राजेंद्र कुमार शर्मा
‘धर्मों रक्षति रक्षित:’ यह सूक्ति एक सार्वभौमिक सत्य को प्रकट करती है। धर्म की रक्षा करना केवल व्यक्ति का कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह उसकी सुरक्षा और कल्याण का आधार भी है। जब हम धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो हम न केवल स्वयं की, बल्कि पूरे समाज की रक्षा करते हैं। धर्म की रक्षा से न केवल व्यक्ति का आत्मिक विकास होता है, बल्कि समाज में भी शांति, स्थिरता, और प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। अत: धर्म की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का परम कर्तव्य है, क्योंकि धर्म की रक्षा में ही सबकी रक्षा निहित है।
‘धर्मों रक्षति रक्षित:’ एक संस्कृत सूक्ति है, जिसका अर्थ है धर्म की रक्षा करने वाला स्वयं की रक्षा करता है। इस सूक्ति का मूल उद्देश्य यह बताना है कि जब व्यक्ति धर्म की रक्षा करता है, तब धर्म उसकी रक्षा करता है। भारतीय संस्कृति में धर्म का बहुत गहरा और व्यापक अर्थ है। यह केवल धार्मिक आस्थाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन जीने की पद्धति, आचार-विचार, नैतिकता और समाज के प्रति कर्तव्यों को भी समाहित करता है।
धर्म का व्यापक अर्थ
धर्म को संकीर्ण दृष्टि से केवल पूजा-पाठ या धार्मिक कर्मकांडों के रूप में देखना अनुचित होगा। धर्म का व्यापक अर्थ है झ्र सत्य, अहिंसा, न्याय, परोपकार, कर्तव्यपरायणता, और सदाचार। व्यक्ति अपने जीवन में इन सिद्धांतों का पालन करता है, तो वह सच्चे अर्थों में धर्म की रक्षा करता है। धर्म वह आधार है, जिस पर व्यक्ति और समाज दोनों के अस्तित्व की नींव टिकी होती है। धर्म सिर्फ और सिर्फ अच्छाई का प्राय: है।
धर्म की रक्षा
धर्म की रक्षा का तात्पर्य केवल धार्मिक पुस्तकों, रीति-रिवाजों, और परंपराओं की रक्षा से नहीं है, बल्कि इसके साथ जुड़े नैतिक और सामाजिक मूल्यों की भी रक्षा करना आवश्यक है। जब हम अपने जीवन में सत्य, अहिंसा, न्याय, और सदाचार को स्थान देते हैं, तो हम धर्म की रक्षा कर रहे होते हैं। इसके विपरीत, जब हम असत्य, हिंसा, अन्याय, और अनैतिकता के मार्ग पर चलते हैं, तो हम न केवल धर्म का अपमान करते हैं, बल्कि स्वयं की और समाज की भी हानि करते हैं और अपने आप को असुरक्षित बना रहे होते हैं।
धर्म की रक्षा से समाज की रक्षा
जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलता है, तो समाज में शांति, सौहार्द्र, और न्याय का वास होता है। धर्म की रक्षा का अर्थ है झ्र समाज के हर व्यक्ति की सुरक्षा। जब लोग धर्म के सिद्धांतों का पालन करते हैं, तो समाज में अपराध, हिंसा, और अन्याय की घटनाएं कम होती हैं। समाज में सद्भावना, सहयोग, और आपसी विश्वास बढ़ता है, जिससे समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। ऐसे समाज को ही एक सुरक्षित समाज की संज्ञा दी जाती है।
व्यक्तिगत जीवन में धर्म की भूमिका
धर्म का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में आत्मविश्वास, मानसिक शांति, और संतोष का वास होता है। एक धार्मिक व्यक्ति सही और गलत के बीच फर्क को समझता है और जीवन के हर मोड़ पर नैतिकता और सत्य का पालन करता है। यह न केवल उसे आंतरिक शांति प्रदान करता है, बल्कि उसे समाज में सम्मानित और विश्वसनीय बनाता है। धर्म की रक्षा करना व्यक्ति की आत्मा की रक्षा करना है और आत्मा की शुद्धि के बिना जीवन में सच्चा सुख और शांति प्राप्त नहीं हो सकती।
धर्म की रक्षा के परिणाम
धर्म की रक्षा करने से व्यक्ति को जीवन में अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। सबसे पहला लाभ है झ्र आत्म-सुरक्षा। जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है, वह विपत्तियों और संकटों से सुरक्षित रहता है। धर्म की रक्षा करने वाला व्यक्ति समाज में आदर और सम्मान प्राप्त करता है। साथ ही, उसकी आंतरिक शक्ति बढ़ती है, जिससे वह जीवन के कठिन से कठिन समय का सामना धैर्य और साहस के साथ कर सकता है। धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति दूसरों के प्रति सहानुभूति और करुणा का भाव रखता है। वह समाज में अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए दूसरों के कल्याण के लिए भी कार्य करता है। इस प्रकार, धर्म की रक्षा करना केवल व्यक्ति के लिए ही नहीं, बल्कि समस्त समाज के लिए कल्याणकारी है।
‘धर्मों रक्षति रक्षित:’ यह सूक्ति एक सार्वभौमिक सत्य को प्रकट करती है। धर्म की रक्षा करना केवल व्यक्ति का कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह उसकी सुरक्षा और कल्याण का आधार भी है। जब हम धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो हम न केवल स्वयं की, बल्कि पूरे समाज की रक्षा करते हैं। धर्म की रक्षा से न केवल व्यक्ति का आत्मिक विकास होता है, बल्कि समाज में भी शांति, स्थिरता, और प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। अत: धर्म की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का परम कर्तव्य है, क्योंकि धर्म की रक्षा में ही सबकी रक्षा निहित है।