Saturday, July 27, 2024
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एशियाई और राष्ट्रीय खेलों की तैयारियों की समीक्षा

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  • आईओए की कार्यकारिणी बैठक में फेडरेशन मान्यता पालिसी पर भी हुई चर्चा, खेल नीति और खेल बजट भी रहे एजेंडे में
  • सूबे के नाम हुई विशेष उपलब्धि दर्ज, पहली बार क्रांतिधरा के हिस्से में आई आईओए की बैठक की मेजबानी, पीटी उषा की अध्यक्षता में छह घंटे तक चली मीटिंग

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: अपने आपमें यह बड़ी उपलब्धि रही कि मेरठ और यूपी दोनों के लिहाज से। देशभर में खेलों को संचालित करने वाली सबसे बड़ी खेल संस्था आईओए की कार्यकारिणी की मीटिंग की मेजबानी मेरठ के हिस्से में आई। छह घंटे तक चली इस बैठक में आईओए के शीर्ष पदाधिकारियों ने एशियाई खेलों से लेकर राष्ट्रीय खेलों से जुड़ी तैयारियों की समीक्षा की।

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एनएच-58 स्थित होटल गॉडविन में रविवार को हुई आईओए की कार्यकारिणी मीटिंग में एशिया के सबसे बड़े खेल आयोजन एशियन गेम्स की बाबत सघन चर्चा हुई। ये पहला मौका है कि जब आईओए की विशेष बैठक की मेजबानी यूपी के हिस्से में आई और सूबे में भी मेरठ को इसकी मेजबानी का गौरव मिला।

आईओए अध्यक्ष और नामचीन एथलीट रहीं पीटी उषा की अध्यक्षता में हुई बैठक में 23 सितंबर से चीन में शुरू होने जा रहे इन खेलों के लिए खिलाड़ियों के दल, उनकी तैयारियां तथा अन्य स्टाफ को लेकर बात की गई। इसके अलावा राष्ट्रीय खेल भी बैठक में एजेंडे में शामिल रहे। राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी इस बार गोवा को मिली है और इन खेलों का आयोजन आगामी 25 अक्टूबर से किया जाना है। इसके अलावा राष्ट्रीय खेल नीति, आईओए के बजट और फेडरेशन की मान्यता पालिसी पर भी बात हुई।

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बैठक में पीटी उषा के अलावा उपाध्यक्ष अजय पटेल, गगन नारंग, राजलक्ष्मी सिंह देव, संयुक्त सचिव अलकनंदा सिंह, कोषाध्यक्ष सहदेव सिंह, कार्यकारिणी सदस्य भूपेंद्र सिंह बाजवा, अमिताभ शर्मा, हरपाल सिंह, योगेश्वर दत्त, डोला बनर्जी मौजूद रहे। आस्ट्रेलिया में होने के कारण संयुक्त सचिव कल्याण चौबे से जूम मीटिंग की गई। गौरतलब है कि भूपेंद्र सिंह बाजवा आईओए की कार्यकारिणी के सदस्य तो हैं ही, भारतीय कुश्ती फेडरेशन की एडहाक कमेटी के अध्यक्ष भी हैं।

खेलों में कोचों का रहता है महत्वपूर्ण योगदान

एशियन व नेशनल गेम्स की तैयारियों को लेकर आयोजित आईओए एग्जिक्यूटिव काउंसिल की बैठक में शामिल होने मेरठ पहुंचे अंतर्राष्टÑीय खिलाड़ियों ने आज के दौर में खिलाड़ियों को मिलने वाली सुविधाओं को लेकर अपना पक्ष रखा। बैठक में अंतर्राष्टÑीय पहलवान योगेश्वर दत्त, अंतर्राष्टÑीय शूटर गगन नारंग व अंतर्राष्टÑीय तीरंदाज डोला बनर्जी ने जनवाणी से खुलकर बात की और आगामी अंतर्राष्टÑीय प्रतियोगिताओं की तैयारी पर भी चर्चा की। वहीं पहलवान योगेश्वर दत्त ने हाल ही में महिला पहलवानों द्वारा कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष पर लगाए गए आरोपों को कुश्ती के लिए नुकसान बताया।

