Saturday, April 20, 2024
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मेथी की वैज्ञानिक खेती

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मेथी एक वनस्पति है जिसका पौधा एक फुट से छोटा होता है। इसकी पत्तियां साग बनाने के काम आती हैं तथा इसके दाने मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह बहुत गुणकारी है। मेथी दाने में फॉस्फेट, लेसिथिन और न्यूक्लिओ-अलब्यूमिन, फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, सोडियम, जिंक, कॉपर आदि पोषक पदार्थ के आलावा विटामिन ए एवं सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। मेथी से किसान दोहरा लाभ उठाते है। हरी मेथी के बाद मेथी दाने बेचे जाते हैं।

मेथी उत्पादन का क्षेत्र व जलवायु दशाएं

मेथी शरदकालीन फसल है और यह पाले के आक्रमण को भी सहन कर लेती है इसकी वानस्पतिक बढ़वार को लम्बे और ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है। कसूरी मेथी को अपेक्षाकृत ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। सामान्य से कम वर्षा वाले क्षेत्र इसके उत्पादन के लिए अच्छे माने गए है तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्र इसके उत्पादन में बाधक माने गए है।

फूल बनते समय या दाने बनते समय वायु में अधिक नमी और बादल छाए रहने पर बीमारी तथा कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है। फसल पकने के समय ठंडा एवं शुष्क मौसम उपज के लिए लाभप्रद होता है।

मेथी की भूदशाएं व उन्नतशील प्रजातियां

मेथी रबी की फसल है, जिसके लिए जल निकास का उचित प्रबंध वाली दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच 6 से 7 के बीच होना चाहिए। मेथी के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने निम्न चार किस्मों का विकास किया है , पूसा अर्ली बंचिंग, कसूरी मैथी, टाईप-226, सीएस-960।

महाराष्ट्र के कृषि विभाग ने मेथी के जिन दो किस्मों का विकास किया है वे हैं नवंबर-14 एवं नवंबर 47, जबकि तमिलनाडू कृषि विवि ने को-1, राजेंद्र कृषि विवि, बिहार ने राजेंद्र क्रांति, राजस्थान कृषि विवि ने आरएमटी-1, और चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विवि, हिसार ने हिसार सोनाली (एचएम-57) विकसित किया है।

खेत की तैयारी व बीजोपचार

खेत की तैयारी में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद, दो-तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके, खेत में पाटा लगाकर समतल एवं भुरभुरा बना लेना चाहिए। खेत की आखिरी जुताई में 100 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद को मिला देना चाहिए।

मेथी की बुवाई में 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है, कसूरी मेथी की बुवाई में मात्र 20 किलोग्राम ही बीज प्रति हेक्टेयर लगता है। बीजशोधन के लिए थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या बेविस्टीन 2 ग्राम या सेरोसेन या केप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को शोधित कर बुवाई से पूर्व उपयोग करना चाहिए।

बुवाई समय व विधि

मेंथी की बुवाई सितम्बर से अक्टूबर तक की जाती है, फिर भी देर होने पर नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक की जा सकती है। इसकी बुवाई कई बार छिटकवां विधि से भी की जाती है, लेकिन बुवाई लाइनों यानी कतारों में ही करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 5 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए ।

पोषण प्रबंधन

जैविक पोषण प्रबंधन के तहत इसकी अच्छी उपज के लिए तथा पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए जमीन का उपजाऊ होना आवश्यक है। इसके लिए क्यारी को तैयार करते समय 50 किलो ग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की दर से डालना चाहिए और 1 किलो ग्राम भू-पावर, 1 किलो ग्राम माइक्रो फर्टीसिटी कम्पोस्ट, 1 किलो माइक्रो भू-पावर, 1 किलो ग्राम सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट, 1 किलो ग्राम माइक्रो नीम की खाद प्रति 10 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की दर से देना चाहिए।

फसल 15-20 दिन का हो जाने पर माइक्रोझाइम 25 मिली और सुपर गोल्ड मैग्नीशियम 25 मिलीग्राम प्रति पम्प पानी में अच्छी तरह घोलकर तर-बतर कर छिड़काव करना चाहिए। यह क्रिया हर कटाई के बाद दुहराना चाहिए।
रासायनिक खाद के जरिए पोषण प्रबंधन में यह याद रखा जाना चाहिए कि मेथी की फसल को कम मात्रा में ही नाइट्रोजन की आवश्यकता पड़ती है।

