दिल्ली विधान सभा के लिए मतदान हेतु तैयार है और पांच साल पहले भड़के उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों का दर्द फिर उभर आया है। दंगों की बड़ी साजिश के आरोप में बहुत से लोग यूएपीए के तहत जेल में हैं और अभी उस मुकदमे का न्याय ठिठका हुआ है। वैसे पुलिस ने दंगे से जुड़े 758 मामले पंजीकृत किए थे। इनमें से एक स्पेशल सेल, 62 क्राइम ब्रांच और 695 उत्तर पूर्वी दिल्ली के विभिन्न थानों में पंजीकृत हैं। दिल्ली पुलिस में सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 758 एफआईआर दर्ज की हैं। इनमें अब तक कुल 2619 लोगों की गिरफ़्तारी हुई थी, इनमें से 2094 लोग जमानत पर बाहर हैं। अदालत ने अब तक केवल 47 लोगों को दोषी पाया है और 183 लोगों को बरी कर दिया। वहीं 75 लोगों के खिलाफ पर्याप्त सबूत ना होने के कारण कोर्ट ने उनका मामला रद्द कर दिया है।
लगभग पांच वर्ष बीतने के बावजूद इनमें अभी 268 मामलों में जांच पूरी नहीं कर पाई है। पुलिस का रिकार्ड कहता है कि इनकी जांच चल रही हैं। जरा सोचें 1680 दिन बाद दंगे के कौन से साक्ष्य अब मिलेंगे? कुछ अर्जियां ऐसी भी हैं, जिन पर मामले दर्ज ही नहीं किए गए, क्योंकि उनमें कुछ बड़े नाम थे। विभिन्न थानों में दर्ज 57 मामले ऐसे भी हैं, जिनमें पुलिस के हाथ प्रमाण नहीं लगे और इन्हें बंद करने के लिए पुलिस ने अदालत से निवेदन किया। ऐसे 43 मामलों की क्लोजर रिपोर्ट को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है, जबकि 14 रिपोर्ट अभी विचाराधीन हैं। यह सच है कि दिल्ली में कानून व्यवस्था का जिम्मा केंद्र सरकार का है, लेकिन न्याय और जेल राज्य सरकार के हाथों हैं। यह भी अब सामने आ चुका है कि दिल्ली हिंसा के पहले दिन ही बहुत सारे जागरूक लोग मनीष सिसोदिया सहित आप के बड़े नेताओं के घर गए थे कि हम सभी तनावग्रस्त इलाके में चलते हैं, ताकि लोगों को समझा कर शांत किया जा सके, लेकिन इन नेताओं ने इससे इनकार कर दिया था। विदित हो दिल्ली में विधान सभा चुनाव का नतीजा आने के तत्काल बाद ही दंगे हो गए थे। इस आशय का पत्र और तथ्य अब चार्जशीट का हिस्सा है।
दंगों के तत्काल बाद दिल्ली सरकार के दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने एक नौ सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी के चेयरमैन, सुप्रीम कोर्ट के वकील एमआर शमशाद, गुरमिंदर सिंह मथारू, तहमीना अरोड़ा, तनवीर काजी, प्रोफेसर हसीना हाशिया, अबु बकर सब्बाक, सलीम बेग, देविका प्रसाद तथा अदिति दत्ता, सदस्य थे।अल्पसंख्यक आयोग की नौ सदस्यीय जांच कमेटी ने दंगों में घोषित मुआवजे के लिए लिखे गए 700 प्रार्थनापत्रों का अध्ययन किया। अपने अध्ययन के बाद, कमेटी ने पाया कि अधिकतर मामलों में क्षतिग्रस्त जगह का दौरा भी नहीं किया गया है और जिन मामलों में जान माल के नुकसान को सही पाया गया है, उनमें भी बहुत कम धनराशि, अंतरिम सहायता के रूप दी गई है। दंगों के तुरंत बाद कई लोग घर छोड़ कर चले गए हैं, इसलिए बहुत से लोग, मुआवजे के लिए आवेदन नहीं कर सके हैं। मुआवजे में भी सरकारी अधिकारी के मरने पर उनके परिवार वालों को एक करोड़ की रकम दी गई, जबकि आम नागरिकों की मौत पर केवल 10 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया। इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में कानून-व्यवस्था की जिÞम्मेदारी केंद्र सरकार की है फिर भी दंगों में पीड़ितों को केंद्र सरकार की ओर से, दंगा पीड़ितों की कोई मदद नहीं की गई।
