Friday, March 29, 2024
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अनेक बीमारियों को जन्म देती हैं मनोविकृतियां

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मनोविकृति एक जटिल मानसिक बीमारी होती है। इसमें व्यक्ति अपना नाता वास्तविकता से तोड़ लेता है। उसे प्राय: अपने आस-पास के लोगों के साथ-साथ समय एवं स्थान का वास्तविक ज्ञान नहीं रहता। उसके चिंतन, विश्वास एवं प्रत्यक्षीकरण वास्तविक न होकर अवास्तविक ही होते हैं।

उसे एक साथ कई आवाजें सुनाई पड़ सकती हैं जिसे उसके आस-पास बैठे सामान्य लोग न तो देखते ही हैं और न ही सुनते ही हैं। इन बीमारियों का आधार कोई जीवाणु या वायरस नहीं होता। इनका आधार जैविक होता है या फिर मनोवैज्ञानिक। एड्स, कैंसर, नपुंसकता, कोढ़, बांझपन आदि बीमारियां भी मनोवैज्ञानिक असंतुलन को पैदा करके समस्याओं को उलझा देती हैं।

गांवों-देहातों में अक्सर सुना जाता है कि अमुक स्त्री को भूत ने पकड़ लिया है या फिर उसके सिर पर देवी-देवता सवार हो गया है। इस तरह की घटनाओं का वर्णन प्राय: नित्य देखने-सुनने को मिल जाया करता है। यह कहानी भूत-प्रेत देवी-देवताओं की न होकर मनोविकृतियों के कारणों से घटित हुआ करती हैं।

मनोवैज्ञानिक समस्याओं को भूत-प्रेत की छाया या देवी का प्रकोप समझकर इसके त्रसदी झेलने वालों के साथ अमानवीय व्यवहार आज भी किया जाता है किंतु विज्ञान ने आधुनिक युग में मनोवैज्ञानिक बीमारियों को भी अन्य रोगों की भांति ही एक रोग माना है।

मनोवैज्ञानिक समस्याओं का निराकरण जादू-टोना, ओझा-गुनी, तंत्र-मंत्र या अन्य अवैज्ञानिक स्रोतों में न ढूंढकर सार्थक प्रयासों से ढूंढा जाना चाहिए। ओझा-गुनी मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल तो नहीं निकाल पाते बल्कि उन्हें भी उलझा डालते हैं।

मनोवैज्ञानिक समस्याएं मूलत: निरर्थक चिंतन, अनुभूति एवं व्यवहार के दोषपूर्ण होने के कारण उत्पन्न होती हैं। जब व्यक्ति इन दोषों से ग्रसित होकर मानसिक अस्वस्थता को उत्पन्न कर लेता है, तब उसके दैनिक क्रिया कलाप, उसकी नींद, भूख, लोगों से मिलने-जुलने की इच्छा या तो खत्म हो जाती है या फिर बिलकुल ही कम हो जाती है।

व्यक्ति में समायोजना शक्ति का हृास होने लगता है और वह स्वयं अपने लिए तथा समाज के दूसरे लोगों के लिए समस्याएं उत्पन्न कर देता है।

मनोस्नायु विकृति एक साधारण प्रकृति की बीमारी है क्योंकि इस तरह के रोगी का संबंध वास्तविकता से होता है। रोगी को अपना, अपने इर्द-गिर्द के लोगों के अतिरिक्त स्थान तथा समय का वास्तविक ज्ञान रहता है। चिंता, उन्माद, उदासी, अनैच्छिक विचार और व्यवहार, अवास्तविक भय इत्यादि इसके मुख्य उदाहरण होते हैं। वह व्यक्ति के बीच में तो रहता है किंतु उससे छुटकारा भी पाना चाहता है।

मनोविकृति एक जटिल मानसिक बीमारी होती है। इसमें व्यक्ति अपना नाता वास्तविकता से तोड़ लेता है। उसे प्राय: अपने आस-पास के लोगों के साथ-साथ समय एवं स्थान का वास्तविक ज्ञान नहीं रहता। उसके चिंतन, विश्वास एवं प्रत्यक्षीकरण वास्तविक न होकर अवास्तविक ही होते हैं।

उसे एक साथ कई आवाजें सुनाई पड़ सकती हैं जिसे उसके आस-पास बैठे सामान्य लोग न तो देखते ही हैं और न ही सुनते ही हैं। इन बीमारियों का आधार कोई जीवाणु या वायरस नहीं होता। इनका आधार जैविक होता है या फिर मनोवैज्ञानिक। एड्स, कैंसर, नपुंसकता, कोढ़, बांझपन आदि बीमारियां भी मनोवैज्ञानिक असंतुलन को पैदा करके समस्याओं को उलझा देती हैं।

नशीले पदार्थों का सेवन, शिक्षण संबंधी त्रुटियां, मानसिक दुर्बलता, वैवाहिक जीवन की बहुत सारी समस्याओं का निदान और पुनर्वास मनोवैज्ञानिक कार्य क्षेत्र में आता है। मनोवैज्ञानिक बीमारियों को जैविक, सामाजिक कारण तथा मनोवैज्ञानिक कारणों के रूप में बांटा जा सकता है।

मनोविकृति के रोगियों में रक्त रसायन संबंधी त्रुटियां भी पाई जा सकती हैं। यूं तो प्राय: सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिक तनाव अंत:स्रावी ग्रन्थियों की क्रियाओं को प्रभावित करते हैं किंतु अनुपयुक्त पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरणों में मानव के अंतर्गत न सिर्फ मनोवैज्ञानिक तनाव ही उत्पन्न होता है बल्कि उसके आंतरिक मूल्य निर्माण में योगदान देकर मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करती है।

शंका, ईर्ष्या, घृणा आदि दुष्प्रवृत्तियों के कारण भी मनोविकृतियां समा जाती हैं। पति का दूसरी स्त्री के साथ हंस-हंसकर बातें करना या पत्नी को दूसरे पुरूष के साथ स्वच्छंद होकर बातें करना देखकर भी मनोविकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं। धीरे-धीरे वे इतनी जटिल होती चली जाती हैं कि उन्माद-सा छाने लगता है और रोगी को अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रह पाता।

मनोस्नायु विकृति के रोगियों का उपचार तो बिना औषधियों के भी सिर्फ मनोवैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति जैसे-व्यवहार चिकित्सा, परामर्श या द्वारा भी संभव है। उपचार-विधि में दवा हो या मनोवैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति, व्यक्ति को पल-पल प्रभावित करने वाले उसके पूरे परिवार एवं आस-पास के लोगों के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है।

मानसिक स्वास्थ्य को विकसित करने के लिए हमेशा उपयुक्त विधि निरोधात्मक उपाय है। निरोधात्मक उपाय को उपचारात्मक उपाय से हमेशा श्रेष्ठ माना गया है। सकारात्मक सोचों से मनोविकृतियों पर अंकुश लगाकर अनेक प्रकार की शारीरिक व मानसिक बीमारियों से बचा जा सकता है।


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