- घंटों मोबाइल का इस्तेमाल करने से बच्चों की सेहत पर पड़ रहा बुरा असर
- 10 से 18 साल के बच्चे आ रहे गिरफ्त में
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: कोरोना काल के दौरान जब आॅनलाइन स्टडी पर फोकस किया गया, तो इसका साइड इफेक्ट बच्चों और किशोरों पर बहुत ज्यादा पड़ा। अब आॅफलाइन क्लासें शुरू हो गई हैं, लेकिन स्मार्ट फोन की लत ऐसी लग गई है कि बच्चे घंटों स्मार्टफोन से चिपके रहते हैं। बच्चों का एक हद तक फोन चलाना जायज है, लेकिन किसी भी चीज का ज्यादा इस्तेमाल अच्छा नहीं होता। धीरे-धीरे इसका साइड इफेक्ट दिखने लगा है।
आॅनलाइन क्लास शुरू होने के बाद कई छात्रों को मोबाइल की ऐसी लत लग गई है, जिससे वे मोबाइल एडिक्ट बन रहे हैं। पहले महज पांच प्रतिशत बच्चों को मोबाइल प्रयोग करने की लत थी, जबकि कोरोना के बाद लगी बंदिशों के चलते अब लगभग 30 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे लगातार मोबाइल पर ही अपना समय बिता रहे हैं। चिकित्सकों ने भी माना है कि अब पहले से ज्यादा बच्चों को मोबाइल पर समय बिताने की लत लग रही है।
चिड़चिड़े और गुस्सैल हो रहे बच्चे
लॉकडाउन में स्कूल बंद हुए तो स्कूलों में आॅनलाइन क्लासें शुरू हो गईं, ताकि पढ़ाई प्रभावित न हो। ऐसे में इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे। बच्चे मोबाइल लत की चपेट में आ रहे हैं, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। शहर के मनोचिकित्सकों के पास बच्चों में मोबाइल और इंटरनेट की लत के कई मामले आ रहे हैं। बच्चों के व्यवहार में बदलाव आने लगा है। माता-पिता की शिकायत है कि बच्चों को समझाते हैं तो वे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो रहे हैं।
घंटों मोबाइल से चिपके रहते हैं युवा
हैरानी की बात है कि मनोचिकित्सकों के पास रोजाना ऐसे माता-पिता पहुंच रहे हैं। जिनके 10 से 18 साल के बच्चे और किशोर लगातार घंटों मोबाइल से चिपके रहते हैं। माता-पिता की चिंता बढ़ गई है और वे किसी भी तरह से बच्चों को स्मार्टफोन से दूर करने की कोशिशों में लगे हैं। इसके लिए वे बच्चों की फोन की गतिविधि भी ट्रैक करने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। क्योंकि उनका कहना है कि पता होना चाहिए कि बच्चा अकेले में स्मार्टफोन का क्या इस्तेमाल कर रहा है।
फोन को ट्रैक कर रहे अभिभावक
बच्चों का ज्यादातर वक्त स्मार्टफोन और लैपटॉप पर गुजर रहा है। बच्चे इंटरनेट पर कई बार ऐसी चीजों तक पहुंच जाते हैं, जहां उन्हें नहीं पहुंचना चाहिए। ऐसे में माता-पिता बच्चों की स्मार्टफोन एक्टिविटी पर नजर रखने लगे हैं। परेशान माता-पिता बच्चों द्वारा इंटरनेट का सही इस्तमाल करने के लिए डिजाइन किए गए नॉर्टोन फैमिली कंट्रोल, नेट नैनी, कैस्परस्काई सेफ किडस जैसे ऐप का प्रयोग कर रहे हैं। बच्चे के स्मार्टफोन में इंस्टॉल करके उसका एक्सेस अपने पास रक सकते हैं। इससे स्मार्टफोन पर बच्चे कितना समय बिता रहे हैं। बच्चों ने फोन पर कौन से ऐप ओपन किए और उन पर कितना समय बिताया या फिर अगर कोई ऐप इंस्टॉल करके डिलीट की है तब भी उसकी डिटेल आ जाएगी।
सेहत पर पड़ रहा बुरा असर
कोरोना काल में बच्चों पर स्मार्टफोन ने ऐसा बुरा प्रभाव डाला है, जिसका नतीजा अब सामने आ रहा है। पिछले कुछ समय में ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं। जहां अभिभावक शिकायत लेकर आ रहे हैं कि उनका बच्चा स्मार्टपोन पर घंटों समय व्यतीत कर रहा है। माता-पिता के समझाने पर समझने के बजाय बच्चे आक्रामक हो रहे हैं। रोजाना ऐसे मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। ज्यादातर ऐसे मामले 10 से 18 साल के बच्चों और किशोरों में देखने को मिल रहे हैं। जिसमें युवक और युवतियां शामिल हैं। माता-पिता बच्चों के साथ समय बिताएं। ताकि उनका दिमाग फोन से हटा रहे। इसके लिए किताबें पड़ना, गेम्स खेलना, फिजिकल गतिविधि, स्पोर्ट्स, साइकिलिंग की तरफ रुझान बढ़ाएं।
-डा. विभा, साइकेट्रिस्ट