इंडिया गठबंधन, जिसे एनडीए को चुनावी दंगल में हराने का जरिया माना जा रहा था, आज खुद ही टूटने लगा है। इंडिया गठबंधन में अपने ही अपनों को हराने की होड़ में शामिल हो गए हैं और एक-दूसरे को किसी भी हाल में आगे निकलने की जगह देनी नहीं चाहते और न ही साथ लेकर चलने में किसी भी पार्टी को कोई दिलचस्पी है। मध्य प्रदेश में सीटों के बंटवारे को लेकर पड़ी दरार उत्तर प्रदेश में अखिलेश ने कांग्रेस को सीटें देने से इंकार क्या किया, उनके दिग्गज कांग्रेस के पाले में जाने लगे। जाने-पहचाने चेहरे इमरान मसूद के बाद समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता, कई बार सांसद रह चुके, पार्टी के फाउंडर मेंबर और राष्ट्रीय महसचिव रवि वर्मा ने अखिलेश का साथ छोड़ते हुए, अब कांग्रेस में जाने की तैयारी कर ली है और 6 नवंबर को वो कांग्रेस में आॅफिशियली रूप से शामिल हो गए। पिछले काफी समय से समाजवादी पार्टी से रूठे बैठे, रवि वर्मा का अचानक कांग्रेस के पाले में कूद जाना निश्चित ही अखिलेश को झटका देने वाला है। भारतीय जनता पार्टी के नेता यही चाहते हैं, लेकिन वो ये भी चाहते हैं कि इंडिया गठबंधन टूटने के साथ-साथ उसमें शामिल पार्टियों के बड़े नेता अभी भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाएं, जिसके लिए वो अंदरखाने कई रणनीतिक खेल खेल रहे हैं।
बहरहाल, पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद इंडिया गठबंधन में शामिल सभी दलों की बैठक की एक-एक गतिविधि देखने लायक होगी कि इस बैठक में आखिर तल्खी कितनी बढ़ेगी? क्या इस बैठक में इंडिया गठबंधन में शामिल सभी 26 पार्टियां शामिल होंगी? ये भी एक बड़ा सवाल है। क्योंकि मध्य प्रदेश के बाद अब उत्तर प्रदेश में दलबदल की राजनीति ने माहौल गर्म कर दिया है और रवि प्रकाश वर्मा द्वारा समाजवादी पार्टी से इस्तीफा ये अफवाहें खड़ी कर रहा है कि कांग्रेस समाजवादी पार्टी की कमर तोड़ना चाहती है और अभी और भी कई बड़े नेताओं को वो अपने साथ लाकर साल 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेगी। राजनीति के कुछ जानकारों ने इसे राजनीतिक दांव बताते हुए कहा है कि कांग्रेस को विधानसभा चुनाव वाले सभी पांच राज्यों में बढ़त ही नहीं मिल रही है, बल्कि संभवत: कम से कम तीन राज्यों में वो सरकार भी बना रही है और इसीलिए उसे अब इंडिया गठबंधन के सहारे की उतनी जरूरत नहीं है, जितनी कि इन छोटी पार्टियों ने समझ रखी है।
कांग्रेस ने रवि वर्मा को अपने साथ लाकर समाजवादी पार्टी के पिछड़ों के वोट बैंक में सेंध लगाने का संकेत दे दिया है। जाहिर है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन मजबूत कर रही है, क्योंकि वो जानती है कि अगर उसने 2024 में भी देश की सत्ता में वापसी नहीं की, तो उसके लिए आने वाले समय में और मुश्किलें खड़ी होंगी और हो सकता है कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र की तरह उसकी सरकारों को तोड़ने का काम केंद्र में साल 2024 में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी और तेजी से करे। हालांकि यहां यह बताना भी जरूरी है कि रवि वर्मा के पिता स्व. बाल गोविंद वर्मा कांग्रेस के ही नेता थे और वो कांग्रेस के टिकट से तीन बार सांसद बने और केंद्रीय मंत्री भी रहे। जबकि रवि वर्मा मुलायम सिंह द्वारा समाजवादी पार्टी की स्थापना के समय से उनके साथ थे। बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव ने बेनी प्रसाद वर्मा के सामने कभी भी रवि वर्मा की छवि को कमतर नहीं होने दिया।
