विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरिक्ष अन्वेषण एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इसने मानव जाति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। राकेट प्रक्षेपण के माध्यम से उपग्रह और अन्य उपकरणों को अंतरिक्ष में भेजना आज के युग की आवश्यकता बन गई है। चाहे यह संचार के लिए हो, मौसम का अध्ययन हो ग्रहों पर जीवन की खोज हो। राकेट प्रक्षेपण ने मानवता को नई संभावनाओं से परिचित कराया है। हालांकि इसके साथ ही यह प्रक्रिया पर्यावरण के लिए गंभीर समस्याएं भी पैदा करती है। प्रक्षेपण के दौरान वायुमंडलीय प्रदूषण, ओजोन परत का क्षरण, ध्वनि प्रदूषण, जल और मिट्टी का प्रदूषण और अंतरिक्ष में मलबा जैसी समस्याएं अब सामने आ रही हैं। इनको समझना और उनका समाधान निकालना आवश्यक है, ताकि तकनीकी प्रगति और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।
राकेट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए बहुत शक्तिशाली र्इंधन का उपयोग किया जाता है। यह र्इंधन जलता है, तो बड़ी मात्रा में गैसें और कण उत्सर्जित होते हैं। इनमें कार्बन डाइआक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें शामिल होती हैं। ठोस ईंधन के जलने पर कार्बन और नाइट्रोजन आक्साइड उत्सर्जित होते हैं, जो प्रदूषण का कारण बनते हैं। तरल हाइड्रोजन और आक्सीजन उपयोग करने वाले राकेट कम प्रदूषण करते हैं, लेकिन ये अभी पूरी तरह साफ नहीं हैं। ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों (यूवी) को अवशोषित करती है, जो मानव, जीव-जंतुओं और पौधों के और पौधों के लिए घातक होती हैं। इसे पृथ्वी के सुरक्षा कवच के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह है, हमारे ग्रह ग्रह को प्राकृतिक आपदाओं और जैविक क्षति से बचाती है। राकेट प्रक्षेपण के दौरान ठोस ‘प्रोपेलेंट्स’ में उपयोग किए जाने वाले क्लोरिन-आधारित यौगिक ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत को क्षति पहुंचाते हैं। क्लोरीन अणु ओजोन अणुओं को तोड़ कर पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने देते हैं, जो स्वास्थ्य और । और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हानिकारक है। राकेट प्रक्षेपण के दौरान नाइट्रोजन आक्साइड गैसें पैदा होती हैं, जो ओजोन के साथ प्रतिक्रिया कर उसे नष्ट करती हैं। ये गैसें कई वर्षों तक वायुमंडल में बनी रह सकती हैं। प्रक्षेपण के दौरान निकली गैसें सीधे ऊपरी वायुमंडल प्रवेश करती हैं, जहां ओजोन परत को खुद को पुनर्निर्मित करने का समय नहीं मिलता। बार-बार प्रक्षेपण से यह समस्या और बढ़ जाती है।
अंतरिक्ष अनुसंधान में वृद्धि के कारण राकेट प्रक्षेपण की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह ओजोन परत के लिए दीर्घकालिक खतरा है, क्योंकि प्रदूषण का संचय बढ़ता जा रहा है। राकेट प्रक्षेपण के दौरान उत्पन्न ध्वनि का स्तर अधिक होता है, जो मानव और वन्यजीवों दोनों के लिए हानिकारक है। यह स्थानीय पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालता है और वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को बाधित करता है। प्रक्षेपण स्थल के आसपास के जानवर और पक्षी तीव्र ध्वनि से भयभीत हो जाते हैं, जिससे उनके व्यवहार और प्रजनन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ध्वनि तरंगों की तीव्रता के कारण आसपास के पेड़ों और वनस्पतियों को भी नुकसान हो सकता है। अत्यधिक ध्वनि हानिकारक होती है। यह सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है। प्रक्षेपण स्थल पर मौजूद लोगों को मानसिक तनाव, अनिद्रा और अन्य शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अत्यधिक तीव्र ध्वनि तरंगें आसपास की इमारतों और संरचनाओं को क्षति पहुंचा सकती हैं।
जब राकेट उड़ान भरता है, तो उसका इंजन बहुत अधिक गर्मी और गैस उत्सर्जित करता है, जिसमें हानिकारक रसायन और भारी धातुएं होती हैं। ये रसायन जमीन पर गिर कर मिट्टी में मिल जाते हैं। जिससे उसकी प्राकृतिक गुणवत्ता को नुकसान पहुंचता है। राकेट ईंधन में मौजूद हानिकारक रसायन (जैसे, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और भारी धातुएं) मिट्टी की संरचना को बदल देते हैं। इन रसायनों के कारण मिट्टी का पीएच स्तर असंतुलित हो सकता है, जिससे वहां की खेती और पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है। प्रदूषित मिट्टी में सूक्ष्म जीवों और कीड़ों के जीवित रहने में कठिनाई । होती है, जिससे जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ता है। इन रसायनों का असर मिट्टी पर लंबे समय तक बना रह सकता है, जिससे जमीन की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है। वहीं प्रक्षेपण से अंतरिक्ष मलबे का बनना एक बड़ी समस्या जब कोई राकेट अंतरिक्ष में भेजा जाता है, तो उसके अलग-अलग हिस्से जैसे बस्टर जसे बूस्टर और उपग्रह को अंतरिक्ष में ले जाने वाले अन्य उपकरण, अपने काम पूरे करने के बाद अलग हो । इनमें से कुछ पृथ्वी पर वापस गिरते हैं, लेकिन कई टुकड़े अंतरिक्ष में ही घूमते रहते हैं। पुराने और निष्क्रिय उपग्रह समय के साथ टूटने लगते हैं, जिससे छोटे-छोटे टुकड़े बन जाते हैं। जब दो उपग्रह या मलबे आपस में टकराते हैं, तो उनके टुकड़े और ज्यादा मलबा बनाते हैं।
राकेट और उपग्रह भेजने के के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम और दिशा-निर्देश बनाए गए हैं, ताकि मलबे की समस्या को नियंत्रित किया सके। प्रक्षेपण स्थल के चारों ओर ध्वनि अवरोधक बनाए जा सकते हैं। राकेट प्रक्षेपण के दौरान जलवाष्प का उपयोग ध्वनि तरंगों की तीव्रता को कम करने के लिए किया जाता है। यह तरीका नासा और अन्य एजेंसियां अपनाती हैं। क्लोरीन आधारित ठोस र्इंधनों को नाइट्रोजन आधारित यौगिकों से प्रतिस्थापित करना ओजोन परत की सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम है। स्पेसएक्स जैसे संगठनों ने पुन: उपयोग योग्य राकेट विकसित किए हैं, जैसे फाल्कन 9, यह तकनीक हर प्रक्षेपण के लिए नए राकेट की जरूरत को समाप्त करती है।