सोनी मल्होत्रा |
अगर कभी परीक्षा में कम नंबर आ गए तो इसका अर्थ यह नहीं कि आपका बच्चा नालायक है। कभी-कभी बच्चे इंटेलिजेंट होते हुए भी परीक्षा में असावधानी वश कुछ गलत कर आते हैं या कभी कुछ भूल जाते हैं, इसलिए उनमें आदत डालिए कि वे परीक्षापत्र हल करते समय सावधानी बरतें और अपने में आत्मविश्वास पैदा करें। साथ ही कई बच्चे समझे बिना रट्टा लगा लेते हैं जिससे वे जल्द ही याद किया हुआ भूल जाते हैं। उनकी इस आदत को बदलिए।
आमतौर पर देखने को मिलता है कि बच्चे की परीक्षाएं आने पर ही बच्चे और अभिभावकों को पढ़ना व पढ़ाना याद आता है। परीक्षा आते ही अभिभावक बच्चे को सारा-सारा दिन पढ़ाने बैठ जाते हैं और बच्चे पर भी पढ़ाई का बहुत अधिक बोझ पड़ जाता है, जिससे बच्चे परीक्षा को भूत समझने लगते हैं और उसे हौवा मानकर उसके नाम से भी चिढ़ते हैं। हर अभिभावक का सपना होता है कि उनका बच्चा पढ़ाई ही नहीं, हर क्षेत्र में आगे निकले और इस सपने को साकार करने के लिए सबसे जरूरी है बच्चे के मन से परीक्षा के प्रति बैठे डर को निकालना और यह डर तभी निकल सकता है जब आप बच्चे की पढ़ाई पर परीक्षा के समय नहीं बल्कि सारा वर्ष ध्यान दें।
नई कक्षाएं प्रारंभ होते ही बच्चे को सारे वर्ष का सेलेबस मिल जाता है व परीक्षाओं की तिथियों के बारे में भी जानकारी मिल जाती है, इसलिए सेलेबस के अनुसार बच्चे का टाइम टेबल तय करें। बच्चे को अगर पाठ अच्छी तरह समझ आ जाएं तो वह प्रश्नों को आसानी से हल कर लेता है। बच्चे को सर्वप्रथम पाठ पढ़ाएं और पाठ पढ़ाने के उपरांत यह जानने की कोशिश करें कि उसे पाठ कितना समझ आया है, इसलिए पाठ के बीच-बीच में से प्रश्न करिए और बच्चे को समझाने का प्रयत्न करें कि आपसे यही प्रश्न किसी भी तरह से घुमा फिरा कर पूछ लिया जाए तो आपको यही उत्तर देना है। वैसे तो स्कूल में अध्यापिकाएं पाठ पढ़ाती ही हैं पर बच्चे को कितना समझ में आया, यह जान पाना उनके लिए संभव नहीं होता क्योंकि कक्षा में कई बच्चे होते हैं।
अगर आपका बच्चा किसी विषय में कमजोर है तो आप उस विषय को पढ़ाने में ज्यादा समय दें। अगर आपके लिए वह विषय पढ़ाना संभव नहीं तो उसे विषय की टयूशन लगवा दें। अगर आप बच्चे को पढ़ा नहीं पाते और उसकी टयूशन रखी हुई है तो टयूशन टीचर से उसकी प्रगति के बारे में जानते रहें और टयूशन टीचर से उसका सेलेबस परीक्षा से कुछ दिन पूर्व समाप्त करवा देने को कहें ताकि बच्चा बचे हुए दिनों में रिवीजन कर सकें।
परीक्षा के दिन बच्चे को सारा दिन पढ़ाने के लिए लेकर न बैठे रहें। उसे बीच-बीच में रिलेक्स करने का समय दें और अगर वह खेलना चाहें तो कुछ समय खेलने भी दें। परीक्षा से पूर्व बच्चे का शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है। गणित ऐसा विषय है जिसमें बच्चे को विशेष अभ्यास की जरूरत होती है, इसलिए प्रतिदिन आधा घंटा अभ्यास की आदत बच्चे को डलवाएं। परीक्षा के दिनों में बच्चे को देर रात तक न पढ़ाएं। इससे उसकी नींद पूरी नहीं हो पाएगी और परीक्षा के समय वह अपने आपको फ्रेश महसूस नहीं करेगा। परीक्षा देने जाते समय उसे ऐसा महसूस न होने दें कि आप उसकी परीक्षा को लेकर बहुत चिंतित हैं। अगर आप ऐसा दशार्एंगे तो उसे भी डर व नर्वसनेस महसूस होगी।
अगर कभी परीक्षा में कम नंबर आ गए तो इसका अर्थ यह नहीं कि आपका बच्चा नालायक है। कभी-कभी बच्चे इंटेलिजेंट होते हुए भी परीक्षा में असावधानी वश कुछ गलत कर आते हैं या कभी कुछ भूल जाते हैं, इसलिए उनमें आदत डालिए कि वे परीक्षापत्र हल करते समय सावधानी बरतें और अपने में आत्मविश्वास पैदा करें। साथ ही कई बच्चे समझे बिना रट्टा लगा लेते हैं जिससे वे जल्द ही याद किया हुआ भूल जाते हैं। उनकी इस आदत को बदलिए।