Friday, July 5, 2024
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स्टाफ को वेतन, पेंशन नहीं, कौन सुने जनता का दर्द

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  • कैंट बोर्ड कंगाल : रक्षा मंत्रालय ने ग्रांट से हाथ खींचे, ढाई साल से नहीं हुए चुनाव
  • सवा लाख लोग नगर निगम का हिस्सा बने न कैंट बोर्ड निभा रहा जिम्मेदारी

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: स्मार्ट कैंट मेरठ की करीब सवा लाख आबादी का दर्द सुनने वाला कोई नहीं। खजाना खाली होने की वजह से दो माह से कर्मचारियों को वेतन पेंशन नहीं मिला। हड़ताल की वजह से सफाई ठप है। हर सड़क गड्ढे में तब्दील है। माल रोड, बाम्बे बाजार जैसी प्रमुख सड़कों पर भी आवारा पशुओं का डेरा है। ढाई साल से कैंट बोर्ड सदस्यों और उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ। सिविल एरिया को नगर निगम में शामिल करने की प्रक्रिया भी अधर में है।

देश में कुल 62 कैंट हैं जिनमें मेरठ ए श्रेणी में आता है। आबूलेन, सदर और बाम्बे बाजार जैसे महत्वपूर्ण बाजार शहर के बिजनेस की रीढ़ हैं। दस से ज्यादा प्रतिष्ठित स्कूल हैं जिनमें तमाम ब्यूरोक्रेट, बिजनेसमैन, नेताओं, डॉक्टरों, अधिवक्ताओं के बच्चे पढ़ते हैं। इनमें अधिकांश स्कूल वेस्ट एंड रोड पर हैं जो गड्ढों में तब्दील है।

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स्कूलों के खुलने और छुट्टी के समय यहां हजारों बच्चे और अभिभावक भीषण जाम झेलते हैं। एक समय था जब नगर निगम और एमडीए की बोर्ड बैठकों में कैंट के विकास कार्यों की मिसाल दी जाती थी। कैंट में प्रवेश करते ही सफाई, सड़क और हरियाली देखते ही लगता था कि किसी दूसरे शहर में आ गए हैं। आज तस्वीर बेहद खराब है।

खाली हो गया खजाना, मुसीबत में पेंशनर और कर्मचारी

रक्षा मंत्रालय ने निर्देश दिए हैं कि कैंट बोर्ड आत्मनिर्भर बने और अपने स्तर से होने वाली आय से ही खर्च निकाला जाए। मेरठ कैंट बोर्ड को रक्षा मंत्रालय से प्रतिवर्ष ग्रांट के तौर पर 10 से 20 करोड़ रुपये तक मिल जाते थे। कैंट बोर्ड को हाउस टैक्स, तहबाजारी, पार्किंग, दुकानों के लाइसेंस, म्यूटेशन आदि से प्रतिवर्ष लगभग 5.50 करोड़ रुपये की आय होती है। इसमें से करीब डेढ़ करोड़ रुपये घर-घर से कूड़ा उठाने में खर्च होते हैं। कर्मचारियों के वेतन पेंशन में ही चार करोड़ से ज्यादा का खर्च है। कैंट बोर्ड पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों की ग्रेच्युटी के भी 20 करोड़ से ज्यादा बकाया हैं।

कूड़ा कलेक्शन यूजर चार्ज लगभग: चार लाख शिक्षकों के वेतन के भी लाले

कैंट में संचालित बोर्ड के सीएबी इंटर कॉलेज समेत प्राइमरी स्कूलों के शिक्षकों के वेतन और अन्य खर्च के लिए 2011 से पहले उत्तर प्रदेश सरकार प्रतिवर्ष चार करोड़ रुपये देती थी। सरकार ने यह ग्रांट बंद कर दी जिसके बाद बड़ा संकट खड़ा हो गया है।

ऐसे बढ़ता गया संकट

कैंट में 10 स्थानों पर कामर्शियल वाहनों से टोल वसूली होती थी जिससे कैंट बोर्ड को सालाना 18 करोड़ रुपये की आय होती थी। टोल वसूली बंद होने का खामियाजा बोर्ड को चुकाना पड़ रहा है।

सर्विस चार्ज के 100 करोड़ फंसे

कैंट बोर्ड सिविल क्षेत्र में जनता से टैक्स लेता है जबकि आर्मी एरिया में सर्विस चार्ज लेता है। रेलवे से भी कैंट बोर्ड को बीते कई वर्षों से सर्विस चार्ज नहीं मिला है। इस वजह से कैंट बोर्ड के 100 करोड़ रुपये से अधिक फंसे हैं।

कैंट की साफ-सफाई व्यवस्था की जाएगी दुरुस्त

कैंट की सड़कों को सुधारने, सफाई व्यवस्था दुरुस्त करने को लेकर अफसरों से बात करेंगे। कैंट साफ-सुथरा था, आगे भी प्लानिंग कर व्यवस्था सुधारी जाएगी।-राजेन्द्र अग्रवाल, भाजपा सांसद

बारिश के बाद होगा सड़कों का निर्माण कार्य

कैंट में बारिश के बाद सड़कों का निर्माण होगा। रही बात कर्मचारियों के वेतन की तो वो भी कैंट के अफसरों से बात की जाएगी। सफाई व्यवस्था भी बेहतर करायी जाएगी।-अमित अग्रवाल, कैंट भाजपा विधायक

जल्द हो निगम में विलय

कैंट के सिविल एरिया को नगर निगम में शामिल करने की पहल अच्छी है। इससे रजिस्ट्री खुलेंगी, लोग प्रॉपर्टी पर बैंक से लोन ले सकेंगे, नक्शे आसानी से पास होंगे। भवनों का नामंतरण आसान हो जाएगा। सरकार को जितना जल्द हो सके कैंट के सिविल एरिया का विलय नगर निगम में कर देना चाहिए। -सुनील वाधवा, पूर्व उपाध्यक्ष कैंट बोर्ड

वेस्ट एंड रोड पर रोज चोटिल हो रहे लोग

पिछले तीन साल से आठों वार्डों की दयनीय स्थिति है। वार्ड पांच और छह का हाल बुरा है। वार्ड छह के वेस्ट एंड रोड पर 30 हजार से ज्यादा बच्चे आते हैं। रोज बच्चे गिरते हैं, चोटिल होते हैं। सड़कों पर काम नहीं हो रहा। सफाई नहीं हो रही। गलियां टूटी पड़ी हैं। जनप्रतिनिधियों को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। -दिनेश गोयल, पूर्व सदस्य कैंट बोर्ड

पहले कैंट देखने आते थे लोग

कभी शहर के लोग कैंट में घूमने आते थे। शहर में रिश्तेदार आते थे तो लोग उन्हें दिखाने के लिए कैंट के पार्कों में लेकर आते थे। इस समय जो हाल है उसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। आखिर यहां रहने वालों का गुनाह क्या है। अब लोग सोच रहे हैं कि जल्द से जल्द निगम का हिस्सा बन जाएं। -जगमोहन शाकाल, पूर्व सदस्य कैंट बोर्ड

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