Tuesday, December 3, 2024
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ढाई दशक से मेडा और किसानों में ‘रार’

शताब्दी नगर योजना में किसानों और मेरठ विकास प्राधिकरण के बीच 600 एकड़ भूमि को लेकर बीते 23 सालों से विवाद चल रहा है। 1989 में मेरठ विकास प्राधिकरण ने शताब्दी नगर योजना शुरू की थी। प्राधिकरण ने कंचनपुर घोपला, जैनपुर, रिठानी, अचरौंडा आदि गांव की 1700 एकड़ जमीन किसानों से अधिग्रहित की थी। किसानों को मुआवजे की धनराशि भी दे दी गई। फिर भी ये विवाद नहीं नहीं सुलझ रहा है। किसान नई जमीन अधिग्रहण नीति से मुआवजा मांग रहे हैं। जमीन पर किसान मेडा को कब्जा नहीं दे रहे हैं। शताब्दीनगर कॉलोनी को कब अनापत्ति पत्र मिलेगा। ढाई दशक बीतने के बाद भी प्लाट पर ही कब्जा नहीं मिला। ये प्रकरण किसी प्राइवेट बिल्डर का रहा होता तो अब तक उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया जाता, लेकिन ये प्राधिकरण की कॉलोनी हैं, इसलिए सब माफ हैं। कोई नियम कायदे यहां पर लागू नहीं होते। मकान का सपना जो तीन दशक पहले लोगों ने मेडा के प्लाट खरीदकर देखा था, वो अभी तक अधूरा हैं। लोग किराये के मकानों में रह रहे हैं।

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: ढाई दशक का लंबा समय बीत गया, लेकिन शताब्दीनगर का विवाद अभी नहीं सुलझा हैं। कई सरकार आयी और चली गई, लेकिन किसान और मेडा के बीच ‘रार’ बनी है। मेडा अफसर कहते है कि दो बार मुआवजा दे चुके। दोनों बार बढ़ाकर मुआवजा दिया। फिर भी जमीन पर कब्जा नहीं मिला। अब किसान कह रहे है कि नई जमीन अधिग्रहण नीति से मुआवजा दिया जाए। यदि नई नीति लागू होने से पहले कब्जा ले लिया जाता तो ठीक था, लेकिन अब तो नई नीति से ही किसान जमीन का मुआवजा लेने पर अडिग हैं। इसी वजह से रार बढ़ रही हैं। शताब्दी नगर योजना को लेकर किसानों और मेडा के बीच चल रहा विवाद नहीं सुलझ रहा है। विवाद की वजह है 600 एकड़ भूमि है।

जमीन पर किसान कब्जा नहीं छोड़ रहे हैं, वहीं जमीन मेडा ने प्लाट के रूप में जमीन आवंटित कर दी है। आवंटियों को जमीन पर मेडा कब्जा नहीं दिला पा रहा है। आवंटी ‘रेरा’में पहुंच गए हैं, मगर समाधान कुछ भी नहीं हो रहा है। इसी तरह का मामला यदि प्राइवेट बिल्डर काउ रहा होता तो बिल्डर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर अब तक जेल भेज दिया गया होता। क्योंकि ये मामला मेरठ विकास प्राधिकरण से जुड़ा है, इसलिए सब माफ है। जो आवंटी है, वो तीन दशक से प्लाट खरीदकर मेडा के चक्कर लगा रहे हैं। जिंदगी भर की गाढ़ी कमाई मेडा में जमा करा दी, फिर भी घर का सपना अधूरा ही है।

तीन दशक कम समय नहीं है, जो जवान थे, वो बुजुर्ग हो चुके हैं, फिर भी किराये के मकानों में रह रहे हैं। लंबे समय से किसान धरने पर बैठे हैं। समाधान कुछ भी नहीं हो रहा हैं। आवंटियों ने कोर्ट में भी मुकदमा डाल दिया हैं। फिर भी कोई सुनवाई नहीं हुई। प्रशासन का तर्क है कि कई बार किसान मुआवजा ले चुके हैं अब और मुआवजा नहीं। यही वजह है कि तीन दशक से किसानों व प्रशासन के बीच जब भी जमीन पर कब्जा लेने की प्रक्रिया चलती है तो टकराव बन जाता है। आखिर इस टकराव को टालने की दिशा में कोई प्लानिंग क्यों नहीं की जा रही हैं।

600 एकड़ जमीन पर किसान काबिज

1992 में मेरठ विकास प्राधिकरण ने शताब्दीनगर योजना अस्तित्व में आई थी। मेडा ने कंचनपुर घोपला, जैनपुर, रिठानी, अछरौंडा आदि गांव की 1700 एकड़ जमीन किसानों से अधिग्रहित की थी। किसानों को मुआवजे की धनराशि भी दे दी गई। बावजूद इसके मेडा अभी तक 11 एकड़ पर ही कब्जा कर पाया है। 600 एकड़ पर किसान और मेडा में अभी भी विवाद चल रहा है। इस पर किसानों का तर्क है कि उन्हें बढ़ा हुआ मुआवजा दिया जाए। यह मुआवजा नई जमीन अधिग्रहण नीति से दिया जाए। क्योंकि जमीन पर किसानों ने दो दशक से कब्जा नहीं दिया है। जमीन पर किसान काबिज है।

किसान तीन साल से आंदोलित

शताब्दी नगर योजना के मुआवजे की मांग को लेकर किसान तीन साल से आंदोलित हैं। किसान टेंट लगाकर धरने पर बैठे हैं। किसानों के इस आंदोलन के दौरान कई मौके ऐसे भी आये है जब किसानों व प्रशासन के बीच टकराव की नौबत बन गई थी, लेकिन किसान झूके नहीं। इस मुद्दे पर किसान एकजुट हो जाते हैं। यही वजह है कि प्रशासन को पीछे हटना पड़ता हैं। किसानों का तर्क है कि शताब्दीनगर योजना में मेडा का प्रति मीटर जमीन का रेट 20 हजार रुपये मीटर है, जबकि किसान को 900 रुपये प्रति मीटर के हिसाब से ही मुआवजा दिया गया है। किसान मानते है कि शताब्दीनगर योजना को विकसित करने में काफी पैसा खर्च हुआ है,

लेकिन क्या किसान का मुआवजा प्रति मीटर 900 रुपये ही बैठता है? किसानों के इस आंदोलन की अगुवाई करने वाले विजयपाल घोपला का कहना है कि नई जमीन अधिग्रहण नीति के तहत सर्किल रेट का दोगुना शहर में दिया जा रहा है,वहीं किसानों को चाहिए। यह मिलते ही किसान जमीन को कब्जा मुक्त कर देंगे। इसमें तनिक भी देर नहीं लगायेंगे, मगर इसमें प्रशासन पहल तो करें। यह भी किसान नेता विजयपाल घोपला ने ऐलान किया है कि यदि नई जमीन अधिग्रहण नीति से मुआवजा नहीं तो जमीन पर कब्जा भी नहीं छोड़ेंगे।

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