अजीत शर्मा ‘आकाश’ |
‘ठोकर से ठहरो नहीं’ कवयित्री अर्चना सबूरी की 90 कविताओं एवं क्षणिकाओं का संग्रह है। कहा गया है कि कविताएं मन के भावों को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम हैं। इस काव्य संग्रह की रचनाओं के माध्यम से जीवन की विसंगतियों एवं जटिल परिस्थितियों को पाठकों के समक्ष लाने का प्रयास किया गया है। कविता-लेखन के संबंध में पुस्तक के आत्मकथ्य के अंतर्गत कवयित्री का कहना है कि जिंदगी किसी की भी आसान नहीं है, सब की जिंदगी में अपने-अपने तरीके के कष्ट हैं, दु:ख हैं। संग्रह की अधिकतर रचनाएं कवयित्री के इसी दार्शनिक विचार से ओतप्रोत प्रतीत होती हैं। रचनाओं में अनेक स्थलों पर जीवन के यथार्थ चित्रण की झलक परिलक्षित होती है।
कविताओं में संत्रास, घुटन, वेदनाओं एवं अनुभूतियों को शब्द प्रदान किए गए हैं। अधिकतर कविताएं समय और व्यक्ति के बीच के द्वंद्व को पाठक के समक्ष लेकर आती हैं तथा संवाद और संघर्ष करती प्रतीत होती हैं। सामाजिक सरोकारों के ताने-बाने में रचा-बसा कथ्य सराहनीय है। रचनाओं में यत्र-तत्र जीवन के अन्य अनेक रंग भी सामने आते हैं। संग्रह में ‘सपनों में सही’, ‘मीठी यादें’, ‘निभाती हूं’, ‘मत आया करो’ जैसी श्रृंगार एवं प्रेम विषयक कुछ रचनाओं एवं क्षणिकाओं को भी स्थान दिया गया है। ये कविताएं प्रेम के विभिन्न पक्षों, संबंधों, विसंगतियों, सुखद अनुभूतियों और प्रेम की वयक्त-अव्यक्त अभिव्यक्तियों को चित्रित करती हैं तथा संयोग एवं वियोग के भाव उत्पन्न करती हैं। रचनाओं का कथ्य एवं भाव पक्ष भी सराहनीय है। काव्य शिल्प की दृष्टि से कविताएं अतुकान्त एवं छन्दविहीन हैं तथा नई कविता के अन्तर्गत आती हैं। भाषा सरल एवं बोधगम्य है। काव्य संग्रह में कवयित्री के सराहनीय सृजन की झलक परिलक्षित होती है। कुछ स्थानों पर वर्तनीगत, व्याकरणिक एवं प्रूफ संबंधी अशुद्धियां भी हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नई कविता लेखन-क्षेत्र में ‘ठोकर से ठहरो नहीं’ कवयित्री अर्चना सबूरी का एक सराहनीय प्रयास है।
पुस्तक: ठोकर से ठहरो नहीं, कवयित्री: अर्चना सबूरी, प्रकाशक: गुफ़्तगू पब्लिकेशन, प्रयागराज, मूल्य: रुपये 150/-