प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में भगदड मचने से दर्जनों लोग असमायिक मौत के शिकार हो गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए। समागम स्थलों पर भगदड़ और मौत के तांडव का यह कोई पहला मामला नहीं है। अभी कुछ दिन पूर्व ही आन्ध्र प्रदेश के तिरुपति के बैकुंठ द्वार में टिकेट केंद्र के पास भगदड़ मचने से कई लोगों की जान चली गई थी। इसके पहले 6 माह पूर्व भी उत्तर प्रदेश के हाथरस में नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ मचने से सैकड़ों लोक काल के गाल में समा गए थे।
भारत में धार्मिक आयोजनों के दौरान इस तरह कीे घटनाएं होना आम बात हो गई है। अगर इस तरह की घटनाओं की लिस्ट बनाई जाए तो वह बहुत लंबी हो जाएगी। इस तरह की अक्सर होने वाली घटनाओं की रोकथाम के लिए संभावित उपायों पर प्रशासन की गंभीरता पर प्रश्न चिह्न लगाने वाली यह घटना है। सवाल यह उठता है कि इन दर्दनाक हादसों की पुनरावृत्ति क्यों होती है? क्या हम पूर्व में हुई घटनाओं से कुछ नहीं सीखते हैं? क्यों इसका खामियाजा लोगों को अपनी जान देकर भुगतना पड़ता है? निश्चित तौर पर छोटी सी लाहपरवाही लोगों की जिदंगी को ले डूबती है। चारों तरफ जय-जयकार की ध्वनि की बजाय हाहाकार की चीख पुकार सुनाई पड़ने लगती है। अफरा-तफरी में कई बच्चे, महिलाएं और वृद्ध भीड़ के पैरों तले कुचल दिए जाते हैं। दर्दनाक मौत का नजारा इससे भयानक और क्या हो सकता है? लेकिन सबक किसने लिया न जनता ने, न आयोजकों ने और न ही प्रशासन के आला आधिकारियों ने। इस त्रासदी के बाद एक बार फिर सवाल उठता है कि आखिर हम पुरानी घटनाओं से कोई सबक कब लेंगे। इन घटनाओं की आवृत्ति से यह बात भी सामने आती है कि आखिर क्यों हम इतनी भीड़ को बिना प्रशासन और जिम्मेदारी के एकत्रित कर लेते हैं। इस मामले में आयोजक को नियमों में क्यों नहीं बांधते? हर हादसे के बाद सरकार मुआवजा बांटती है, जांच बिठाती है, पर अपनी गलतियों को सुधारने का काम भूल जाती है। बार-बार के हादसों से भी हम सबक सीखने को तैयार नहीं हैं। यह इसलिए कहना पड़ रहा है, क्योंकि इस तरह की भगदड़ में सबसे कमजोर व्यक्ति की जान जाती है। फिर भी प्रशासन सोया रहता है।
भारत विविध आस्थाओं एवं पर्वों वाला देश है, जहां समय-समय पर इस तरह की भीड़ जुटती है। इस तरह के पर्वों पर जुटने वाली भीड़ किसी के निमंत्रण पर नहीं जाती और न ही इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि उस स्थान पर कितने लोग जुटेंगे। जैसे ही पर्व-त्यौहार आते हैं, अपनी श्रद्धा के अनुसार लोग पहुंचने लगते हैं। इस तरह की घटनाओं को रोकने का सबसे अच्छा उपाय तो यही है कि ऐसे अवसरों पर उमड़ने वाली भीड़ को नियोजित और अनुशासित करने के प्रशासकीय उपाय किए जाएं। अच्छा हो प्रशासन वहां पहुंचने वाले लोगों के समुचित मार्गदर्शन की व्यवस्था करे। सतर्कता के आवश्यक उपाय सुझाए। यह कदम हर उस समागम स्थल के लिए उठाए जाने चाहिए जहां आकस्मिक भीड़ उमड़ने की संभावना पर्व विशेष पर रहती है। आपदा प्रबंधन की आधुनिक तकनीक उपलब्ध होने के इस दौर में यह कोई कठिन काम नहीं है। राज्य एवं केंद्र के स्तर पर एकीकृत व्यवस्था का विचार भी किया जा सकता है। सिर्फ प्रशासन ही नहीं वहां पहुंचने वाले लोगों को भी अब अधिक सतर्क रहना चाहिए।
इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ असामाजिक तत्व इस तरह की भगदड़ मचाने का प्रयास करते हों, ताकि उसका लाभ उठाया जा सके। प्रशासन की सतर्कता का एक नजरिया यह भी होना चाहिए। फिर भी ऐसी भीड़भाड़ में लोगों के लिए अपनी सुरक्षा के प्रति खुद सतर्क रहना आवश्यक है। व्यापक इतंजाम करने की जिम्मेदारी आयोजकों से लेकर पुलिस प्रशासन की बनती है। आज धर्म और आस्था के नाम पर किसी विशेष त्यौहार व दिन के मौके पर, इन जगहों पर लोग भारी संख्या में जुटते हैं। आयोजकों, प्रशासकों के अलावा एक जिम्मेदारी स्वयं भक्तों की भी होती है। उन्हें अफवाहों पर ध्यान न देकर धैर्य व संयम बनाए रखना चाहिए, ताकि भीड़ में किसी भी अनहोनी घटना से बचा जा सके।ये त्रासदियां कोई प्राकृतिक आपदा नहीं हैं, बल्कि लापरवाही का नतीजा हैं। इसमें स्थानीय प्रशासन, धार्मिक संस्थान के प्रबंधन और भीड़ में शामिल लोगों की भूमिका होती है। भगदड़ मचने के जो कारण हो सकते हैं, वे सबको पता हैं। त्योहारों के दौरान धार्मिक स्थलों पर भारी भीड़ होना सामान्य सी बात है। भगदड़ मचने का खास कारण तो यही होता है कि किसी भी छोटे से स्थान विशेष पर हजारों और लाखों की संख्या में अनियंत्रित लोग एकत्रित हो जाते हैं। उन पर नियंत्रण रखने की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं होती। इस मामले में स्थानीय प्रशासन, मंदिरों या धार्मिक स्थलों की व्यवस्था से जुड़े लोग थोड़ी सी गंभीरता बरतें तो ऐसे हादसे नहीं हो सकते।
मेलों, मंदिरों और ऐसे आयोजनों में भीड़ नियंत्रण का कोई मॉडल तैयार नहीं किया गया है। सरकार को नीति तैयार करनी चाहिए। जहां भी भीड़ जुटने पर वह नीति स्वत: लागू मानी जानी चाहिए। पुलिस के जवानों को प्रशिक्षण आवश्यक है। आज की जरूरत है कि देश में ऐसे स्थानों की विस्तृत समीक्षा हो, जहां भारी भीड़ जुटती है। भीड़ को नियंत्रित करने का एक ठोस तंत्र विकसित हो। आस्था अपनी जगह है, लेकिन आस्था को कायम रखने के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए। धार्मिक मेलों एवं आयोजनों पर प्रशासन को अब गंभीरता से निगाह रखने का तंत्र विकसित करना होगा ताकि फिर ऐसी त्रासदी घटित न हो सके।