इस रिपोर्ट के मुताबिक 11 मस्जिद, पांच मदरसे, एक दरगाह और एक कब्रिस्तान को नुकसान पहुंचाया गया। मुस्लिम बहुल इलाकों में किसी भी गैर-मुस्लिम धर्म-स्थल को नुकसान नहीं पहुंचाया गया था। जबकि दिल्ली पुलिस ने अदालत में जो हलफनामा दिया है उसके अनुसार, इन दंगों में, कुल मृतक, 52 हैं, जिंसमे 40 मुस्लिम समुदाय के और 12 हिंदू समुदाय के हैं। इसी प्रकार घायलों की कुल संख्या, 473 है जिनमें से धर्म के आधार पर, 257 मुस्लिम और 216 हिंदू हैं। संपत्ति के नुकसान का जो आंकड़ा दिल्ली पुलिस ने हलफनामा में दिया है, उसके अनुसार, कुल 185 घर बर्बाद हुए हैं, जिनमे से 50 घर, मुस्लिम समुदाय के और 14 घर हिंदुओं के हैं। लेकिन इस हलफनामा में खजूरी खास और करावल नगर में हुए नुकसान का सांप्रदायिक आधार पर ब्रेक अप नहीं दिया गया। इसी प्रकार इन दंगों में दिल्ली पुलिस के हलफनामे के अनुसार, बर्बाद होने वाली 53.4 प्रतिशत दुकानें मुस्लिम समुदाय की हैं और 14 प्रतिशत हिन्दू समाज की।
इस बात के लिए दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार की भूमिका भी संदिग्ध है कि अप्रैल 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा दावा आयोग (एनईडीआरसीसी) के गठन के बावजूद, आज भी 2,790 दावे अनसुलझे हैं। तब की केजरीवाल सरकार द्वारा गठित इस आयोग को सरकार ने निर्देशित किया था कि परिवार के वयस्क सदस्य की मृत्यु पर 10 लाख रुपये, स्थायी विकलांगता के लिए 5 लाख रुपये, गंभीर चोटों के लिए 2 लाख रुपये और मामूली चोटों के लिए 20,000 रुपये का मुआवजा दिया जाएगा। इसके साथ ही स्थायी आवासों और वाणिज्यिक इकाइयों के नुकसान के संबंध में, योजना में आवासीय इकाइयों को बड़ी क्षति के लिए 5 लाख रुपये, मध्यम क्षति के लिए 2.5 लाख रुपये और मामूली क्षति के लिए 25,000 रुपये का उल्लेख था। जबकि ई-रिक्शा को नुकसान के लिए 50,000 रुपये और मवेशी के लिए 5,000 रुपये देने का वादा था। बिना बीमा वाली वाणिज्यिक इकाइयों के लिए 5 लाख रुपये के मुआवजे की पेशकश थी।
वायदे-दावे आगे चल कर सरकार बनाम उप राज्यपाल के झगड़े में फंस गए। 25 अगस्त, 2022 को उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दावों के निपटान में तेजी लाने के लिए आयोग में 40 नए हानि मूल्यांकनकर्ताओं को नियुक्त किया। उन्हें वित्तीय घाटे की सीमा का आकलन करने वाली रिपोर्ट संकलित करने और उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में पेश करने के लिए कहा गया था। एलजी सक्सेना ने मौजूदा 14 मूल्यांकनकर्ताओं को 25 अगस्त की तारीख से तीन सप्ताह के भीतर उन्हें सौंपे गए दावा निपटान पर अपनी रिपोर्ट जमा करने का भी निर्देश दिया। ऐसा कहा गया कि 40 नए मूल्यांकनकर्ताओं में से कुछ को सरकार द्वारा उन्हें दी गई जिम्मेदारी के बारे में भी पता नहीं था। बहुत से लोगों ने काम ही नहीं शुरू किया। उधर आयोग के अधिकारी कहते हैं किएल जी द्वारा नियुक्त एसेस्मेंट टीम के 40 में से केवल 5 से ही उनका संपर्क हो पाया।
हालांकि यहां लोगों ने लाखों गंवाए हैं। लेकिन सरकार के मुआवजे के दावे और निर्दोष लोगों को न्यायिक सहयोग में आम आदमी पार्टी सरकार की निर्ममता और लापरवाही केंद्र सरकार से कम नहीं हैं। दंगाग्रस्त इलाकों में न्याय की बात हो या राहत की या फिर लोगों की नफरत मिटा कर सौहार्द के लिए प्रयास करना-तीनों कार्य राज्य की सरकार की जिम्मेदारी थी। लेकिन आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार इन सभी मुद्दों से मुंह मोड़े रही।