Friday, January 10, 2025
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पीटीओ प्रीति की भ्रष्टाचार से ‘प्रीत’, ये रिश्ता क्या कहलाता है?

  • आरटीओ और पीटीओ की बेनामी संपत्ति की जांच की मांग
  • भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट व सामाजिक संगठनों की मांग
  • प्रतिमाह दो करोड़ के ऊपरी कमाई के लगाए जा रह हैं आरोप
  • दोनों अफसरों को बताया लग्जरी गाड़ियों और बंगलों का शौकीन

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: ऊपरी कमाई को लेकर महकमे में अक्सर सुर्खियां बटारने वाले भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके संभागीय परिवहन कार्यालय के आरटीओ हिमेश तिवारी व पीटीओ प्रीति पांडे (पैसेंजर टैक्स आॅफिसर) की बेनामी संपत्ति की जांच कराए जाने की मांग जोरशोर से उठ रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिमों से जुडेÞ रहे अनेक समाजिक व आरटीआई एक्टिविस्ट ने इसको लेकर शासन से ईडी व सीबीआई जांच कराए जाने की मांग की है।

उन्होंने सवाल पूछा है कि पीटीओ की भ्रष्टाचार से प्रीति, ये रिश्ता आखिर क्या कहलाता है। इसका खुलासा तभी संभव है, जब इनकी बेनामी संपत्ति की जांच कर ली जाए। यदि बेनामी संपत्ति की जांच कर ली जाएगी तो हो सकता है कि चौंकाने वाले खुलासे भी हो जाएं।

आरटीओ की कलाई पर 12 लाख की रोलेक्स घड़ी

आरटीओ हिमेश तिवारी की कलाई पर 12 लाख रुपये कीमत की रोलेक्स घड़ी को लेकर भी तमाम चचार्एं हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मेरठ आरटीओ की सीट को प्रदेश भर की मलाईदार सीटों में शामिल किया जाता है, लेकिन यह मलाई इतनी गाढ़ी होगी कि 12 लाख कीमत की रोलेक्स घड़ी कलाई पर आ जाएगी ये शायद किसी ने सोचा नहीं था। कलाई पर 12 लाख कीमत की घड़ी तो महज बानगी भर मानी जा सकती है, यदि ईडी व सीबीआई सरीखी एजेंसी जांच करने पर उतर आएं तो और न जाने ऐसे कितने बडेÞ खुलासे हो जाएंगे।

वायरल वीडियो को लेकर पीटीओ की खूब हुई थी किरकिरी

ऐसे सवाल उठाने वाले एक सीनियर आरटीआई एक्टिविस्ट व सामाजिक कार्यकर्ता धनश्याम तिवारी का तो यहां तक कहना है कि पीटीओ का एक वीडियो जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, वो आज भी महकमे में ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर अक्सर एक्टिव रहने वालों को आज भी याद है। इस वीडियो में सरकारी गाड़ी में बैठी पीटीओ प्रीति पांडे को रोक कर लोग उनके मुंह पर ही उनके भ्रष्टाचार की कलई खोल रहे हैं। इस वीडियो में प्रीति पांडे सार्वजनिक रूप से खुलासा होते देखकर वहां से तेजी से निकल जाती हैं।

यह वीडियो लखनऊ के सत्ता के गलियारों में भी खूब वायरल हुआ है। साथ ही लोगों का यह भी कहना है कि पीटीओ की तो कारगुजारियां समझ में आती हैं, लेकिन आरटीओ व दूसरे सीनियर अफसर क्यों नहीं महकमे की बदनामी का कारण बनने वाली कारगुजारियों पर अंकुश लगा पा रहे हैं या फिर यह मान लिया जाए कि भ्रष्टाचार की इस बहती गंगा में सभी हाथ धो रहे हैं। और जब मेरठ जैसा जिला मिल जाए जहां एक बड़ी ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री है तो फिर कहना ही क्या है। भ्रष्टाचार के कई मामलों को लेकर आए दिन ईडी व सीबीआई के अफसरों से मिलने वाले

तथा जांच करा चुके जफर अहमद का कहना है कि पीटीओ को लेकर जो कुछ मीडिया में आ रहा है, वो वाकई गंभीर रही नहीं बल्कि शर्मसार करने वाला है, लेकिन उससे भी ज्यादा गंभीर बात यह कि आरटीओ आॅफिस की जिम्मेदारी जिनके कंधों पर है, वो ऐसा कुछ करते नजर नहीं आ रहे हैं जिससे लगे कि पीटीओ पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर वो गंभीर हैं तथा इनकी वजह से कथित रूप से दागदार हो रही महकमे की छवि को धोने के लिए कोई प्रयास किए जा रहे हैं।

चुप्पी यानि आरटीओ की भी सहमति या फिर कुछ और

पीटीओ प्रीति पांडे पर को लेकर जो कुछ मीडिया व सोशल मीडिया पर सामने आ रहा है। इसके अलावा तमाम राजनीतिक दलों के बडेÞ नेताओं द्वारा आरटीओ के आॅफिस के भ्रष्टाचार को लेकर जिस प्रकार से गंभीर आरोप लगा चुके हैं। उसके बाद भी आरटीओ हिमेश तिवारी का धरातल पर उतर कर भ्रष्टाचार के खिलाफ बजाए ठोस कार्रवाई के पीटीओ से जुडेÞ सवालों से भागने नजर आना, इससे साफ है कि केवल दाल मेें काला ही नहीं है बल्कि पूरी दाल काली है। वर्ना क्या वजह है कि मीडिया में आए दिन फजीहत होने के बावजूद भ्रष्टाचार के प्रति प्रीति दिखाने वाली पीटीओ के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।

