राजपाल पारवा |
शामली: महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ देने वाले दानवीर कर्ण की ऐतिहासिक नगर कैराना के नाम से कैराना विधानसभा सीट पर वर्तमान में देशभर की नजरें गड़ी हुर्इं हैं। गृहमंत्री अमित शाह और उससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कैराना आकर पलायन के मुद्दे को फिर से हवा देकर चले गए लेकिन जिस तरह से फिलहाल कैराना सीट जातीय आंकड़ों में फंसी नजर आ रही है, उससे क्या भाजपा की नैया तीसरी बार किनारे लग पाएगी, ऐसे तमाम सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि भाजपा को 2014 के उप चुनाव के साथ-साथ 2017 के विधानसभा चुनाव कैराना से हार का सामना करना पड़ा है।
भाजपा के कैराना लोकसभा से तत्कालीन सांसद बाबू हुकुम सिंह ने मई 2016 में कैराना पलायन का मुद्दा प्रमुखता से उठाते हुए 348 हिंदू परिवारों के पलायन की सूची जारी की थी। भाजपा ने पलायन का मुद्दा न केवल 2017 के विधानसभा में प्रमुखता से उठाया बल्कि वह प्रदेश की सत्ता पर काबित भी हुई।
यही कारण है कि ‘सोच ईमानदार, काम दमदार’ के साथ-साथ पलायन के मुद्दे को हवा देते हुए ‘फिर एक बार, योगी सरकार’ का नारा भाजपा द्वारा बुलंद किया जा रहा है। कोविड-19 की तीसरी लहर के चलते स्वास्थ्य मंत्रालय की बंदिशों से पहले तमाम जनसभाओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ प्रथम पंक्ति के भाजपा नेताओं ने कैराना पलायन के मुद्दे को हवा दी।
गत 8 नवंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विकास योजनाओं का शिलान्यास/ लोकार्पण करने के बहाने आए लेकिन वे कैराना पलायन के मुद्दे को गर्मा गए थे। अब एक दिन पहले गृहमंत्री ने प्रदेश में प्रथम चरण के लिए भाजपा के चुनाव प्रचार की शुरूआत कैराना की सरजमीं डोर टू डोर जनसंपर्क कर की। शाह ने कैराना वापस लौटे पलायन पीड़ित परिवारों का दु:ख-दर्द साझा किया। साथ ही, कह गए कि कैराना से पलायन कराने वाले खुद पलायन कर गए हैं।
इसलिए तरह से कैराना विधानसभा प्रदेश की सबसे हॉट सीट बन गई है। आगामी 10 मार्च तक यानी चुनाव परिणाम आने तक देशभर की नजरें कैराना पर गड़ी रहेंगीं। कैराना विधानसभा सीट पर जातीय आंकड़ों की बात करें तो यहां पर कुल 3,17,178 मतदाताओं में पुरुष1,70,538 और महिला 1,46,640 हैं। इनके अलावा 13 यानी थर्ड जेंडर के वोटर हैं।
इनमें भी सबसे बड़ी तादाद में 1.37 लाख
मुस्लिम मतदाता हैं। दूसरी नंबर पर कश्यप 40,423 और तीसरे पर गुर्जर 27,550 हैं। इनके अलावा जाट 24,650 और सैनी12,190 मतदाता हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां जाट रालोद प्रत्याशी अनिल चौहान के पक्ष में पड़ा था। इस बार किसान आंदोलन का असर इस क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। क्योंकि कैराना विधानसभ की जाट बेल्ट जनपद की प्रमुख बत्तीसा खाप में आती है।
किसान आंदोलन में बत्तीसा खाप के किसानों का बड़ा योगदान रहा है। साथ ही, 7 हजार पंजाबी जाट भी किसान आंदोलन से अछूते नहीं रहे हैं। क्षेत्र के एक गांव में तो भाजपा सांसद प्रदीप चौधरी के कार्यक्रम के लिए लगाया गया टैंट पंजाबी जाटों ने उखाड़ कर अपना विरोध भी जताया था। इसलिए मुस्लिम, जाट के साथ पंजाबी जाट का गठजोड़ भगवा खेमे को बेचैन किए हुए है।
भले ही कैराना भाजपा के बड़े नेता आ चुके हों या फिर भविष्य में आए। इसका एक बड़ा कारण 98,08 दलित वोटर भी हैं। जिनका बड़ा हिस्सा बसपा का कैडर वोट बैंक है। बसपा प्रत्याशी राजेंद्र उपाध्याय बसपा के दलित के साथ-साथ अपनी जाति के करीब दो से तीन हजार वोट जो अब तक भाजपा को पड़ते रहे हैं, उनमें सेंधमारी कर रहे हैं।
इस तरह कुल मत 3,17,178 वोटर में से अगर 1,70,658 मत निकाल दिए जाए तो फिर 1,38,520 मत बचते हैं। यह अंतर 46,520 मतों का है। यह भी तय है कि भाजपा-सपा भाजपा के अलावा अन्य प्रत्याशी भी अपने-अपने पक्ष में अधिक से अधिक मतदान कराने के लिए ऐड़ी-चोटी के जोर लगाएंगे, इसमें कोई दो राय नहीं। इसलिए भाजपा के लिए कैराना की डगर आसान नहीं कही जा सकती।
इसका कारण भी है, क्योंकि 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद कैराना विधानसभ सीट पर 2014 में हुए उप चुनाव के साथ-साथ कैराना पलायन के सुर्खियों में आने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। अब न तो 2013 के सांप्रदायिक दंगों सरीखा माहौल है, न ही 2016 में सामने आए कैराना पलायन का मुद्दा क्षेत्र में एक वर्ग को अगर छोड़ दिया जाए तो कोई खास प्रक्रिया देखने को नहीं मिल रही है।