Wednesday, July 3, 2024
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क्या जड़ से मिट पाएगा आतंक?

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35करीब चौदह साल पहले 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर जो आतंकी हमला हुआ, उसे भारत कभी भुला नहीं पाएगा । कराची से एक छोटी नौका पर सवार होकर कसाब सहित दस आतंकवादी देश की आर्थिक राजधानी को लहूलुहान करने के इरादे से पहुंचे । तीन दिन तक वहाँ हुई फायरिंग और तबाही को टीवी के जरिए पूरी दुनिया ने देखा और सुना । 9/11 की तरह 26/11 के हमले को विश्व की सबसे बड़ी आतंकी वारदातों में शामिल किया जाता है। आतंकियों ने जिस ताज होटल को खासतौर से टारगेट किया, उसी में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद रोधी समिति की दो दिवसीय बैठक हाल में की गईं इसमें यूएनएससी के पाँच स्थायी और दस अस्थायी सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया । आज आतंकवाद विश्व की सबसे गंभीर समस्या और चुनौती है, यह तो माना ही गया, साथ में आतंक के खात्मे के लिए पैंतीस सूत्रीय घोषणा पत्र पर आम सहमति भी बनी । यदि सभी देश इस पर ईमानदारी से अमल करें तो आतंकवाद को समूल नष्ट करने की दिशा में हम बढ़ सकते हैं । वह होगा या नहीं, कहा नहीं जा सकता परंतु ये ऐसे उपाय हैं, जिनसे आतंकियों और उनके आंकाओं की कमर तोड़ी जा सकती है।

भारत का कहना है कि आतंकवाद का खात्मा हो सकता है पर इसके लिए इच्छा और संकल्प शक्ति की आवश्यकता है। जो पैंतीस सूत्रीय घोषणा-पत्र पेश किया गया है, उसे आप समाधान-पत्र भी कह सकते हैं। इसमें साफ-साफ कहा गया है कि प्रभावी रणनीति बनाने के लिए राष्ट्रीय जाँच एजेंसियों का निजी कंपनियों और दूसरे देशों की एजेंसियों से मेलजोल बढ़ाना ही होगा। घोषणा पत्र का बारीकी से अध्ययन करने से पता चलता है कि आतंकी संगठनों के पनपने के तमाम कारणों को इसमें न केवल रेखांकित किया गया है अपितु उनका कैसे निवारण हो सकता है, यह भी बताया गया है।

इसमें आतंक को किसी धर्म, क्षेत्र, राष्ट्रीयता, समुदाय या सभ्यता से न जोड़ने की पुष्टि की गई है। कहा गया है कि आतंक किसी भी तरह से न्याय संगत नहीं है । किसी रूप में हो, किसी भी मकसद से हो, इसे अपराध माना जाए। आतंक पर जीरो टोलरेंस की नीति अपनाई जाए। सभी देश निष्पक्षता से अपना दायित्व निभाएं। आतंकियों को किसी भी तरीके से मदद करने वालों को भी आतंकी मानते हुए आतंक के डिजिटल और वास्तविक ढांचों को खत्म किया जाए ।

अहम बात यह है कि घोषणा-पत्र में इस पर बल दिया गया है कि सभी सदस्य देश आतंक के वित्त पोषण पर लगाम लगाएँ आतंक में लिप्त हर व्यक्ति या संस्था की सभी तरह के वित्तीय संस्थानों तक पहुँच को अवरूद्ध किया जाए। आतंकियों की भर्तियों के साथ हथियार जुटाने को भी रोका जाए। कुछ देशों में आतंकियों को सुरक्षा, संरक्षण और छिपने की जगह मिलती रही है। इसमें कहा गया है कि सुरक्षित ठिकाने आतंक से लड़ाई में बड़ी बाधा हैं। सदस्य देश राजनीतिक या कूटनीतिक दाँवपेंच के आधार पर परस्पर कृत्यों को अंजाम देने वालों को सुरक्षित ठिकाने मुहैया नहीं कराएँ। इसे भी आतंकी कृत्य माना जाए। आतंकियों को सजा दिलाने में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत मदद की जाए।