भ्रष्टाचार के तमाम ऐसे मामलों को लेकर शासन में पंचतम तल पर बैठे सिस्टम को चलाने वालों के समक्ष मजबूती से आवाज उठाने वाले एक अन्य आरटीआई एक्टिविस्ट व पूर्व अधिकारी रमेश सिन्हा का कहना है कि इस प्रकार के मामलों में पीटीओ सरीखे किसी एक अफसर को बचाने के प्रयास में कई बार उन्हें संरक्षण देने वाले आरटीओ हिमेश तिवारी सरीखे अधिकारी पर भी शासन का चाबुक चल जाता है और ऐसा हमेशा ही होता है। दरअसल, भ्रष्टाचार में लिप्त और मीडिया व सोशल मीडिया पर अपनी बदनामी से बेखबर अफसरों को अक्सर लगता है कि यदि पैसे लेने के मामले में उनकी बदनामी हो रही है

या फिर वो विजीलेंस सरीखी किसी सरकारी जांच एजेंसी के हत्थे चढ़ जाते हैं तो बाद में पैसा देकर छूट भी जाते हैं, लेकिन प्रदेश का शासन चलाने वालों ने यह कई बार साबित किया है कि अब पहले जैसा कुछ नहीं, यदि भ्रष्टाचार करोंगे तो जेल भी जाना पडेÞगा और सस्पेंड भी होना पडेÞगा और तो और हो सकता है कि नौकरी से भी हाथ धोना पड़ जाए, इसलिए बेहतर तो यही होगा कि अपने कारनामों का खुद ही खुलासा कर दें, ताकि कम से कम सजा मिले, लेकिन रमेश सिन्हा का मानना है कि ऊपरी कमाई पर विश्वास करने वाले अक्सर सोचते हैं कि कोई उन्हें देख नहीं रहा है, उनके भ्रष्ट कारनामों की खबर किसी को नहीं। वो किससे पैसे ले रहे हैं,

पैसे लेकर किस को छोड़ रहे हैं इस बात की भनक भी किसी को नहीं, लेकिन ऐसा सोचना ही इस प्रकार के अधिकारियों के ट्रेप होने या फिर सीबीआई सरीखी किसी ऐसी ही बड़ी एजेंसी के शिकंजे में फंसने की बड़ी वजह होती है। रमेश सिन्हा का तो यहां तक कहना है कि दरअसल होता यह है कि ऐसे अधिकारियों की कारगुजारियों का डोजियर अक्सर उनके साथ काम करने वाला स्टॉफ ही जांच एजेंसी को थमा देता है। भ्रष्टाचार के प्रति प्रीति रखने वाली पीटीओ के साथ यदि कुछ ऐसा हो जाए तो हैरान होने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है।

रमेश सिन्हा का यहां तक कहना है कि यदि पीडीओ फंसी तो फिर वो अकेली नहीं फंसेंगी उनके साथ आरटीओ दफ्तर के कई बड़े अफसर भी फंसने तय है और सूत्रों का यदि यकीन करें तो इस पर काम शुरू हो चुका है। तमाम शिकायतें उच्च पदस्थ तक पहुंच चुकी हैं। जिनमें पीटीओ प्रीति पांडे व आरटीओ हिमेश तिवारी की कारगुजारियों का डोजियर भी शिकायतों के साथ भेजा गया है। माना जा रहा है कि बेहद टॉप सीक्रेट तर्ज पर किसी भी वक्त शिकंजा कस दिया जाएगा।

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शिकायतों में पीटीओ और आरटीओ पर ये लग रहे हैं आरोप

सूत्रों ने जानकारी दी है कि पीटीओ व आरटीओ के खिलाफ जिस डोजियर की बात सुनने में आ रही है। उसमें जो आरोप लगे हैं सूत्रों की माने तो उसमें उच्च पदस्थ को अवगत कराया गया है कि आरटीओ में किसी भी कार्य की बगैर पैसे कल्पना ना करे। केवल दफ्तर ही नहीं पीटीओ सरीखा जितना भी स्टॉफ फील्ड में लगा है। उसको लूट की खुली छूट दी गयी है। इस खुली छूट की बदौलत महीने में दो करोड़ की ऊपरी कमाई की बात सुनने में आती है। ऊपरी कमाई की यदि बात करें तो इस कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन गाड़ियों से आता है

जो अवैध रूप से संचालित की जा रही है। इनके अलावा वो गाड़ियां जिनके कोई कागज या परमिट नहीं है फिर भी सड़कों का सीना चीरकर बेरोकटोक माल की ढलाई कर रही है। तमाम वो वाहन भी इस ऊपरी कमाई की श्रेणी में आते हैं जो प्राइवेट हैं और उनका व्यवसायिक प्रयोग किया जा रहा है। जिन वाहनों को कृषि कार्य के चलते निम्न टैक्स श्रेणी में रखा गया है और उनसे व्यवसायिक कार्य लिया जा रहा है। ऐसे वाहन भी ऊपरी कमाई का एक बड़ा जरिया है।

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