Tuesday, May 20, 2025
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किसानों-कामगारों के दर्द पर वेस्ट यूपी में महाभारत की तैयारी

  • वेस्ट यूपी में एकाएक तेज हुर्इं गतिविधियां, स्थानीय मुद्दों पर लामबंदी हुई तेज
  • फिजाओं में गूंज रहे जाट आरक्षण, प्रदेश विभाजन, हाईकोर्ट बेंच
  • किसानों के मुद्दे मेरठ में हनुमान राव के बाद योगेंद्र यादव, 24 को जाट आरक्षण महापंचायत
  • एक अक्टूबर को मेरठ में होगी जाट पार्लियामेंट, बेंच पर वकीलों में भी सुलग रहा आक्रोश

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: लोकसभा चुनाव 2024 के पहले विभिन्न सामाजिक राजनीतिक संगठन एकाएक सक्रिय हो गए हैं। जाट एक बार फिर केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण का मुद्दा गरमाने में जुट गए हैं। वहीं, योगेंद्र यादव किसानों की दुखती रग पर हाथ रखने के लिए शनिवार को मेरठ आ रहे हैं। हापुड़ के मुद्दे पर वकीलों की नाराजगी अब हाईकोर्ट बेंच आंदोलन को नए सिरे से हवा दे सकती है। अक्टूबर में मेरठ में पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकास मंच प्रदेश के बंटवारे पर पंचायत किरने की तैयारी कर रहा है।

चुनाव को देखते हुए इन दिनों सत्ता पक्ष और विपक्ष तरकश का हर तीर आजमा रहा है। सरकार के हर कदम को चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। पूर्व में 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों की तरह इस बार भी सियासी महाभारत का केंद्र पश्चिमी यूपी ही बनने के आसार हैं। इसको देखते हुए विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक संगठन लामबंदी में जुटे हैं।

इनमें सबसे गरम जाट आरक्षण का मुद्दा है। जाट महासभा ने 24 तारीख को मेरठ में विशाल पंचायत बुलाई है। इसमें भाकियू अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत और जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक भी शामिल होंगे। इससे जाहिर है कि जाट नेता आरक्षण को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर रहेंगे।

क्यों अहम है जाटों के लिए आरक्षण का मुद्दा?

यूपी में जाट ओबीसी में हैं जबकि केंद्र में सामान्य श्रेणी में हैं। यूपीए सरकार ने चार मार्च 2014 को अधिसूचना जारी कर जाटों को केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण का फैसला लिया था। तब इसके दायरे में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, दिल्ली, बिहार, उत्तराखंड और राजस्थान (दो जिलों और धौलपुर को छोड़कर) के जाट आ गए थे। यूपीए सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग के सर्वेक्षण का इंतजार किये बिना ही जाट आरक्षण को मंजूरी दे दी थी।

इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। इसके बाद 17 मार्च 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने जाट आरक्षण पर रोक लगा दी थी। तभी से जाट आरक्षण की मांग जोर शोर से उठाते रहे हैं। हालांकि हरियाणा में आंदोलन के दौरान हिंसा होने के बाद से यह मांग कमजोर पड़ गई थी। इसकी एक बड़ी वजह आरक्षण आंदोलन चला रहे नेताओं के बीच पैदा हुए मतभेद भी रहे। अब 2024 के चुनाव के ठीक पहले यह मांग फिर जोर पकड़ रही है।

अखिल भारतीय जाट महासभा के महासचिव चौधरी युद्धवीर सिंह कहते हैं। सबसे बड़ा अन्याय ये है कि जाट प्रदेश में ओबीसी और केंद्र में सामान्य श्रेणी में हैं। यह कैसे हो सकता है कि जो युवा प्रदेश सरकार की नौकरी के लिए आवेदन कर रहा है वह केंद्र की नौकरी के लिए आवेदन करते समय सामान्य में आ जाता है। भाजपा की केंद्र सरकार ने अगर सुप्रीम कोर्ट में ढंग से पैरवी की होती तो जाट आरक्षण खारिज नहीं होता। अब आंदोलन के सिवा कोई रास्ता नहीं है।

