Wednesday, July 3, 2024
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सच्चे गुरु की खोज

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गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के नौंवे गुरु थे। वे छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद के सबसे छोटे बेटे थे। एक सिद्धांतवादी और निडर योद्धा होने के साथ-साथ वे एक आध्यात्मिक विद्वान और कवि भी थे।

माना जाता है कि उनके द्वारा रचित 115 शब्द/भजन को पवित्र ग्रंथ श्री ग्रंथ साहिब में सम्मिलित किया गया है।गुरु तेग बहादुर के गुरु बनने के संदर्भ में एक रोचक प्रसंग सिख परंपरा में प्रचलित है कि किस तरह से तेग बहादुर को नौवें गुरु के रूप में चुना गया था।

एक धनी व्यापारी, बाबा माखन शाह लबाना ने एक बार अपने जीवन के लिए प्रार्थना की थी कि यदि वह जीवित रहे तो सिख गुरु को 500 सोने के सिक्के उपहार में देंगे। वह नौवें गुरु की तलाश में पहुंचे।

वह एक दावेदार से दूसरे दावेदार के पास जाता था और प्रत्येक गुरु को दो सोने के सिक्के भेंट करता था, यह विश्वास करते हुए कि सही गुरु को पता चल जाएगा कि उसका मौन वादा उसकी सुरक्षा के लिए 500 सिक्के देने का था।

वे जिस भी ‘गुरु’ से मिले, उन्होंने सोने के दो सिक्के स्वीकार किए और उन्हें विदा किया। तब उन्हें पता चला कि तेग बहादुर भी बकाला में रहते हैं। लबाना ने तेग बहादुर को दो सोने के सिक्कों की सामान्य भेंट की।

तेग बहादुर ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया और कहा, यह सोने के सिक्के तो तुम्हारे पांच सौ सिक्कों के वादे से बहुत कम हैं? माखन शाह लबाना तुरंत समझ गया कि ये ही असली गुरु हैं। वह छत की ओर भागा। वह छत से चिल्लाने लगा, गुरु लब लिया रे, गुरु लब लिया रे, जिसका अर्थ है मुझे गुरु मिल गया है, मुझे गुरु मिल गया है।

यह समाचार आग तरह चारों ओर फैल गया। अगस्त 1664 में, एक सिख संगत बकाला पहुंची और तेग बहादुर को सिखों के नौवें गुरु के रूप में नियुक्त किया। संगत का नेतृत्व गुरु तेग बहादुर के बड़े भाई दीवान दुर्गा मल ने किया था, जिन्होंने उन्हें गुरुत्व प्रदान किया।

प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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