यहाँ यह सवाल उठता है कि क्या ऐसा हो रहा है । पाकिस्तान और चीन भारत में वांछित आतंकियों को जिस तरह बचाने की बेशर्मी करते आ रहे हैं, उससे साफ है कि संयुक्त राष्ट्र संघ से चाहे जो प्रस्ताव पारित होते रहे हों, उन पर कोई असर नहीं होता। भारत ने कई बार आतंकी सरगनाओं को काली सूची में डालने के प्रस्ताव रखे परंतु चीन की वीटो की वजह से इसमें सफलता हासिल नहीं हो सकी। यही नहीं, 26/11 के गुनहगारों को वहां अभी तक भी सजा नहीं हो सकी है, जबकि कसाब को भारत में 12 नवंबर 2012 को फांसी दी जा चुकी है ।

इस घोषणा पत्र में कुछ और बातें भी कही गई हैं, जो बहुत महत्वपूर्ण हैं। तकनीक से मदद के मुद्दे को रेखांकित करते हुए कहा गया है कि आतंकियों ने जिस तरह से तकनीक को लेकर समायोजन किया है, ठीक वैसे ही आतंकरोधी प्रयासों के लिए भी तकनीक मददगार साबित हो सकती है। तकनीक से पहचान और धरपकड़ के लिए आपसी सहयोग और समायोजन जरूरी है । यहाँ फिर वही सवाल उठता है कि जो देश आतंकियों को छिपाने और बचाने में पूरी ताकत लगाए रहते हैं, वो सहयोग और समायोजन क्यों करेंगे।

घोषणा-पत्र में यह भी कहा गया है कि सभी उचित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंक को एजेंडे में शामिल करने और इस पर प्रगति की लगातार समीक्षा जरूरी है। भारत शीघ्र ही जी-20 देशों की सम्मिट अपने यहाँ करने जा रहा है। उसने सदस्य देशों को बताया कि आतंक को इस समूह के प्रमुख एजेंडे में वह शामिल करेगा। यहां इसका उल्लेख करना समीचीन होगा कि यूएनएससी की आतंकरोधी समिति की बैठक के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरस ने जो संदेश जारी किया, उसमें साफ कहा गया कि लोगों को कट्टरपंथी बनाने और समाज में कलह पैदा करने के इरादे से आतंकी समूहों के नई तकनीक के इस्तेमाल की चुनौती से निपटने के लिए ठोस वैश्विक प्रयास जरूरी हैं। गलत सूचना फैलाने के लिए तकनीकों के दुरुपयोग पर उन्होंने चिंता व्यक्त की ।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जो बातें इस अवसर पर कहीं, उन पर विशेषकर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने विश्व को चेताते हुए कहा कि सोशल मीडिया मंच आतंकी समूहों के लिए सबसे शक्तिशाली हथियार बन गए हैं। आतंकवाद मानवता के लिए आज सबसे बड़ा खतरा बन गया है। समाज को अस्थिर करने के उद्देश्य से आतंकी प्रचार, कट्टरता और साजिश के विस्तार के लिए नई प्रौद्योगिकी का जमकर प्रयोग कर रहे हैं। पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि ऐसे देशों के चेत जाने का समय है जो राज्य-नीति के तहत आतंकवाद को पोषित करते हैं। सभी देशों ने भारतीय विदेश मंत्री की इस बात से सहमति व्यक्त की कि नई और उभरती प्रौद्योगिकियों आभासी नेटवर्क, एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सेवाओं से लेकर ब्लाकचेन और आभासी मुद्राएँ व्यापक आर्थिक और सामाजिक लाभों के बारे में बेहद आशाजनक भविष्य की रूपरेखा पेश कर रहे हैं परंतु आतंकवाद का प्रसार इसका दूसरा खतरनाक पहलू है।

आतंकी समूहों और उनकी विचारधारा मानने वालों ने नई तकनीकों से अपनी क्षमताओं में खांसी वृद्धि की है। सरकारों और नियामक एजेंसियों के लिए इनसे नई चुनौतियाँ पैदा हुई हैं। ये ताकतें स्वतंत्रता, सहिष्णुता और प्रगति पर हमला करने के लिए प्रौद्योगिकी और धन के साथ मुक्त समाज के लोकाचार का उपयोग करती हैं। आतंकी समूहों और संगठित आपराधिक नेटवर्क के बीच ड्रोन का बढ़ता उपयोग भी बड़ी चिंता का विषय बन रहा है। ड्रोन से हथियारों और विस्फोटकों की डिलीवरी और लक्षित हमलों को अंजाम देना बड़ा करता बन गया है। यानी एस जयशंकर ने जो बुनियादी समस्या और नए खतरे हैं, उनकी तरफ विश्व का ध्यान आकृष्ट कराया है।


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