दरअसल, अब लगने लगा है कि उत्तर प्रदेश में सपा के 65 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों को तैयार रहने के लिए कहना और कांग्रेस के रवि वर्मा के तोड़ने से दोनों पार्टियां एक साथ इंडिया गठबंधन में बहुत लंबे समय तक नहीं रह सकेगी। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच बढ़ती इस खाई से दूसरी पार्टियां भी शायद इंडिया गठबंधन से हाथ खींचने की कोशिश करें। और इसका असर बिहार में दिखने भी लगा है। इंडिया गठबंधन बनवाने में सबसे आगे बढ़कर काम करने वाले जनता दल यूनाइटेड यानि जदयू के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नाराजगी तो कुछ इसी ओर इशारा कर रही है। दरअसल, बिहार में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की ‘भाजपा हटाओ-देश बचाओ’ रैली में नीतीश ने इंडिया गठबंधन पर अपने धैर्य को तोड़ते हुए उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने एकजुट हो कांग्रेस को आगे कर विपक्षी एकता की मुहिम को आगे बढ़ाया था, लेकिन उनको इसकी कोई चिंता नहीं है। अब चुनाव के बाद कांग्रेस खुद ही सबको बुलाएगी।
इधर, जदयू के सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष डॉ आलोक कुमार सुमन तो अब खुलकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 2024 में इंडिया गठबंधन की जीत पर प्रधानमंत्री बनाने की मांग भी करने लगे हैं। मामला यहीं नहीं रुका, 3 नवंबर को राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव जदयू प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने पहुंचे और दोनों नेताओं के बीच करीब 40 मिनट तक बातचीत का सिलसिला चला। इसके बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फोन करके सुलह सफाई का एक संदेश देने की कोशिश की। इस मामले पर राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि नीतीश कुमार कांग्रेस से समाजवादी पार्टी के साथ किए जा रहे इस रवैये से नाराज हैं और अब ये माना जा रहा है कि अखिलेश के बाद नीतीश भी इंडिया गठबंधन से अपना हाथ खींचने की कोशिश कर सकते हैं।
अखिलेश यादव तो अब मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस के खिलाफ भी चुनाव प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप गहराई से देखोगे तो कांग्रेस और भाजपा में कोई फर्क नहीं है, उनके सिद्धांतों में कोई फर्क नहीं है। बड़े संघर्ष और समाजवादियों की लड़ाई के बाद जाकर मंडल कमीशन लागू हुआ था। मुझे याद है उस समय कांग्रेस के मुख्यमंत्री जो बने थे, उन्होंने कहा समाजवादी पार्टी अगर समर्थन कर दे तो दूसरे दलों से भी समर्थन मिल जाएगा। उन्होंने मध्य प्रदेश में कांग्रेस को लीड करने वाले कमलनाथ पर निशाना साधते हुए कहा कि जिनके नाम में कमल हो, उनसे क्या उम्मीद कर सकते हो। वो भारतीय जनता पार्टी की भाषा ही बोलेंगे, दूसरी भाषा नहीं बोलेंगे। अखिलेश का इस प्रकार से चुनावी भाषण करना जताता है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में तल्खी काफी हद तक बढ़ चुकी है।
बहरहाल, इंडिया गठबंधन में कुछ ही सीटों को लेकर पड़ी ये दरार दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और राजनीति के कुछ जानकार ये भी मान रहे हैं कि ये जल्द ही खाई का रूप ले लेगी। लेकिन वहीं कुछ जानकारों का ये भी मानना है कि जो पहले से ही एक नहीं थे, वो अगर अलग हो भी जाएंगे, तो इससे क्या फर्क पड़ना है। हां, ये हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी को इससे नुकसान कम हो। लेकिन कांग्रेस साफतौर पर बढ़त बनाती हुई दिख रही है और उसका मुकाबला भारतीय जनता पार्टी से सीधा है। 2024 में कांग्रेस ही इंडिया गठबंधन की अगुवाई करेगी, तब उसमें शामिल एक-दो या दो-चार पार्टियां छिटकेंगी जिससे एक तीसरे मोर्चे की शुरूआत की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।