तीरंदाजी में एकाग्रता बहुत जरूरी: डोला बनर्जी

भारतीय महिला तीरंदाज डोला बनर्जी ने विभिन्न अंतर्राष्टÑीय प्रतियोगिताओं में 52 गोल्ड, 21 सिल्वर व 8 कांस्य पदक जीते है। 2004 में आयोजित समर ओलंपिक में डोला ने देश का प्रतिनिधित्व किया था। यहां उन्होंने 642 अंक हासिल करते हुए 13वां स्थान पाया था। इसके बाद वर्ष 2010 में डोला ने महिला रिकर्व टीम इवेंट में गोल्ड जीता था, जबकि व्यक्तिगत इवेंट में भी उन्होंने कांस्य पदक अपने नाम किया था।

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तीरंदाजी में शानदार योगदान के लिए उन्हें 2005 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। तीरंदाजी के उभरते हुए खिलाड़ियों को लेकर डोला ने बताया कि अभी जूनियर खिलाड़ियों ने आना शुरू किया है। सीनिसर्य खिलाड़ियों के रिटायर होने के बाद अब जूनियर्स पर काफी दारोमदार है। उन्होंने कहा जब वह तीरंदाजी में देश का प्रतिनिधित्व करती थी तो उस समय सुविधाओं का काफी आभाव था, लेकिन अब खिलाड़ियों को सरकार की ओर से काफी अच्छी सुविधाएं मिलने लगी हैं।

आने वाले एशियन गेम्स में नए खिलाड़ियों से काफी उम्मीदें हैं। वह देश के लिए ढेर सारे पदक लेकर आएंगे। नए कोचों की भर्ती हो रही है, जिनके द्वारा खिलाड़ियों को अच्छा प्रशिक्षण दिया जा रहा है, लेकिन एक्सपर्ट कोचिंग देनें वाले कोचों की अब भी कमी है। इस समय चीन तीरंदाजी में नंबर एक पर है, उसका मुकाबला करने के लिए कोचों को भी अपने को इम्प्रूव करना होगा।

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खिलाड़ियों को भी अपनी एकाग्रता बनाए रखनें के लिए लगातार अभ्यास करने की जरूरत होती है। अब आर्चरी की भी काफी प्रतियोगिताएं देश में हो रही है तो खिलाड़ियों और उनके कोचों को यह तय करना होता कि किस प्रतियोगिता में खिलाड़ी ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। अब आर्चरी में भी खिलाड़ियों का भविष्य काफी उज्जवल है।

पहले निशानेबाजों को बंदूक भी आसानी से नहीं मिलती थी: गगन नारंग

अंतर्राष्टÑीय निशानेबाज गगन नारंग लंदन ओलंपिक में जगह बनाने वाले पहले भारतीय राइफल्स निशानेबाज हैं। वह बचपन में चेन्नई के मरीना बीच पर ट्वाय गन से गुब्बारों पर निशाना लगाते थे। इसके बाद निशानेबाजी को लेकर उनका जनून बढ़ता गया। 27 वर्ष की उम्र में लंदन में रॉयल आर्टिलरी बैरक में भारत के लिए ओलंपिक गेम शूटिंग में नजर आए। 10 मीटर एयर राइफल इवेंट में गगन ने भारत के लिए ब्रांन्ज़ मेडल हासिल किया।

उनके पिता भीमसेन नारंग ने पहली बार उन्हें एयर पिस्टल तोहफे में दी थी इसके बाद गगन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2004 में गगन के प्रदर्शन को देखते हुए एथेंस गेम्स में उन्हें भारतीय टीम में शामिल किया गया। 2003 में एफ्रो एशियन गेम्स में गगन ने जिस समय गोल्ड जीता था उस समय उनती उम्र महज 20 वर्ष थी। नई दिल्ली में 2010 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए 4 गोल्ड हासिल किये थे।

