देश में आरक्षण की व्यवस्था 1960 में शुरू की गई थी। इस दौरान डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि यह आरक्षण केवल दस साल के लिए होना चाहिए। हर दस साल में यह समीक्षा हो कि जिनको आरक्षण दिया जा रहा है, क्या उनकी स्थिति में कुछ सुधार हुआ है कि नहीं? उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से कहा कि यदि आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है, तो उसके आगे की पीढ़ी को इस व्यवस्था का लाभ नहीं देना चाहिए, क्योंकि आरक्षण का मतलब बैसाखी नहीं है, जिसके सहारे आजीवन जिंदगी जी जाए। यह तो विकसित होने का एक आधार मात्र है। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं।
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अब इस बात को आगे बढ़ाते हैं। आज जब भारत तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहा है, तो उसे फिर से पीछे धकेलने की साजिश क्यों की जा रही है? आज आरक्षण को जारी रखना एक तरह से समाज को दो हिस्सों में बांटने की साजिश करना है। आज आरक्षण देश की जरूरत नहीं है। हम सोचते हैं कि दलित वर्ग इस आरक्षण को हटाने की पहल करेगा, लेकिन ये कतई संभव वहीं है। जिन लोगों को बैसाखी के सहारे की आदत पड़ गई है, वे कभी अपनी बैसाखी को हटाने के लिए नहीं कहेंगे। आज आप यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई करने गए भारतीय बच्चों को देख रहे होंगे? आखिर इनको यूक्रेन जाने की जरूरत क्यों पड़ गई है?
ये एक तरह से प्रतिभा का पलायन करना है। भारत में एमबीबीएस की 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। यूक्रेन में कर्नाटक के छात्र नवीन की मौत हुई है। यह नवीन नीट परीक्षा में 97 प्रतिशत नंबर लाकर भी सरकारी कॉलेज में एमबीबीएस की सीट हासिल नहीं कर पाया था। इसके चलते उसे यूक्रेन जाना पड़ा। ये कहानी नवीन जैसे कई छात्र-छात्राओं की है। हमें इस बार गंभीरता से विचार करना चाहिए। हमें इन नवीनों को देश से बाहर जाने से रोकना ही होगा।
आज आरक्षित वर्ग से देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक बन गए हैं। फिर यह वर्ग पीछे कैसे रह गया?
कई विभागों में बड़े अधिकारी आरक्षित वर्ग से हैं। कई बड़े नेता आरक्षित वर्ग से हैं। फिर हम यह कैसे मान सकते हैं कि आज भी दलित वर्ग का विकास नहीं हो पाया है? दलित वर्ग का विकास काफी हो गया है, अब ये पिछड़े नहीं हैं और न ही कमजोर हैं। अब ये पूरी तरह संपन्न लोग हैं। आप इनके परिवारों और घरों को देखेंगे, तो यह बात आसानी से समझ जाएंगे। आज भारत तेजी से बदल रहा है। जातिगत व्यवस्था से ही एक उदारवादी वर्ग उभरा है, जहां दलितों को बराबरी का दर्जा दिया गया। अब देश में पहले की तरह भेदभाव नहीं रहा है। अब हालात पूरी तरह नहीं, तो बहुत हद तक बदल गए हैं। देश में सवर्णों ने आरक्षण की मांग उठाई। अन्य कई वर्ग भी आरक्षण की मांग उठा रहे हैं।
आखिर क्यों ऐसी स्थिति बन रही है? यह स्थिति आरक्षण की खराब व्यवस्था के लगातार जारी रहने के कारण बन रही है। आज कोई भी आरक्षण की व्यवस्था को लागू रहते देखना नहीं चाहता। सभी इस व्यवस्था से परेशान हैं। यह व्यवस्था देश को पीछे की ओर धकेल रही है। सामाजिक सद्भाव के नाम पर जाति हित देखा गया है। यह सीधे-सीधे समाज का ढांचा बिगाड़ने की कोशिश है। आरक्षण ने सामाजिक वैमनस्य को बढ़ावा दिया है। उसकी वजह साफ है। अगर 80 नंबर लाकर भी कोई 36 नंबर वाले से पीछे रह जाएगा, तो उसके दिमाग में गुस्सा आना स्वाभाविक है। इसलिए इस व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म किया जाना खहिए।
आज हर तरह का आरक्षण पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। किसी को भी एक प्रतिशत भी आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। न सरकारी नौकरियों में और ना ही राजनीति में। आरक्षण कहीं भी नहीं होना चाहिए। इसकी जगह आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की शिक्षा पूरी तरह नि:शुल्क की जानी चाहिए। चाहे वह बच्चा दलित का हो या फिर सवर्ण का। पांच लाख रुपये से कम जिसकी सालाना घरेलू आय है, उसके बच्चे को नि:शुल्क शिक्षा मिले। प्रतियोगिता परीक्षा में कोई आरक्षण नहीं हो, न ही किसी भी तरह का पक्षपातपूर्ण रवैया हो। सबके लिए खुला मैदान होना चाहिए। जो प्रतिभाशाली होगा, आगे निकल जाएगा।
जो प्रतिभाशाली नहीं होगा, वो पीछे रह जाएगा। राजनीति में भी आरक्षण पूरी तरह समाप्त होना चाहिए। जनप्रतिनिधियों पर देश निर्माण की महती जिम्मेदारी होती है। कमजोर प्रतिनिधि देश के निर्माण में सहायक नहीं हो सकते। सभी को समान अवसर मिलना चाहिए। देश को पीछे मत ले जाइए। इस आरक्षण को हटाने की पहली प्राथमिकता बनाइए। आजादी के बाद से काफी कुछ बदल गया है। एक सामाजिक क्रांति देखी गई है। दलित जातिगत व्यवस्था के दबाव से निकलने लगे हैं। देश को बचाइए, किसी जाति को नहीं।
आज आरक्षण देश की जरूरत नहीं है। हम सोचते हैं कि दलित वर्ग इस आरक्षण को हटाने की पहल करेगा, लेकिन ये कतई संभव वहीं है। जिन लोगों को बैसाखी के सहारे की आदत पड़ गई है, वे कभी अपनी बैसाखी को हटाने के लिए नहीं कहेंगे। आरक्षण हटाकर देश को बचाएं, किसी जाति को नहीं।