मेथी की खेती करते समय नीम की पत्ती, तंबाकू व धतूरा मिला कर बोएं। बोने के 15 से 18 दिनों के बाद रासायनिक खाद के रूप में 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20-30 किलोग्राम पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से बीज बुवाई के समय ही कतारों में दिया जाना चाहिए।

किसान उर्वरकों की मात्रा को यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट एवं म्यूरेट आफ पोटाश के माध्यम से देना चाहते हंै तो 1 बोरी यूरिया, 5 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट एवं 1 बोरी म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।

फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा खेत तैयार करते समय बेसल ड्रेसिंग में तथा नत्रजन की आधी मात्रा दो भागो में टॉप ड्रेसिंग में देना चाहिए। पहली बार 25 से 30 दिन के बाद तथा दूसरे 40 से 45 दिन बुवाई के बाद खड़ी फसल में शेष आधा-आधा करके देना चाहिए

सिंचाई एवं जल निकास

मेथी के उचित अंकुरण के लिए भूमि में पर्याप्त नमी का होना बहुत जरूरी है। खेत में नमी की कमी होने पर वाटर पम्प से हल्की सिंचाई या मोबाइल पॉवर स्प्रेयर से फव्वारा सिंचाई करनी चाहिए। भूमि प्रकार के अनुसार 10-15 दिनों के अंतर से सिंचाई करें। खेत में अनावश्यक पानी के जमा होने से फसल पीली पड़ने लगती है। अत: अतिरिक्त पानी की निकासी का प्रबंध करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण व रोग प्रबंधन

पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद तथा दूसरी पहली के 30 दिन बाद की जाती है। यदि खरपतवार अधिक उगते है, तो बुवाई के बाद 1-2 दिन के अंदर 30 प्रतिशत पेंडीमेथलीन 3.3 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए, ताकि खरपतवारों का जमाव ही न हो सके।

साधारणतया मैथी कि फसल पर कीटों का प्रभाव नहीं पड़ता है परन्तु फसल पर पत्ती खाने वाले कैटरपिलर का प्रकोप देखा जाता है। इसकी रोकथाम के लिए नीम के काढ़े को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर अंगद मोबाइल पॉवर स्प्रेयर द्वारा पम्प द्वारा छिड़काव करना चाहिए।

मेथी में उकठा रोग, डैपिंग आफ, पाउड्री मिल्ड्यू, लीफ स्पॉट, डाउनी मिल्ड्यू तथा कभी कभी ब्लाइट बीमारी भी लगती है। रोग नियंत्रण करने हेतु बीज शोधन करने के बाद ही बुवाई करनी चाहिए। मिल्ड्यू के नियंत्रण हेतु सल्फर पाउडर 5 प्रतिशत का 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डस्टिंग करनी चाहिए तथा डाउनी मिल्ड्यू हेतु 1 प्रतिशत बोर्डोमिक्सचर का छिड़काव करना चाहिए।

मेथी में पत्ती का गिडार, पॉड बोरर तथा माहू कीट लगते है जिनके नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत कार्बेरिल या इकोलेक्स 0.05 प्रतिशत या मैलाथियान 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

कटाई व उत्पादन

कभी-कभी केवल बीजोत्पादन हेतु ही फसल उगाई जाती है, ऐसी दशा में पत्तियों की कटाई नहीं की जाती है या केवल एक बार ही कटाई करते है। जब फसल केवल पत्ती कटिंग के लिए उगाते है, उस दशा में 4-5 पत्ती कटिंग की जाती है, इसके बाद फसल खत्म कर देते है। बीज हेतु फसल जब मार्च में पककर खेत में ही सूख जाती है, तभी कटाई की जाती है और कटाई के बाद मड़ाई करके बीज अलग कर लिए जाते हैं।

फसल जब खाली पत्ती प्राप्त हेतु बुवाई की जाती है, तो 90 से 100 कुंतल प्रति हैक्टेयर उपज होती है, वहीं यदि फसल पत्ती और बीज दोनों के लिए उगाते हैं तो 2 से 3 पत्ती कटिंग से 15 से 20 कुंतल पत्ती तथा बाद में 8- 10 कुंतल बीज प्राप्त होता है। केवल बीज प्राप्त करने हेतु फसल उगाने पर 12 से 15 कुंतल बीजोत्पादन होता है।


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