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इनमें 10मी व 50मी एयर राइफल कैटेगिरी शामिल थी और वह ऐसा करने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने। 2011 मे निशानेबाजी में गगन की उपलब्धियों को देखकर भारत सरकार ने उन्हें राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया। गगन ने ओलंपिक, आईएसएसएफ, कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप व एशियन गेम्स जैसी अंतर्राष्टÑीय प्रतियोगिताओं में पदकों की झड़ी लगा दी थी। मेरठ पहुंचे गगन नारंग ने बताया पहले के मुकाबले अब शूटिंग के खिलाड़ियों को काफी अच्छी सुविधाएं मिल रही है।

उनके समय में तो निशानेबाजी के लिए बंदूक भी आसानी से नहीं मिलती थी। कई साल इंतजार करना पड़ता था और जब तक बंदूक आती थी तो तकनीक बदल जाती थी। शूटिंग एक महंगा खेल माना जाता है, लेकिन अब सरकार द्वारा गरीब परिवारों के बच्चों को तमाम तरह की सुविधाएं मिल रहीं है। अब ऐसे परिवारों से भी अच्छे शूटर बाहर निकलकर आ रहें हैं। अब स्कूल-कॉलेजों में भी शूटिंग कोच नियुक्त किये जा रहे हैं।

महिला पहलवानों के आरोपों से कुश्ती को नुकसान पहुंचा: दत्त

हरियाणा के रहने वाले योगेश्वर दत्त ने 2012 लंदन ओलंपिक में देश के लिए कांस्य पदक जीता था। आज भी उनका नाम कुश्ती की दुनिया में फ्रीस्टाइल पहलवान के रूप में जाना जाता है। योगेश्वर 14 साल की उम्र में अपने गांव भैंसवाल कलां से रोजाना ट्रेन से दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम आते थे। यहीं से उन्हें आगे बढ़ने की राह मिली। 2004 के एथेंस ओलंपिक में उन्होंने जापानी ग्रैफ़लर चिकारा तानबे व सन् 2000 के स्वर्ण पदक विजेता और अजरबैजान के अब्दुल्लायेव को चुनौती दी थी।

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लेकिन इस दौरान उनमें अनुभव की कमी नजर आई थी। 2004 में उन्हें एथेंस में अपने पहले ओलंपिक में भाग लेने का मौका मिला। 2005 की राष्टÑमंडल कुश्ती चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता इसके बाद 2006 में दोहा एशियाई खेलों से कुछ समय पहले अपने पिता को खोने के बावजूद उन्होंने कांस्य पदक जीता था। 2008 में एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने बीजिंग ओलंपिक के लिए अपना स्थान पक्का कर लिया था। 2010 में राष्टÑमंडल खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था।

लेकिन इस बीच उन्हें घुटने की चोट से जूझना पड़ा मगर कॅरियर के लिए खतरा बन चुकी घुटने की चोट भी भारतीय पहलवान को 2012 लंदन समर ओलंपिक में पदक जीतने से नहीं रोक सकी। आज के दौर में कुश्ती खिलाड़ियों को लेकर योगेश्वर ने कहा आज के दौर में खिलाड़ियों को अच्छी सुविधाएं मिल रही हैं।

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अब कुश्ती को लेकर युवाओं में काफी उत्साह है। हालांकि किसी भी खेल में कोचों का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहता है, कोच ही तय करते है कि उनके शिष्य में कितनी प्रतिभा है। बृजभूषण शरण सिंह के प्रकरण के बाद कई परिवारों ने अपनी बेटियों को कुश्ती से दूर करना शुरू कर दिया है जो कुश्ती के लिए काफी नुकसानदायक है।

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