसकी भलाई के लिए ही ऐसा कर रही हैं।
बच्चे की भावनाओं, रूचियों व क्षमता को ध्यान में रखकर ही उसे पढ़ाएं। रचनात्मक कार्यों में उसकी रूचि जगाने का प्रयास करें। उसे तरह-तरह के चित्र व चार्ट लाकर दें जिन्हें देखकर उसके मन में पढ़ाई के प्रति उत्साह पैदा हो।
अच्छे अंक लाने पर बच्चे का उत्साहवर्द्धन अवश्य करें। उसे छोटे-मोटे पुरस्कार देते रहें।
पुरस्कार के साथ-साथ प्रशंसा भी आवश्यक है। घर में आने वाले मेहमानों को बच्चे के अच्छे कार्यों के बारे में बच्चे के सामने ही बताएं। प्रोत्साहन से उसका मनोबल बढ़ाने का प्रयास करें।
उसे प्रेरणादायक कहानियां भी सुनाएं, जिससे उसका मानसिक विकास भी हो सके।
बच्चे को ऐसे समय पढ़ाने न बैठाएं, जब पड़ोस के बच्चे खेल रहे हों।
यह भी ध्यान रखें कि जब बच्चे को पढ़ाने बैठें, वह भूखा न हो। भूखे पेट कार्य करना बड़ों के लिए भी कठिन होता है, अत: बच्चे को पर्याप्त भोजन करवाकर ही पढ़ने बिठाएं।
यदि वह कोई आसान-सा सवाल भी आपसे पूछे तो यह कहकर उसे हतोत्साहित न करें कि ‘तुम्हें यह भी नहीं आता, स्कूल से क्या पढकर आते हो, बल्कि धैर्यपूर्वक उसके प्रश्नों का उत्तर दें और उसे समझा दें कि वह इसे अपने दिमाग में बिठा ले।
उसके शारीरिक विकास हेतु उचित भोजन व विटामिन आदि तत्व भरपूर मात्र में दें।
बीमार होने की स्थिति में बच्चे को पढ़ने के लिए विवश न करें। जब वह पूर्णरूप से ठीक हो जाए, तभी उसे पढ़ाना प्रारंभ करें।