योगेंद्र यादव के भाईचारा सम्मेलन पर सबकी निगाहें

मेरठ पश्चिमी यूपी के किसानों की सियासत का लंबे समय से केंद्र रहा है। भारत जोड़ो अभियान और भाईचारा मंच के संयुक्त आयोजन में योगेंद्र यादव शनिवार को मेरठ के पीएल शर्मा मैमोरियल में होंगे। इस आयोजन के लिए किसानों की समस्याओं और उनकी सरकार के प्रति नाराजगी को हवा देने की कोशिश होगी। इसके बड़े सियासी मायने हैं।

प्रदेश विभाजन के मुद्दे को भी हवा देने की तैयारी

हाल ही में पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकास मंच के नाम से संगठन की कोर कमेटी का गठन किया गया है। इस मंच से जाट आरक्षण आंदोलन से सुर्खियों में आए यशपाल मलिक जुड़े हैं। यह संगठन भी प्रदेश के बंटवारे के मुद्दे पर अक्टूबर में मेरठ में एक विशाल सम्मेलन की तैयारी कर रहा है। संगठन का एक वाट्सऐप ग्रुप और फेसबुक पेज भी बनाया गया है।

गन्ने पर भी गरमाएगी सियासत

अक्टूबर से गन्ने पर भी पश्चिमी यूपी में सियासत तेज होगी। गन्ने का भाव बढ़वाने के लिए भाकियू भी किसानों की लामबंदी करेगी। अगले साल लोकसभा चुनाव हैं, इसलिए यूपी सरकार पर इस बार गन्ने के दाम में अच्छा खासा इजाफा करने का दबाव किसान संगठन निश्चित तौर पर बनाएंगे। इस तरह अगले दो से तीन माह मेरठ और वेस्ट यूपी में सियासत के नजरिये से अहम होंगे। शुक्रवार को किसान नेता हनुमान राव मेरठ में थे। उन्होंने यहां किसानों के लिए एक चार्टर पर बात की।

जाट संसद से पहले आरक्षण पर महासभा की पंचायत के मायने

राजस्थान के दो युवा जाट नेता रामअवतार पलसानिया और पीएस कलवानिया अंतरराष्टीय जाट संसद के नाम से संगठन चला रहे है। अब तक ये देश विदेश के विभिन्न शहरों में जाट संसद का आयोजन कर चुके हैं। इनके आयोजनों में सत्ता पक्ष के जाट नेताओं की भी खासी भागीदारी रहती है। हालांकि जाट आरक्षण पर ये केंद्र के खिलाफ कोई मुखर विरोध नहीं करते।

इनका दावा है कि ये कला, राजनीति, साहित्य, शिक्षा, रोजगार, संस्कृति, सृजन व गौरवशाली जाट इतिहास को जन-जन तक पहुंचाने के लिए काम करते हैं। ये एक अक्टूबर को मेरठ में आयोजन करने जा रहे हैं। जाट महासभा ने इसकी संसद के आयोजन से पहले आरक्षण के मुददे को हवा देकर सियासी चर्चाएं तेज कर दी है।

जाट, किसान, दलित और मुसलमान रहेंगे अहम

अगले कुछ महीने जाटों, किसानों, दलितों और मुसलमानों के बीच सियासी सरगर्मियां तेज रहने के आसार हैं। बसपा से निकाले गए सहारनपुर के मुस्लिम नेता इमरान मसूद को अभी ठिकाना नहीं मिला है। आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर की जयंत चौधरी से नजदीकियां जगजाहिर हैं। पश्चिमी यूपी में सबसे ज्यादा छटपटाहट दलित, मुस्लिम, जाट और किसान सियासत में ही है।

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